समरकंद में प्रधानमंत्री का सम्बोधन दार्शनिक है या महत्त्वाकांक्षी?

समरकंद सम्मेलन के दौरान भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुखों के बीच द्विपक्षीय संवाद की आशा बहुत से प्रेक्षकों ने लगाई थी, किंतु स्वयं प्रधानमंत्री इनके प्रति अनिच्छुक नजर आए। चीन से सीमा विवाद और कश्मीर के मसले पर मोदी को वही भाषा बोलनी पड़ती है जो पुतिन यूक्रेन के विषय में बोल रहे हैं।

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तिर्यक आसन: धर्म और राष्ट्रहित के उचक्के

आवारा भीड़ को कहीं पाकिस्तान का नमक तो नहीं खिलाया जा रहा? बिरयानी बिना नमक के खाई थी? जनता ने पाँच किलो राशन के पैकेट में मिले नमक का कर्ज चुकाया। क्या पाकिस्तान के नमक का कर्ज भी चुकाना होगा?

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रूस-यूक्रेन युद्ध और इसमें अमेरिका-नाटो के हस्तक्षेप का विरोध क्यों किया जाना चाहिए

पूर्वी यूरोप के देश नाटो के साथ गोलबंद हो रहे हैं, लेकिन वहां की जनता में ‘महान रूस’ की अवधारणा जगह बना रही है। पूर्वी यूरोप में यह तनाव उसे गृहयुद्ध की तरफ ले जाएगा, जैसा कि यूक्रेन में हो चुका है। इन गृहयुद्धों का प्रयोग आमतौर पर साम्राज्यवादी खेमे के किसी एक देश के कब्जे में ही बदलता है। ये देश रूस या अमेरि‍का का निवाला बन जाएंगे और जनता गुलामी के भंवर में फंस जाएगी।

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बात बोलेगी: सूचनाओं के प्रवाह में जवाब देने की मजबूरी

अजीब सी मुश्किल है। न बोलें तो चैन कहाँ और बोले तो बेचैन। चुप्प रहें तो कायरता, जो बोल दिये तो सौ इल्ज़ाम। खामोश रहे तो सौ तोहमतें, कह डाला तो जान और सम्मान को खतरा। न कहा तो अपने होने पर ही शक-शुबहा। अजीब हालात होते जा रहे हैं।

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रूस और यूक्रेन के बीच विवाद: आशंकाएं और संभावनाएं

सोवियत संघ से अलग हुए इन देशों के अपने आन्तरिक कारणों के कारण रूस के संबंध निरंतर बिगड़ने लगे थे जबकि इनमें रूस की कोई भूमिका नहीं थी। सोवियत संघ के समय वहां संघीय ढांचा था जिसमें सभी राष्ट्रीयताओं की अलग भाषा, संस्कृति होने के बावजूद उन्हें स्वायत्तता मिली हुई थी।

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तालिबान : भू-राजनीतिक परदे के पीछे

तालिबान के सत्तारोहण को भी एक आभासी फ्रेमवर्क में रख कर अफगानिस्तान में उसके आने को नए-नए मायने दिए जा रहे हैं लेकिन इन सब के सार में एक ही बात है कि तालिबान के आने से अफगानिस्तान पीछे चला गया है.

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