बुंदेलखंड का अमेज़न ‘प्रोजेक्ट बकस्‍वाहा’ और देशव्यापी विरोध की जरूरत

आज जब देश और दुनिया क्लाइमेट चेंज (मौसम में बदलाव) के रूप में अब तक का सबसे बड़ा पर्यावरणीय संकट झेल रहे हैं, प्रोजेक्ट बकस्‍वाहा जैसी परियोजनाओं का व्यापक देशव्यापी विरोध जरूरी है। साथ ही इसके बरअक्स हवा, पानी, जंगल और जानवरों को बचाने वाली परियोजना चलाये जाने की जरूरत है जो दरअसल इंसानों को बचाने की परियोजना होगी।

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इंदौर ने तोड़ी कोरोनाकाल की चुप्पी, जंगल बचाने के लिए पेड़ों की तरह खड़े होकर भीगते रहे लोग

दो साल पहले 2019 में मध्य प्रदेश की सरकार ने हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल की नीलामी का टेंडर जारी किया था जिसमें आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को ठेका मिला और सरकार ने 62.64 हेक्टेयर क़ीमती वन भूमि कंपनी को अगले पचास वर्षों के लिए पट्टे पर दे दी।

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पंचतत्व: ये खलनायक हरियाली, जो हमारे जंगलों को चट कर रही है…

आखिर एक झाड़ी से डरने की जरूरत क्या है. जरूरत इसलिए है क्योंकि तेजी से पांव पसार रहे लैंटाना के चलते पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनुकूल घास खत्म होती जा रही है. इसका सीधा असर वन्यजीवों के भोजन चक्र और प्रवास पर पड़ रहा है.

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पंचतत्व: देश में जंगल क्षेत्र बढ़ने का ‘बिकिनी’ सत्य

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2019 के आंकड़े बता रहे हैं कि देश में आजादी के बाद से ही जंगलों के क्षेत्रफल में कोई कमी नहीं आई है. इसके मुताबिक, देश में वन क्षेत्र में करीब 5,188 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है और दिल्ली और गोवा को मिलाकर भूभाग इतना ही है..

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