हर्फ़-ओ-हिकायत: ‘भंडारी’ पत्रकारों की मूर्खताओं का इतिहास पहले ही लिखा जा चुका है!

हर्फ-ओ-हिकायत में चूंकि हम वर्तमान को इतिहास के आईने में देखने-समझने की कोशिश करते हैं इसलिए प्रदीप भंडारी मार्का पत्रकारिता जिनको भी अच्छी या बुरी लगती है उन सबको ये जानना चाहिए कि इस पेशे में कितनी नैतिकता है और कितना पाखंड।

Read More

आप न्यूज़ चैनल क्यों देखते हैं?

आप ये सोचिए कि क्या तमाम न्यूज़ चैनल देखने के बावजूद आपको ये बुनियादी जानकारी थी कि लॉकडाउन के दौरान क्या-क्या खुला रहेगा? ट्रेन कब चलेंगी? एक राज्य से दूसरे राज्य में आने-जाने के नियम क्या हैं? क्या ये बातें आपको न्यूज़ चैनलों के द्वारा बतायी गयी थीं या आपने बड़ी मुश्किलों से ये जानकारी खुद जुटायी और फिर भी कंफ्यूज़ रहे?

Read More

पत्रकारिता के एक माध्यम के रूप में टीवी चैनल भीतर से खोखला हो चुका है!

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के समक्ष इन दिनों जिस तरह साख का संकट उत्पन्न हुआ है उसने पत्रकारिता के इस माध्यम को अंदर तक खोखला कर दिया है। समाचार चैनलों को यह बात जितनी जल्दी हो समझ लेना चाहिए वरना यदि देर हो गयी तो यह उनके अस्तित्व का संकट भी हो सकता है। सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत, प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और वेब जर्नलिज्म की मजबूती ने इस माध्यम की प्रासंगिकता और भरोसे को तोड़ा है।

Read More

आर्टिकल 19: सरकार को डिजिटल से दिक्‍कत है, मने टीवी चैनल अब अप्रासंगिक हो चुके हैं

टीवी चैनलों के प्रासंगिकता खो देने की बात हवा में नहीं है। खुद मोदी सरकार ने अदालत में सील ठप्पे के साथ ये हलफनामा दिया है कि ये सब तो हमारे काबू में हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया वाले नहीं आ रहे। आप उन पर लगाम कसिए।

Read More