बनारस में कचौड़ी-जलेबी और मुंबई में ‘गांधी कथा’ के बहाने इरफ़ान की याद

अंत में इस समझ को लेकर कि हमें गांधी की ओर लौटना होगा, हमने इरफ़ान से जल्द मिलने के वादे के साथ विदा ली। मुझे क्या पता था कि ये अंतिम विदाई साबित होगी।

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