सबके लिए स्वास्थ्य: विश्व स्वास्थ्य दिवस पर WHO के चार दशक पुराने घिसे-पिटे जुमले का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ का संकल्प “सबके लिए स्वास्थ्य” सुनने में अच्छा लगता है और महसूस होता है कि संस्थाएं हमारी सेहत के लिए वास्तव में बहुत चिंतित हैं लेकिन यथार्थ है कि वैश्वीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के दौर में यह विशुद्ध छलावा है।

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महामारी से बचने के लिए वैश्विक संधि को मुनाफ़ाख़ोरों से कैसे बचाएं?

यदि प्रभावकारी वैश्विक संधि बनानी है जिससे कि महामारी प्रबंधन कुशलता से हो और आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न ही न हो, तो इस पूरी प्रक्रिया में मानवाधिकार उल्लंघन करने वाले और मुनाफ़ाख़ोरी में लिप्त कम्पनी और व्यक्तियों के हस्तक्षेप पर रोक लगाना ज़रूरी है। पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व ने ज़ोर दिया है कि इस संधि प्रक्रिया में सभी की ‘भागीदारी’ हो जो मुनाफ़ाख़ोरी करने वालों के लिए खुला निमंत्रण है।

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बीते एक साल में 91 फीसद बढ़ गयी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की तादाद, बिहार और गुजरात अव्वल

कुपोषण पर ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं।

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वैक्सीन लेने के बाद भी हो रही मौतों के कारण फैलते डर और संदेह के बीच सरकार चुप क्यों है?

सरकार को तत्‍काल वैक्‍सीन के बाद हुए संक्रमण और मौतों के आंकड़े जारी करने होंगे, ताकि इस मामले में पारदर्शिता बनी रहे क्‍योंकि आंकड़े छुपाने से अफ़वाहों को ही बल मिलेगा, उसका कोई लाभ नहीं होगा।

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एक बीमार स्वास्थ्य तंत्र में मुनाफाखोरी का ज़हर और कोरोना काल का कहर

कोरोना एक त्रासदी के साथ-साथ सबक भी है कि हम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बाजार में मुनाफा कमाने वाला एक उद्योग न बनायें, बल्कि राष्ट्र को स्वस्थ और मजबूत नागरिक प्रदान करने वाली एक इकाई के रूप में विकसित करें. निजी चिकित्सा संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण किये जाने की सख्त जरूरत है और इलाज के खर्चे का भी एक मानक बनाया जाना चाहिए.

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संक्रमण काल: महामारी के दौर में डॉक्टरों की भूमिका, सीमाएं और प्रोटोकॉल के कुछ सवाल

कोविड जानलेवा नहीं है। अधिकांश मामलों में हमारा शरीर उससे लड़ सकता है और परास्त कर सकता है। मानवजनित अफरातफरी, जिसके सुनियोजित होने की पूरी आशंका है, ने उसे जानलेवा बना दिया है।

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तम्बाकू महामारी के अंत के लिए क्यों है ज़रूरी अवैध तम्बाकू व्यापार पर रोक?

चूँकि अवैध व्यापार एक वैश्विक समस्या है इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे निबटना ज़रूरी है. 180 देशों से अधिक ने वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि को पारित किया है जो कानूनी रूप से बाध्य संधि है (इसका औपचारिक नाम है विश्व स्वास्थ्य संगठन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टुबैको कण्ट्रोल). इस संधि के आर्टिकल 15, सरकारों को ताकत देता है कि आपस में मिलकर अवैध व्यापार पर अंकुश लगाया जा सके.

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विश्व स्वास्थ्य दिवस: एक साफ, स्वस्थ विश्व के निर्माण का संकल्प

गांधी जी ने कहा है कि स्वतंत्रता पाने के लिए व्यक्ति को इसके लायक बनना होता है और इसके लिए व्यक्तिगत अनुशासन, साफ सफाई, इन्सानियत आदि सबसे पहली जरूरत है।

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तन मन जन: लोगों को दुनिया भर में अंधा बना रही है गरीबी

यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी वर्ल्‍ड इन्स्टीच्यूट की रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी की वजह से वैश्विक स्तर पर रोजाना गरीबों की कमाई में 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ। यदि दैनिक न्यूनतम आय को 1.90 डॉलर का आधार मानें और उसमें 20 फीसद की भी गिरावट आए तो दुनिया में 39.5 करोड़ गरीब और बढ़ जाएंगे।

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तन मन जन: कोरोना से बचे तो अब बर्ड फ्लू की दहशत!

बर्ड फ्लू भारत के लिए कोई नया रोग या संक्रमण नहीं है फिर भी हर साल इस मौसम में उसकी चर्चा चल निकलती है। वर्ष 2004, 2006, 2016 में भारत में बर्ड फ्लू की चर्चा थी। बड़े पैमाने पर मुर्गे-मुर्गियों को मारा भी गया था। महामारी जैसी स्थिति नहीं बनी थी फिर भी महामारी जैसी दहशत फैला दी गई थी और देश में व्यापार का अच्छा नुकसान हुआ था।

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