यूँ तो यह वर्ष मुख्यतः वैश्विक महामारी कोरोना के आतंक और देश के दो महत्वपूर्ण आंदोलनों सीएए, एनआरसी और किसानों के तीन कृषि कानूनों के पुरजोर विरोध के लिए इतिहास में दर्ज किया जाएगा। एक माह से अधिक समय से इस ठंडे मौसम में ये लोग दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं। इसके साथ ही अनेकों अन्य घटनाएं जो कोरोना के कारण घटीं उन्हें नहीं भुलाया जा सकता, जैसे आप्रवासी मजदूरों के रोजगार छिनना और विषम परिस्थितियों में उनकी घर वापसी। उनकी लाचारी, मजबूरी और दुर्घटनाएं। महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास रेल पटरी पर सोये हुए सोलह मनुष्यों का कट जाना और कई सड़क दुर्घटनाएंं। यह वर्ष ऐसी विकट स्थितियों में चुनावी राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए भी याद किया जाएगा।
भारत-चीन संबधों में तनातनी और इसके फलस्वरूप सीमा संघर्ष एक अहम मुद्दा बना रहा। अंतर्रष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत कुछ घटा जिसने सबका ध्यान आकर्षित किया। जब बगदाद में अमेरिकी हमले में ईरानी सेनाध्यक्ष जनरल कासिम सोलेमानी मारा गया तो पूरे विश्व की चिंता बढ़ गयी। लगा कि अब अमेरिका और ईरान के बीच कभी भी युद्ध हो सकता है। कुछ इतर वैश्विक घटनाएं जैसे अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव, अज़रबैजान-आर्मेनिया युद्ध भी यथेष्ट चर्चा में रहे। लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए भीषण विस्फोटों में तकरीबन 200 लोगों की मौत हो गई, जबकि चार हजार से अधिक लोग घायल हो गए।
CAA-NRC और उसका विरोध
हमारे यहाँ वर्ष 2020 की शुरुआत नागरिकता कानून में संशोधन के खिलाफ दिसंबर 2019 से जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच हुई थी। सरकार इस बात पर अड़ी हुई थी कि संसद में जो निर्णय हुआ है उसे किसी भी सूरत में बदला नहीं जाएगा। इसलिए प्रदर्शनकारी धीरे-धीरे प्रदर्शनों की संख्या बढ़ाते चले जा रहे थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव भी नजदीक थे इसलिए यह विरोध प्रदर्शन बड़ा सियासी मुद्दा बन चुका था। साल के अंत में पेश नागरिकता संशोधन विधेयक संसद की मंजूरी के बाद कानून तो बन गया, लेकिन इसका विरोध 2020 में भी नहीं थमा। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पूर्वोत्तर से उठी आवाज 2020 के शुरुआत तक देशभर में विरोध प्रदर्शन की शक्ल ले चुकी थी।
दिल्ली के शाहीनबाग में सीएए के खिलाफ लंबे समय तक प्रदर्शन चला और हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। खास बात यह कि इसमें अधिकांश मुस्लिम महिलाएं धरने पर बैठी थीं, पर शाहीनबाग में प्रदर्शन का मुख्य चेहरा बनी 82 साल की बिलकिस दादी। टाइम मैगजीन ने बिलकिस बानो को 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों की अपनी सूची में शामिल किया। जामिया मिल्लिया में छात्रों के विरोध प्रदर्शन को बलपूर्वक दबाना भी मुद्दा बना। दिल्ली में सीएए के विरोध में भड़की राजनीति प्रेरित हिंसा फरवरी महीने के आखिर में आपराधिक और अमानवीय दंगों में तब्दील हो गई। कई इलाकों में वाहनों में तोड़फोड़, आगजनी और पत्थरबाजी हुई। पुलिस को भी निशाना बनाया गया।
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कोरोना संक्रमण और खस्ताहाल स्वास्थ्य तंत्र
दूसरी भयावह वैश्विक घटना थी कोरोना वायरस का संक्रमण जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। महामारी का कहर इस कदर बरपा कि देखते ही देखते 180 से ज्यादा देशों को अपनी चपेट में ले लिया। बड़ी आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर व्यवस्था ने भारत की चिंता और बढ़ाई। इन्हीं स्थितियों में सरकारी स्तर पर कोरोना को रोकने के लिए यथासंभव प्रयास किए। लॉकडाउन की घोषणा के बाद सब कुछ ठहर गया। यातायात, कल-कारखाने, कार्यालय, निर्माण, मनोरंजन, होटल सभी कुछ। इसके कारण कर्तव्यनिष्ठा पूरी तरह ढह गई लेकिन कुछ महीनों के बाद लॉकडाउन में ढील के साथ काम-धंधों की शुरुआत हुई तब अर्थव्यवस्था में भी सुधार दिखाई दिया। यद्यपि देश मेें कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या एक करोड़ को पार कर चुकी है लेकिन कोरोना संक्रमण का प्रसार कम हुआ है। पूरे देश की निगाहें अब कोरोना वैक्सीन पर टिकी हुई हैं। कोरोना के कहर के बीच ही तबलीगी जमात का भी तमाशा हुआ।
दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में मार्च में हुए तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हजारों की संख्या में देश और विदेश से लोग शामिल हुए। जब यह बात सामने आई कि बड़ी संख्या में जमाती कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं, तो यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। कोरोना वायरस के फैलाव में जमात और मरकज़ का नाम सामने आने के बाद इसे सियासी रंग दे दिया गया और राजनीतिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू हुआ। सरकार ने संसद में बताया कि मार्च में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में भारी भीड़, एक लंबी अवधि तक इस परिसर में एकत्र रही, जिससे कई व्यक्तियों में संक्रमण फैला। बाद में यह सब निर्मूल साबित हुआ।संयोगवश डब्ल्यूएचओ ने जनवरी माह में ही वर्ष 2020 को नर्स और दाई वर्ष घोषित किया था। तब किसे पता था कि वाकई यह वर्ष नर्सों और दाइयों और डॉक्टरों की अभूतपूर्व सेवा लेने वाला वर्ष बन जाएगा।
जनवरी के अंत में भारत में कोरोना वायरस का पहला मरीज केरल में सामने आया था। उसके बाद दो और मामले केरल में ही आए। कांटेक्ट ट्रेसिंग शुरू की गई। चुनिंदा हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग मार्च में ही शुरू की गई। 12 फरवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को कोविड-19 नाम प्रदान किया। भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय ने विभिन्न समितियों का गठन कर संक्रमण के रोकथाम के लिए भावी योजना पर विचार करना आरंभ किया।
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राम मंदिर शिलान्यास
फरवरी का महीना हमारी आंतरिक राजनीति में विशेष रहा इस तथ्य पर भी ध्यान दीजिए। संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ नामक ट्रस्ट का गठन किया है। मंदिर निर्माण में लगभग 36-40 महीने का समय लगने का अनुमान है।
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दिल्ली में चुनाव
फरवरी माह में ही दिल्ली विधानसभा चुनावों में शाहीनबाग बड़ा मुद्दा बना। मुकाबला शुरू से ही भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच नजर आ रहा था। कांग्रेस ने तो प्रचार भी तब शुरू किया जब यह खत्म होने में मात्र एक सप्ताह का समय बचा था। भाजपा के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया लेकिन आम आदमी पार्टी भारी बहुमत के साथ 63 सीटें हासिल कर सत्ता में लौटी और भाजपा अपना पिछली बार का तीन का आंकड़ा कुछ सुधार कर 8 सीटों पर आकर रुक गयी। कांग्रेस अपना खाता खोलने में नाकामयाब रही। अरविंद केजरीवाल ने अपनी पिछली कैबिनेट के साथ एक बार फिर पद और गोपनीयता की शपथ ली।
दागी उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इसी माह सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा निर्णय देते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों का आपराधिक ब्यौरा भी सार्वजनिक करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के आंदोलनकारियों को समझाने के लिए एक कमेटी का गठन किया लेकिन आंदोलनकारी सीएए कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहे।
नमस्ते ट्रंप
फरवरी में ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूरे दलबल के साथ भारत की यात्रा पर आये और अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में हिस्सा लिया। अहमदाबाद से ट्रंप अपनी पत्नी और परिवार के साथ ताजमहल देखने के लिए आगरा गये और उसके बाद दिल्ली पहुँचे जहां उनका भव्य स्वागत हुआ, लेकिन इसी बीच दिल्ली में दंगों की शुरुआत हो गई।
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कोरोना और चुनावी रणनीति
दिल्ली दंगों में कई लोग मारे गये और संपत्ति को भी काफी नुकसान हुआ। इसी समय कोरोना वायरस चीन के वुहान में रौद्र रूप दिखाने लगा था इसलिए सरकार ने वहां फंसे हुए अपने लोगों को निकालने का अभियान शुरू किया और उन्हें भारत लाकर पहले क्वारंटीन सेंटर में रखा गया और वहां से घर भेजा गया।
निर्भया के चार गुनाहगारों मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय सिंह को आखिरकार सात साल बाद 20 मार्च 2020 को फांसी पर लटकाया गया।
इसी समय मध्य प्रदेश में एक बड़ी राजनीतिक हलचल हुई जब राहुल गांधी के भरोसेमंद ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा खेमे में जा मिले। इसके बाद शुरू हुआ कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे का सिलसिला। सप्ताह भर चली राजनीतिक रस्साकशी में कमलनाथ सरकार गिर गई। शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर मध्य प्रदेश की कमान संभाली। राज्य में उपचुनाव हुए। उपचुनाव में कांग्रेस अधिकांश सीटें जीतकर सत्ता में फिर से काबिज होने का सपना लेकर मैदान में उतरी जबकि बीजेपी के सामने चुनौती सत्ता बचाने की थी। भाजपा ने तीन नवंबर को 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में 19 सीटें जीतकर सत्ता बचा ली जबकि कांग्रेस मात्र नौ सीटों पर सिमट गई। यह सब कोरोना संक्रमण के समानांतर ही चल रहा था। बाद में यही कवायद राजस्थान में भी दोहराने की कोशिश की गई पर सफलता नहीं मिली।
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लॉकडाउन
कोरोना से निपटने की अपनी रणनीति के तहत अब प्रधानमंत्री ने एकाएक देश को संबोधित करते हुए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का आह्वान किया। इसके दो दिन बाद ही उन्होंने देश में 21 दिनों के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी जिसे बाद में कई बार आगे बढ़ाया गया। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच लंबे समय से सैन्य गतिरोध चल रहा था। पहले चीन ने गलवान घाटी में सैन्य तैनाती बढ़ाई, जवाब में भारत ने भी सैनिकों का जमावड़ा मजबूत कर दिया। 15-16 जून की दरमियानी रात गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने आ गए। भारत और चीन के सैनिकों में हिंसक झड़प हुई, जिसमें भारत के 20 जवान कुर्बान हुए, चीन को भी जान-माल का खासा नुकसान हुआ।
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अर्थव्यवस्था को झटका
अर्थव्यवस्था के लिहाज से साल 2020 काफी खराब रहा। अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध और अन्य वैश्विक एवं घरेलू कारकों के चलते सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी की गहरी मार पड़ी। कोरोना को काबू करने के लिए देश में लगाए गए लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो गईं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश की जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। हाल ही में दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के जीडीपी आंकड़े जारी हुए। अनलॉक के तहत, आर्थिक गतिविधियों के फिर से चालू होने पर अर्थव्यवस्था की सेहत सुधरी है। अप्रैल के पहले सप्ताह में ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कई प्रकार की रियायतों का ऐलान किया जिनमें कर्ज सस्ता करने से लेकर तीन महीने के लिए ईएमआई को स्थगित करने की सुविधा भी प्रदान की। प्रधानमंत्री ने अप्रैल के पहले सप्ताह में देश को दिये अपने संबोधन में एकबार फिर लॉकडाउन के दूसरे चरण का ऐलान किया और 5 अप्रैल को रात्रि 9 बजे लाइटें बंद करके 9 मिनट तक दीये या मोमबत्ती से रोशनी करने का आह्वान किया। 8 अप्रैल को चीन के वुहान में 76 दिनों का लॉकडाउन खत्म हुआ।
कुछ चुनिंदा पठनीय लिंक
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अप्रवासी कामगार और घर वापसी
इन स्थितियों में देश ने आजादी के बाद का सबसे बड़ा पलायन देखा जब लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी छिन जाने से प्रवासी मजदूर अपने-अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े। चूँकि सार्वजनिक परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं थे इसलिए ये कामगार पैदल चलकर, साइकिल चलाकर और ट्रकों के जरिए, यहां तक कि कंटेनर ट्रकों और कंक्रीट मिक्सिंग मशीन वाहन में छिपकर अपने घर लौटने लगे और इस दौरान कई मजदूर दुर्घटनाओं के शिकार भी हुए। प्रवासी मजदूरों के पलायन के समय देश भर से जिस तरह की भावुक कर देने वाली तसवीरें सामने आईं उनको देश लंबे समय तक याद रखेगा।
राजस्थान के कोटा में पढ़ रहे छात्रों की घर वापसी का मुद्दा भी उठा। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने छात्रों को बस भेजकर वापस बुला लिया तो अन्य राज्यों पर भी दबाव पड़ा। इस महीने तब बड़ी मुश्किल हुई जब कई राज्यों ने अपनी सीमाओं पर सख्त पहरा बिठा दिया। अप्रैल महीने में ही कोरोना से लड़ने के लिए भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा शुरू हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना की जाँच निशुल्क कराई जानी चाहिए। प्लाज्मा थैरेपी के जरिये कोरोना को हराने के प्रयोग भी अप्रैल में ही शुरू हुए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें निम्नतम स्तर पर पहुँच गयीं क्योंकि अधिकतर देशों में लॉकडाउन के कारण पेट्रोलियम उत्पादों की माँग ही नहीं थी। इसी माह सरकार ने आरोग्य सेतु एप लॉन्च किया ताकि कोरोना के मामलों में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की जा सके।
लॉकडाउन में प्रवासियों की सारी व्यथा कथाएं इस पेज पर पढ़ें
लॉक-अनलॉक
देश में लॉकडाउन-3 का ऐलान किया गया लेकिन अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलने की कवायद भी शुरू की गयी। गृह मंत्रालय ने कार्यस्थलों पर सीमित संख्या में कर्मचारियों के साथ कार्य की शुरुआत के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किये। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने महीने में दूसरी बार प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कई रियायतों का ऐलान किया और ब्याज दरों में भी कटौती की। अप्रैल महीने में व्यापार जगत से तब बड़ी खबर आई जब पता लगा कि फेसबुक ने रिलायंस जियो में 9.99 प्रतिशत भागीदारी खरीद ली है। कोरोना वॉरियर्स के हित में केंद्र सरकार ने महामारी कानून में बदलाव करते हुए डॉक्टरों, स्वाथ्यकर्मियों या पुलिस पर हमला करने वालों पर कड़ी सजा के प्रावधान किये। सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के महँगाई भत्ते में वृद्धि को भी जुलाई 2021 तक के लिए रोक दिया।
तन मन जन: लॉकडाउन-अनलॉक के चक्कर में ‘जात भी गयी और भात भी नहीं खाया’!
प्रदूषण गायब
अब इस महामारी की भयावहता के दौरान देश की वह तस्वीर भी सामने आई जिसमें लॉकडाउन और देश की ठप्प गतिविधियों के कारण सभी प्रमुख नदियों का जल साफ, सभी नगरों, महानगरों की हवा एकदम शुद्ध हो गयी थी। प्रकृति अपने सहज स्वाभाविक रूप मेें हमारे सामने मुखर थी। बताया गया कि मुजफ्फरपुर, बिहार से हिमालय की चोटियां देखी गईं।इस वैश्विक महामारी ने यह साबित कर दिया कि जरूरत के समय मानवजाति के रूप में हम सीमित संसाधनों के साथ रहने की योग्यता रखते हैं। इसने हमें दिखाया है कि ऐसी जीवनशैली जो हमारी हसरतों से ज्यादा जरूरतों पर निर्भर हो वह दरअसल काफी सुकूनदेह है और असल में उसे मैनेज करना भी आसान है। अगर यह बदलाव हमें वैश्विक महामारी से बचा लेता है, तो बेशक हम खुद को इस धरती के साथकिए गए अन्याय के प्रायश्चित के रूप में देखना चाहिए।अप्रैल के अंत में सरकार ने ऐलान किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लॉकडाउन में कुछ और ढील दी जाएगी जिसके बारे में दिशानिर्देश जारी किये गये।
जनपथ ने इस विषय पर पर्याप्त सामग्री प्रकाशित की है। कुछ चुनिंदा नीचे पढ़ सकते हैं
- COVID-19 से लड़ने के लिए शून्य उत्सर्जन की सूची में दिल्ली समेत भारत के तीन शहर शामिल: UN
- पंचतत्व: शहरों की बवासीर है ठोस कचरा
- तन मन जन: कोरोना-काल में बढ़ता प्रदूषण जानलेवा तबाही की दस्तक है!
- इस दिवाली तीन-चौथाई देश वायु प्रदूषण से बेपरवाह, आधे से ज्यादा आबादी कोरोना से बेफ़िक्र
- 60 दिन का लॉकडाउन बनाम 60 साल के पर्यावरणीय प्रोटोकॉलः कुछ नीतिगत सुझाव
- जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्रकाशित सामग्री
- पर्यावरण पर मंजीत ठाकुर का साप्ताहिक स्तम्भ पंचतत्व
इरफान खान और अन्य अभिनेताओं का चले जाना
अप्रैल का अंत होते-होते प्रसिद्ध अभिनेता इरफान खान और ऋषि कपूर का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। साठ के दशक की बड़ी अभिनेत्री निम्मी भी नहीं रहीं।
बनारस में कचौड़ी-जलेबी और मुंबई में ‘गांधी कथा’ के बहाने इरफ़ान की याद
2 मई को फिर एक बार लॉकडाउन आगे बढ़ाने का ऐलान कर दिया गया लेकिन रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन के लिए अलग-अलग दिशानिर्देश जारी किये गये। एक जून को मशहूर संगीतकार जोड़ी साजिद-वाजिद के वाजिद खान का निधन हो गया।बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत अपने फ्लैट में मृत पाए गए।
सुशांत सिंह राजपूत: डुबोया मुझ को होने ने…?
सुशांत राजपूत की मौत ने बॉलीवुड में वंशवाद बनाम बाहरी की लड़ाई को हवा दी। कुछ दिन बाद रिया चक्रवर्ती का नाम उछला। सितंबर महीना आते-आते कहानी में ड्रग्स एंगल को लेकर जांच शुरू हुई और जांच का दायरा बढ़ता गया। इससे एकमात्र फायदा यह हुआ कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को को जो लोग नहीं जानते थे वे भी अच्छी तरह जान गए।
सुशांत के परिवार ने रिया पर पैसे ऐंठने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। डिजिटल मीडिया ने अभूतपूर्व कोहराम मचाया। देश के तमाम प्रमुख मुद्दे एकतरफ रख दिए और चौबीसों घंटे कुछ झूठी कुछ सच्ची कहानियां चलाई गईं। फिलहाल, सुशांत की मौत की जांच सीबीआई कर रही है और नतीजा सिफर है।
रंगकर्मियों और साहित्यकारों का बिछड़ना
इस बीच कई बड़े रंगकर्मी भी चिरनिद्रा में लीन हो गए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक सुप्रसिद्ध रंगकर्मी इब्राहिम अल्काज़ी, छत्तीसगढ़ से अजय आठले और बस्तर से सत्यजीत भट्टाचार्य, बंगाल से प्रदीप घोष, सोवा सेन, सुप्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखिका और समाजसेवी ऊषा गांगुली और अब लेखक-अभिनेता सौमित्र चटर्जी, मराठी रंगमंच के दिग्गज रंगकर्मी रवि पटवर्धन की अब स्मृति और सत्कार्य शेष हैं।
- नाउम्मीदी के दौर में उम्मीद का दामन थामे रखने का संदेश देने वाले थे सौमित्र दा
- स्मृतिशेष सौमित्र चटर्जी: वैचारिक भिन्नताओं से परे एक अभिनेता जिसके जाने का दुख सबको है
कई बड़े साहित्यकार भी दिवंगत हुए। उर्दू के मशहूर कथाकार कृष्ण बलदेव, बिहार के प्रगतिवादी आलोचक खगेन्द्र ठाकुर, पहला गिरमिटिया जैसे उपन्यास के लेखक चर्चित कथाकार गिरिराज किशोर, सुप्रसिद्ध शायर राहत इन्दौरी, चित्रकार-कवि हरिपाल त्यागी, उर्दू की लेखिका सादिया देहलवी, देशबंधु पत्र समूह के संपादक एवं कवि ललित सुरजन, वरिष्ठ कवि विष्णुचंद्र शर्मा, जाने-माने बाल साहित्यकार तथा शायर अहद प्रकाश, चर्चित कवि मंगलेश डबराल और अब इलाहाबाद के सम्मानित साहित्यकार और उर्दू ज़बान व अदब के नामवर आलोचक, शायर- उपन्यासकार शम्सुर्रहमान फारुकी।
- श्रद्धांजलि: यह वह नंबर नहीं है जिस पर तुम सुनाते थे अपनी तकलीफ़…
- पत्रकारिता की मिशनरी परंपरा और पतन: एक दिवंगत संपादक की अंतर्दृष्टि
- कोरोना के बाद क्या ‘विश्वग्राम’ की परिकल्पना यथावत बनी रहेगी? ललित सुरजन का अनुत्तरित सवाल
- स्मृतिशेष: कवि का कमरा, कवि की दुनिया
सुप्रसिद्ध नृत्यांगना और नर्तक उदयशंकर की सहयात्री अमला शंकर, महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज, सुपरिचित मानवाधिकार कार्यकर्ता लेखिका इलीना सेन जिन्होंने बस्तर में आदिवासियों के लिए लंबा संघर्ष किया वह भी दिवंगत हुईं। वैज्ञानिक और रेडियो खगोलशास्त्री गोविंद स्वरूप, परमाणु वैज्ञानिक शेखर वसु अंतरिक्ष वैज्ञानिक रोडम नरसिम्हा भी नहीं रहे।
- “मैंने चितरंजन दा को हमेशा अपने अकेलेपन से लड़ते हुए पाया”!
- स्मृतिशेष: रघुवंश बाबू का जाना भारतीय राजनीति को रिक्त कर गया है
- स्मृतिशेष डॉ. श्याम बिहारी राय: वह अंतिम समय तक आंदोलनकारी की भूमिका में ही रहे
- स्मृतिशेष विजया रामास्वामी: वह हँसी मेरे कानों में गूँजती रहेगी…
- स्मृतिशेष: समाजवाद के खांटी पहरुए रामअवधेश सिंह का जाना
महाराष्ट्र: सेना बनाम भाजपा
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार पर तब संकट के बादल मँडराने लगे जब विधान परिषद के लिए नामांकित होने के मुख्यमंत्री के प्रयासों को राज्यपाल ने सफल नहीं होने दिया। संकट से निजात के लिए मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया जिसके बाद राज्यपाल ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर विधान परिषद चुनावों को तत्काल कराने की माँग की और इस तरह महाराष्ट्र का सियासी संकट खत्म हुआ। मई में कई राज्यों ने केंद्र सरकार से माँग की कि जोन निर्धारित करने का काम उन्हें सौंपा जाये।
विपदा पर विपदा
- भारत सरकार ने वंदे भारत मिशन के जरिये विदेशों में फँसे भारतीयों की वापसी का अभियान शुरू हुआ।
- कश्मीर के तीन फोटो पत्रकारों ने पुलित्जर पुरस्कार जीता जिस पर विवाद भी हुआ।
- आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम में एक कंपनी के संयंत्र से गैस लीक होने से 7 लोगों की मृत्यु हो गयी और कई लोग बीमार पड़ गये।
- इसी माह में आये तूफान अम्फान से पश्चिम बंगाल और ओडिशा में तबाही हुई जिसको देखते हुए प्रधानमंत्री ने इन दोनों राज्यों का दौरा कर हालात की समीक्षा की और उन्हें आर्थिक मदद का आश्वासन दिया।
- मई में ही देश के कुछ राज्यों में टिड्डियों के हमले की शुरुआत हुई जिससे पश्चिमोत्तर राज्यों के किसानों की फसल की भारी क्षति हुई।
- गृह मंत्रालय ने इसी महीने नेशनल माईग्रेंट इनफॉर्मेशन सिस्टम की शुरुआत भी की।
- 25 मई से देश में घरेलू उड़ानें शुरू हुईं तो लोगों को कुछ आसानी हुई।
- मई माह में चीन के साथ एलएसी पर तनातनी शुरू हुई और नेपाल ने भी आंखें दिखाते हुए अपने मानचित्र में बदलाव करते हुए उसमें तीन भारतीय क्षेत्रों को शामिल कर लिया।
- जम्मू-कश्मीर में नई डोमिसाइल नीति भी इस महीने अधिसूचित कर दी गयी।
- आरबीआई गवर्नर ने एक बार फिर रियायतों का ऐलान कर लोगों का बोझ कुछ कम करने की कोशिश की।
- छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 5700 करोड़ रुपए की राजीव गांधी किसान न्याय योजना की शुरुआत की।
राजनेताओं और खेल नायकों का जाना
छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी, प्रख्यात हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर और प्रख्यात ज्योतिषी बेजान दारूवाला का भी निधन हो गया। आस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर डीन जोन्स और अर्जेन्टीना के महान पूर्व फुटबाल खिलाड़ी डिएगो मेराडोना का चले जाना भी स्तब्ध कर गया।
इसी वर्ष देश के अन्य प्रमुख राजनेता, असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, सर्वमित्र अमर सिंह, राजनीतिज्ञ और साहित्यकार देवी प्रसाद त्रिपाठी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, पूर्व भाजपा नेता जसवंत सिंह, क्रिकेटर और राजनेता चेतन चौहान, केंद्रीय मंत्री और लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान, वयोवृद्ध संघ विचारक म. गो. वैद्य, कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा भी अलविदा कह गए।
आधी सदी तक सक्रिय एक राजनीतिक जीवन के विरोधाभास
रेलवे ने एक जून से कुछ विशेष ट्रेनों की सुविधा शुरू की जिससे लॉकडाउन के दौरान जहाँ-तहाँ फँसे लोग अपने घरों को वापस जा सके। उच्चतम न्यायालय ने प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर गौर करते हुए सरकारों को निर्देश दिये कि 15 दिन के अंदर उन्हें उनके गंतव्यों तक पहुँचाया जाये। तूफान निसर्ग से महाराष्ट्र और गुजरात में कुछ नुकसान हुआ लेकिन मौसम विज्ञान विभाग की समय पर मिली सूचनाओं के चलते बड़ा नुकसान टाल दिया गया।
जून महीने में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया। प्रसिद्ध निर्माता बासु चटर्जी का इस महीने निधन हो गया।
अब सब कुछ खुलने लगा…
जून के दूसरे सप्ताह से देश के सभी धार्मिक स्थलों, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और रेस्टोरेंटों को खुलने की अनुमति मिल गयी। असम के तेल कुएं में लगी आग से भी काफी नुकसान हुआ।
भारत-चीन रस्साकशी
जून मध्य में भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवानों के शहीद होने से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया और कई दौर की वार्ता के बाद भी मामला सुलझ नहीं सका प्रधानमंत्री ने चीन के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक का भी आह्वान किया। इस दौरान स्पष्ट कर दिया कि ‘ना तो कोई भारतीय सीमा में घुसा है और ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है।’ उन्होंने देश को भरोसा दिलाया कि भारतीय सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा। गृह मंत्रालय ने अनलॉक-2 के लिए दिशानिर्देश जारी किये। महीने के अंत में भारत सरकार ने चीन के 59 मोबाइल एप्स को भी प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि यह भारतीयों का डेटा चुरा रहे थे। तो वहीं फ्रांस के डसॉल्ट एविएशन द्वारा बनाए गए पांच राफेल फाइटर जेट्स अंबाला एयरबेस पहुंच गए।
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अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर समस्या
इसके अलावा जहां तक राजनीति की बात है तो वह इन छह महीनों में भी जमकर हुई। जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला पर से पीएसए एक्ट हटा लिया गया और महबूबा मुफ्ती को भी घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन कर प्रधानमंत्री ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर का रास्ता तैयार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2020 में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी। मंदिर के निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है ताकि आने वाले कई सालों तक भूकंप और प्राकृतिक आपदाओं का इस पर कोई असर न हो।
हाथरस रेप कांड : उप्र सरकार की घृणित भूमिका
हाथरस रेप कांड की घटना से देश में लाखों आंखें नम हुईं, तो इस पर सियासत भी जमकर हुई। तेजी से पैर पसार रहे कोरोना के बीच मोदी सरकार ने संसद से तीन विवादित कृषि कानून पारित करा लिए। आईपीएल दुबई में हुआ जरूर, लेकिन स्टेडियम सूने रहे। बिहार में एनडीए की वापसी हुई, लेकिन इस बार भाजपा बड़े भाई की भूमिका में थी।
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कोरोना काल में जीवन शैली
इन घटनाओं के अलावा कोरोना काल ने कई बड़े बदलाव किये, जैसे कि शादी-विवाह आदि बड़े सादे ढंग से आयोजित किये जाने लगे और नाममात्र के ही रिश्तेदारों की उपस्थिति इन आयोजनों में रहने लगी। लॉकडाउन के दौरान लोगों के मनोरंजन के माध्यम भी बदल गये। सिनेमाघर बंद हो गये, बार बंद हो गये, पार्क बंद हो गये तो लोग घरों पर ही टीवी के आगे बैठ गये। दूरदर्शन ने पुराने धारावाहिक शुरू किये तो वे काफी हिट हुए और ऐसे में जब शूटिंग बंद होने से विभिन्न धारावाहिकों के नये एपिसोड नहीं आये तो लोग वेब सीरिज आदि देखकर समय बिताने लगे। यही नहीं बड़े पर्दे की फिल्में भी तीसरे पर्दे पर रिलीज होने लगी हैं।
हिंदी साहित्यकार विशेषकर कवि सोशल मीडिया पर पूरी प्रतिबद्धता से आनलाइन कविता पाठ करने में लगे रहे। कोरोना पर दर्जनों कविता संकलन आ गए। मिस्र के एक कवि अशरफ के नाम से फेसबुक पर सप्ताह भर कविता लगाने और रोज एक नए कवि को इस कर्म के लिए प्रेरित-आमंत्रित करने का लंबा सिलसिला चला। कहा गया कि इन कविताओं का रूसी भाषा में अनुवाद होगा। यह शगल खासा मनोरंजक रहा।
कुछ चर्चित किताबें
ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण किताबों की चर्चा भी आवश्यक है। अंग्रेजी में रस्किन बांड की ‘ए सॉंग आफ इंडिया’, नीना राय की ‘अमेजिंग अयोध्या’, रामचंद्र गुहा की ‘गांधी : द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड’, पुरुषोत्तम अग्रवाल की ‘ हू इज भारत माता’, हिंदी में कुमार निर्मलेंदु की ‘मगधनामा’, संदीप मुरारका की ‘शिखर को छूते ट्राइबल्स’ और बलदेव सिंह की क्रांतिकारी ऊधम सिंह पर ‘ सूरज कदे मरदा नहीं’।
अक्सर होता यह है बड़े नामों और बड़े प्रकाशनों का जिक्र तो हो जाता है जो सुविधाजनक भी है और जिक्रकर्ताओं की सीमा भी, पर महानगरों से दूरदराज रहने वाले भारतीय भाषाओं के लेखकों और छोटे प्रकाशनों से प्रकाशित पुस्तकों की चर्चा नहीं हो पाती। उदाहरण के तौर पर जसबीर चावला का कविता संग्रह ‘देसवाली में ईश्वर’, कैलाश मनहर की ‘मध्यरात्रि का प्रलाप’, विनोद पदरज की ‘देस’, मेरी आलोचना पुस्तक ‘कविता का जनपक्ष’, अंग्रेजी से अनूदित विश्व कवियों की कविताएं ‘स्वतंत्रता जैसे शब्द’ आदि शताधिक अच्छे संग्रह 2020 में आए हैं।
प्रकृति का कोप
दर्जनों भूकंप, बिहार और पूर्वोत्तर में बाढ़, घरों से लेकर अस्पतालों तक लबालब भरा पानी, पूर्वी भारत में तूफान और बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से हुई मौतों जैसे हालात आदि भी हर वर्ष की तरह इस साल भी बड़ी मुश्किलों में शुमार रहे हैं लेकिन इसका कोई समाधान नहीं मिल सका है। कभी मिलेगा भी या नहीं कहा नहीं जा सकता।
कोरोना से बचे तो बाढ़ ने लील लिया जीवन: बिहार से लेकर मध्यप्रदेश तक तबाही का आलम
पहले कोरोना, अब बाढ़! क्या बिहार के मजदूर-किसानों की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है?
बिहार चुनाव
2020 में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर खासी गहमागहमी रही। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमानों और एग्जिट पोल्स ने तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन की बांछे खिला दीं। विपक्ष को सत्ता में आने का भरोसा था, लेकिन तस्वीर सामने आई तो बाजी पलट चुकी थी। सभी एग्जिट पोल्स धराशायी साबित हुए। एनडीए एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रहा। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को सीटों का नुकसान जरूर हुआ, लेकिन बीजेपी के आशीर्वाद से वह सीएम की कुर्सी पाने में कामयाब रहे। एनडीए से बगावत कर अकेले लड़ने वाली लोजपा को एक सीट पर संतोष करना पड़ा। 75 सीटें जीतने वाले राजद को कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की वजह से सत्ता का स्वाद चखने से महरूम रह गई।
बिहार चुनाव की पूरी कवरेज के लिए इस पन्ने पर जाएं
“लव” के खिलाफ जिहाद”
इस बीच उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद’ का कानून प्रभावी हो गया है। राज्यपाल ने गैर कानूनी तरीके से धर्मांतरण पर रोक से जुड़े अध्यादेश को मंजूरी दे दी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान ऐलान किया था कि प्रदेश में “लव जिहाद” को लेकर एक कानून लाया जाएगा। सरकार का कहना है कि इस कानून का मक़सद महिलाओं को सुरक्षा देना है। मध्य प्रदेश सरकार “लव जिहाद” पर कानून लाने की तैयारी कर चुकी है।
हरियाणा, कर्नाटक औऱ कई अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी “लव जिहाद” पर कानून लाने की कवायद चल रही है। इस प्रस्तावित कानून के तहत, धर्म छिपाकर किसी को धोखा देकर शादी करने पर 10 साल की सज़ा होगी। इसमें प्रावधान है कि लालच, झूठ बोलकर या जबरन धर्म परिवर्तन या शादी के लिए धर्म परिवर्तन को अपराध माना जाएगा। नाबालिग, अनुसूचित जाति जनजाति की महिला के धर्मपरिवर्तन पर कड़ी सजा होगी। सामूहिक धर्म परिवर्तन कराने वाले सामाजिक संगठनों के खिलाफ कार्रवाई होगी। धर्म परिवर्तन के साथ अंतर धार्मिक शादी करने वाले को सिद्ध करना होगा कि उसने इस कानून को नहीं तोड़ा है। लडक़ी का धर्म बदलकर की गई शादी को शादी नही माना जाएगा।
लव जिहाद का पन्ना
जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद चुनाव
अब जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद चुनाव का गणित भी समझ लीजिए। यह तो स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में होने वाला कोई भी चुनाव विगत कई वर्षों से एक खास महत्व रखता है लेकिन हाल के जिला विकास परिषद चुनावों पर विशेष रूप से सबकी नजरें लगी थीं। पिछले साल संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत हासिल विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद यह पहला मौका था जब इस राज्य के लोग अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देने निकले थे। चुनाव नतीजों के आंकड़े देखें तो वे कुछ खास चौंकाने वाले नहीं दिखते। जम्मू संभाग में बीजेपी आगे रही और कश्मीर घाटी में गुपकार गठबंधन को बढ़त मिली। घाटी में तीन सीटें लेकर बीजेपी यह दावा करने लग गई कि आखिर घाटी में भी वह कमल खिलाने में कामयाब रही। जिन्हें पिछले एक साल से अलगाववादी, राष्ट्रविरोधी वगैरह करार दिया जा रहा था, हर सार्वजनिक मंच से जिन्हें ‘गुपकार गैंग’ कहकर संबोधित किया जा रहा था, उनके कथित चंगुल से राज्य को मुक्त करने में मोदी सरकार को कुछ खास कामयाबी नहीं मिली। बेशक, ये चुनाव शांतिपूर्ण रहे और इनका मतदान प्रतिशत भी कई चुनावों से बेहतर रहा। इसका यह मतलब जरूर है कि अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों की लाख कोशिशों के बावजूद जम्मू-कश्मीर के लोगों का शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक उपायों में यकीन बना हुआ है।
लेकिन क्या इसका यह अर्थ भी निकाला जा सकता है कि अनुच्छेद 370 के तहत हासिल विशेष दर्जा छीन लिए जाने से लोग खुश हैं। फिलहाल इस निष्कर्ष तक पहुंचना जल्दबाजी ही समझा जाएगा। कारण यह है कि विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद की यह पूरी अवधि जम्मू-कश्मीर में हर कीमत पर शांति बनाए रखने के प्रयासों को ही समर्पित रही है।
नये कृषि कानून और किसान आंदोलन
वर्ष 2020 जा रहा है लेकिन केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन ने सर्द मौसम में दिल्ली की सियासी तपिश बढ़ा रखी है। केंद्र सरकार सितंबर महीने में 3 नए कृषि विधेयक लाई, जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बने। किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं। किसान ‘दिल्ली चलो अभियान’ के तहत राष्ट्रीय राजधानी और उसके आसपास के इलाकों में डेरा डाले हुए हैं और सरकार से लंबी लड़ाई को तैयार हैं। वे पर्याप्त राशन और जरूरत का सारा सामान लेकर आए हैं कानूनों को रद्द करने से कम पर मानने को किसान तैयार नहीं हैं। किसान संगठनों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हुई, जो बेनतीजा रही। किसानों के मान-मनौव्वल का सिलसिला अब भी जारी है। किसानों को इन कानूनों से फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाने का डर सता रहा है।
किसान आंदोलन का पहला पन्ना
किसान आंदोलन का दूसरा पन्ना
कोरोना समय के सबक
अब इस निराशा और भय के दौर में हमने कुछ जो सीखा और समझा या समझने की जरूरत महसूस हुई उसकी भी बात होनी चाहिए। हमारे शतरंज के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद शुरूआती लॉकडाउन के समय फ्रांस के पेरिस में फंस गए थे उस दौरान एक बातचीत में जो कहा वह ध्यान देने लायक है। ‘साफ दिखाई वह दे रहा था कि इंसान को अपनी जीवनशैली में ऐसा बदलाव करने की आवश्यकता है जिससे धरती के संसाधनों का न्यायपूर्ण उपयोग सुनिश्चित हो सके। आज के आधुनिक विश्व में, हम सफलता को पैसों के तराजू पर तौलते हैं। हमारे गलत विचार हमें यह विश्वास करवाते हैं कि मानव ही संपूर्ण ब्रह्मांड का केंद्र है। वही सब कुछ चला रहा है। इतिहास, संस्कृति और धन के दम पर पूरा खेल उसी के निर्देशों पर खेला जा रहा है। हमारी शिक्षा-व्यवस्था हमें भेड़-चाल का हिस्सा बनना सिखाती है। वह हमें सिखाती है कि इस अंधाधुंध दौड़ में कैसे आगे निकला जाए। इस तरह की सोच ने शायद हमें आर्थिक विकास में लाभ पहुंचाया हो लेकिन आज, इस सिस्टम और सीख के विपरीत प्रभाव भी दिखाई दे रहे हैं।
इस वैश्विक महामारी के दौरान जो अहम सबक सीखा जा सकता है कि हमें स्वास्थ्य को आर्थिक विकास पर प्राथमिकता देनी चाहिए। आज के दौर में कहें तो हमें अपना ध्यान प्रकृति और पर्यावरण पर केंद्रित करना चाहिए। हमारी शिक्षा व्यवस्था को उन मुद्दों पर केंद्रित होनी चाहिए जो मानवजाति के सुरक्षित रहने के लिए के लिए महत्वपूर्ण हैं, बजाय कि आर्थिक सफलता के। जब प्रकृति बचेगी, तभी मानवता बचेगी। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए दुनिया की अधिकांश आबादी पिछले दिनों लम्बे समय तक अपने घरों में कैद हो गई। वहीं इस आपदा के दौरान दुनिया भर में प्राकृतिक और भौगोलिक स्तर पर बहुत सारे सबक सीखने को मिले, साथ ही सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिले।
इस दौर में हमने सीखा कि हमारी मूल जरूरत अन्न है न कि आइ फोन। हमारी आमदनी का बड़ा हिस्सा दिखावे और बुरी लतों पर खर्च होता रहा है, जबकि इन्हीं के चलते पूरी दुनिया पर्यावरण की समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में जो एक बड़ा निष्कर्ष हमने पाया है, वो यह है कि मजे में वे लोग हैं, जिनकी जरूरतें कम हैं। इन कठिनाइयों के चलते ही नई पीढ़ी और बच्चों को ये समझ आया है कि खाना बाजार से नहीं, खेतों से आता है।
बाज़ार में खाना बिकता है, पैदा नहीं होता
असल उत्पादक दरअसल किसान हैं, जिनकी आत्महत्या और मौत की खबरें अखबारों के आठवें पेज पर छपती रही हैं। इस कोरोना काल में जहां एक तरफ मजदूरों ने अपनी मजबूरी और समस्याओं के चलते भूखे पेट सैकड़ों-हज़ारों किलोमीटर की पैदल यात्राएं कीं, वहीं एक अतिसूक्ष्म जीव (वायरस) ने प्रकृति के सम्मुख हमें हमारी लघुता का बोध करा दिया। यानी न हम शारीरिक रूप से उतने कमजोर और अक्षम हैं, जितना हमें लगता था, न ही तकनीकी रूप से उतने शक्तिशाली जिसका हमें गुमान था। ऐसे में ये वक़्त है जब हमें अपनी क्षमताओं के पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है। भूख-प्यास और गरीबी की मार झेलते मजदूरों का शहरों से पैदल मार्च, ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि शहरों की चमक-दमक महज दिखावा है, और असल में शहरी नागरिक अपेक्षाओं का गुलाम है। कितनी बड़ी विडंबना रही कि जिन शहरों को इन मजदूरों ने अपने पसीने का गारा बनाकर खड़ा किया, वही शहर इन मजदूरों को बुरे वक्त में दो वक्त की रोटी और छत नहीं दे सके।
कवर तस्वीर मशहूर कृति The Scream का एक रूपांतरण, स्रोत: Rolling Stone