चंद्रशेखर के साथ गठबंधन न करने की चूक क्या समाजवादी पार्टी को भारी पड़ी?

चुनावों में धारणा और उसके संकेतों का बहुत महत्व होता है। चंद्रशेखर रावण के इस भावुक अंदाज ने दलित मतदाताओं को एक संदेश देने का काम किया कि समाजवादी पार्टी को उनके नेता की परवाह नहीं है। इतना ही नहीं, अपने को अपमानित करने का आरोप लगाते हुए चंद्रशेखर रावण ने दलित समुदाय के मुद्दे पर अखिलेश यादव के रवैये को लेकर भी जो प्रश्न उठाए, उन सबने दलित वर्ग के एक तबके को समाजवादी पार्टी से अलग करने का काम किया।

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विपरीत परिस्थितियां ही क्रांति को जन्म देती हैं! विधानसभा चुनावों के नतीजों से निकलते सबक

रोचक बात यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने विपक्षियों को ही ‘सांप्रदायिक’ बता दिया। नेता और जनता के बीच शानदार ‘कनेक्टिविटी’ रखने वाले नरेंद्र मोदी का मतदाताओं पर असर दिखा भी जब मुझे कुछ मतदाताओं के द्वारा कहा गया कि जब मुसलमान समाजवादी पार्टी के पक्ष में एक हो सकते हैं, तो हम लोग बीजेपी के पक्ष में एक क्यों न हो?

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छह चरण बाद भाजपा के तरकश के तीर खतम होते नज़र आ रहे हैं!

भाजपा को 10 मार्च को एक सदमे के लिए तैयार रहना चाहिए। उसे एक ऐसा नेता परास्‍त करने वाला है जिसकी उम्र भाजपा के राज्य व केन्द्र के सभी महत्वपूर्ण नेताओं की औसत उम्र से कम है।

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यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टियों की सीटवार चुनावी रणनीति और सपा-बसपा की दिक्कत

सपा-बसपा के पास एक ही काट है- अतिपिछड़ों को व्यापक प्रतिनिधित्व और सीटें देते हुए उनके मान-सम्मान व सुरक्षा हेतु एससी/एसटी एक्ट जैसे प्रावधान और लाभकारी योजनाओं में स्पेशल कम्पोनेंट जैसी विशेष योजनाएं संचालित करने का ऐलान।

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यूपी में बाकी जातियों की नाराजगी पर क्यों नहीं सवाल कर रहा है मीडिया?

मीडिया जब जाति पर चर्चा करने ही लगा है तो उसे एक जाति-विशेष के बजाय उत्तर प्रदेश की तमाम जातियों की नाराजगी और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर चर्चा करनी चाहिए।

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उत्तर प्रदेश में विपक्ष क्या संगठित होकर चुनाव को चेहरे से हटा कर मुद्दों पर खड़ा कर पाएगा?

अगला चुनाव बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा होगा जिसमें जीत कम सीटों के फासले से होगी, हालांकि भाजपा की जीत की संभावना प्रबल है लेकिन बिना अथक प्रयास किये यह भी आसान नहीं है।

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राग दरबारी: उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती फैक्टर

बीजेपी के लिए परिस्थिति अगर विपरीत हुई और जो जाति या समुदाय भाजपा या सपा से सहज महसूस नहीं कर पा रहा है, अगर उसका छोटा सा तबका भी बसपा की तरफ शिफ्ट कर जाता है तो उत्तर प्रदेश के मुसलमान बीजेपी को हराने वाले उम्मीदवार को वोट देने से नहीं हिचकेंगे क्योंकि वह ऐसा समुदाय है जिसका एकमात्र लक्ष्य हर हाल में भाजपा को हराना होता है!

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UP: जातिगत गोलबंदियों में बंटे पूर्वाञ्चल के मतदाता के पास भाजपा के अलावा क्या कोई विकल्प है?

पूर्वांचल में अतिपिछड़ी और अति दलित जातियों में लोगों के पास कोई खास कृषि योग्य भूमि नहीं है. इसलिए पूर्वांचल की इन बहुसंख्य जातियों के बीच किसान आन्दोलन का यह सवाल ‘जमींदारों का सरकार से संघर्ष’ बनकर बहुत छोटे स्तर पर कैद हो गया है.

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राग दरबारी: सामाजिक न्याय के अगुवों के हाथ में परशुराम का मातृहंता फ़रसा?

सवाल सिर्फ यह है कि सामाजिक न्याय का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों राजनीतिक दलों में जिस परशुराम की प्रतिमा लगाने की होड़ मची है उसे लोग किस रूप में जानते हैं और उनकी क्या सामाजिक विरासत है?

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UP: कांग्रेस के आंदोलन, सपा की खुशफहमी और बसपा की इंजीनियरिंग में फंसे ब्राह्मण और मुस्लिम

मायावती के इस रुख से यह साफ हो जाता है कि वह एक बार फिर ब्राह्मण समाज और मुसलमान का पूर्व की भाँति समर्थन चाहती हैं जैसा उन्हें 2007 के विधानसभा चुनाव में मिला था, जिसके बाद बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।

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