COVID-19 से उपजे आर्थिक दबाव में पांच लाख से ज्यादा लड़कियां बाल विवाह के लिए मजबूर


यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 65 करोड़ महिलाओं और लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती है। इनमें से एक तिहाई से अधिक भारत में हैं जो बाकी सब देशों से अधिक है। बाल विवाह पर कानूनी प्रतिबंध होने के बावजूद भारत में 22.3 करोड़ ऐसी महिलाएं हैं जिनका विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व हो गया था। 27% लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन के पहले हो जाती हैं और 7% की 15 साल की उम्र से पहले। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली लड़कियों के लिए बाल विवाह का खतरा अधिक होता है। इस कुरीति का सबसे बड़ा कारण है सामाजिक असमानता, शिक्षा का अभाव, गरीबी और असुरक्षा।

सिविल सोसाइटी संगठनों की मदद से चलाये जा रहे वैश्विक प्रयासों द्वारा पिछले एक दशक में इन बाल विवाहों की संख्या में 15% तक की कमी अवश्य आयी है, लेकिन 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने लिए एक लंबा रास्ता तय करना अभी बाकी है।

प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार पर एशिया पसिफ़िक क्षेत्र का सबसे बड़ा अधिवेशन (10वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स), कोरोना महामारी के कारणवश इस साल वर्चुअल/ ऑनलाइन आयोजित हो रहा है।  इसके दसवें वर्चुअल सत्र के दौरान, वॉलन्टरी हैल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वीएचएआई) के वरिष्ठ कार्यक्रम निदेशक डॉ. प्रमेश चन्द्र भटनागर ने बताया कि ‘मोर दैन ब्राइड्स एलायंस’ नामक संगठन भारत सहित 5 देशों में बाल विवाह को कम करने और युवा महिलाओं और लड़कियों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए ‘मैरिज: नो चाइल्डस प्ले’ (शादी कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं है) नाम से एक कार्यक्रम चला रही है। भारत में यह कार्यक्रम 40 जिलों में चलाया जा रहा है।

ओडिशा राज्य के गंजम जिले के खलीकोट ब्लॉक के 177 गाँवों में यह कार्यक्रम वीएचएआई के मार्गदर्शन में कार्यान्वित किया गया है। डॉ. भटनागर ने बताया कि इस प्रयास के अंतर्गत किए गए कार्यों के तहत अभी तक 44 गाँव बाल विवाह मुक्त हो चुके हैं और साथ ही किशोर लड़कियों और लड़कों के जीवन में अभूतपूर्व सार्थक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन भी आये हैं।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत सबसे पहले इन 177 गाँवों में एक बेसलाइन सर्वेक्षण किया गया जिससे पता चला कि 7% से भी कम युवाओं को प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य के बारे में कुछ ज्ञान था। मात्र 10-11% लड़कियों को ही मासिक धर्म के विषय में कुछ जानकारी थी और केवल 2-3% युवाओं को एचआईवी/ एड्स से संबंधित जानकारी थी, परन्तु 40% से अधिक लड़कियों के विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध थे। यह एक बड़ा विरोधाभास था- जहाँ एक ओर किशोरों में प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य का बहुत अल्प ज्ञान था वहीं दूसरी ओर विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध बनाने में कोई कमी नहीं थी। इस बेसलाइन सर्वेक्षण से उन बाधाओं के बारे में भी पता चला जिनके चलते प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक किशोरों की पहुँच कम थी और बाल-विवाह का चलन अधिक था।

दूसरा कदम था इन सभी गाँवों में किशोरों की आबादी का मानचित्रण (मैपिंग) विकसित करना। मैपिंग करने के बाद कार्यशालाएं आयोजित करके 11000 से अधिक किशोर लड़के और लड़कियों के 500 से अधिक समूहों का गठन और क्षमता निर्माण किया गया। समूह के सदस्यों ने स्वयं ही अपने समकक्ष शिक्षकों को चुना। इन सहकर्मी शिक्षकों को प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और जीवन कौशल सम्बन्धी शिक्षा में प्रशिक्षित किया गया। इसके अलावा गाँवों के मौजूदा सामुदायिक समूहों व सामुदायिक नेताओं को भी किशोर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बाल विवाह की रोकथाम करने के लिए चलायी जा रही इस मुहीम में शामिल किया गया।

किशोरियों ने अपना एक माँग पत्र बनाया जो मुख्य रूप से बाल विवाह की रोकथाम पर केंद्रित था। गाँवों के महिला समूहों ने एक समुदाय आधारित अनुश्रवण साधन विकसित किया जिसमें प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और बाल विवाह के लिए संकेतक निर्धारित थे। यह एक बहुत ही सशक्त और उपयोगी साधन साबित हुआ, जिसकी मदद से गाँवों में होने वाली युवाओं के प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के समाधान तथा स्थानीय विकास से सम्बंधित सभी गतिविधियों की निगरानी भी सुचारु रूप से हो सकी।

इन सामुदायिक समूहों की मासिक बैठकें होती हैं, जिसमें गाँव वाले स्वयं ग्राम स्वास्थ्य सुधार योजना बना कर उसे कार्यान्वित कराते हैं और अगली बैठक में उसकी प्रगति रिपोर्ट देते हैं। यदि कार्यान्वयन में कोई समस्या आती है तो गांव की महिलाएं और किशोरियां उचित हस्तक्षेप करके स्थानीय कर्मचारियों की सहायता से उसका समाधान करती हैं।

इस व्यापक मॉडल में एक बहुस्तरीय दृष्टिकोण का उपयोग किया गया जिससे न केवल बाल विवाह रोकने और किशोरों के यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार लाने में सफलता मिली है, वरन लड़कियों का आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण भी हुआ है। उन्होंने कंप्यूटर सम्बंधित कार्य और मोबाइल फ़ोन ठीक-करने के कार्य जैसे व्यावसायिक प्रशिक्षण में दक्ष होकर आर्थिक स्वंतंत्रता प्राप्त की है। उनमें से कुछ ने अपना छोटा मोटा निजी व्यवसाय भी शुरू किया। लड़कियों को साइकिल मुहैय्या कराना भी एक महत्वपूर्ण काम साबित हुआ क्योंकि इससे उन्हें अपने प्रशिक्षण स्थल और स्कूल तक आने-जाने में बहुत सुविधा हो गई, भले ही वे उनके घर से दूर स्थित हों।

इस पूरे कार्यक्रम में ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता, शिक्षक, स्थानीय पंचायत सदस्य और सरकारी अधिकारी जैसे अन्य हितैषियों को भी शामिल करने से बाल विवाह और युवाओं के प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य से सम्बंधित सामाजिक-सांस्कृतिक मानकों को प्रभावित करने में भी मदद मिली है।

इन निरंतर प्रयासों से 128 प्रस्तावित बाल विवाहों को रोकने में सफलता मिली है, जिसमें लड़कियों, समकक्ष शिक्षकों और युवा समूह सदस्यों ने एक अहम् भूमिका निभाई। इन लोगों ने सम्बंधित परिवारों के साथ सीधे बातचीत करके समस्या का समाधान किया। पिछले दो सालों से 44 गांवों में आज तक कोई भी बाल विवाह नहीं हुआ है।

अन्य उपलब्धियों में 11 सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों को किशोर अनुकूल स्वास्थ्य केंद्रों में बदल दिया गया है। ये केंद्र दोपहर में केवल युवाओं के लिए खुले रहते हैं, जहां पर वे अपने स्कूल से लौटने के बाद वहां उपस्थित नर्स तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मियों से अपने प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों पर सलाह ले सकते हैं।

इस परियोजना से संस्थागत प्रसव और जन्म के पंजीकरण को 95% तक बढ़ाने, गर्भ निरोधकों के उपयोग को बढ़ावा देने और किशोर अनुकूल प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवा की सामुदायिक निगरानी करने में भी मदद मिली है।

डॉ. भटनागर ने सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) को बताया कि कोविड-19 तालाबंदी के दौरान भी मासिक धर्म स्वच्छता, प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और कोविड-19 के लिए सुरक्षा व सावधानियां जैसे विषयों पर समकक्ष शिक्षकों और किशोर समूहों के सदस्यों के साथ व्हाट्सएप और ऑनलाइन सत्रों के माध्यम से नियमित बातचीत जारी रही है। एक स्थानीय फोन हेल्पलाइन भी बनाई गई है, जिसपर कोविड-19, प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य मुद्दों, तथा बाल विवाह के मामलों पर सप्ताह में छह दिन सुबह 6 से 9 बजे तक पूछताछ की जा सकती है। कुछ लड़कियों को मास्क की सिलाई के लिए प्रशिक्षित किया गया जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी हुई।

लेकिन यह सच है कि कोविड महामारी ने बाल विवाह को समाप्त करने के कई वैश्विक प्रयासों को झटका दिया है। हाल ही में लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, इस महामारी के आर्थिक कुप्रभाव के कारण 2020 में 500000 से अधिक लड़कियों को बाल विवाह के लिए मजबूर होने और 1 लाख से अधिक लड़कियों के गर्भवती होने की संभावना है।

भारत में भी स्थिति बुरी है। इस वर्ष मार्च से जून की लॉकडाउन अवधि के दौरान केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की नोडल एजेंसी चाइल्डलाइन ने देश में 5584 बाल विवाहों को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया है। कई अन्य ऐसे मामले तो सामने ही नहीं आये होंगें।

सबके लिए सतत विकास के एजेंडा 2030 को लागू करने के अपने प्रयासों में अधिकतर देशों को और भी पिछड़ना पड़ रहा है। सतत विकास लक्ष्य 5.3 का एक लक्ष्य यह है 2030 तक सभी हानिकारक प्रथाओं, जैसे बाल विवाह और जबरन विवाह, को समाप्त करना। इसका एक संकेतक है 20 से 24 वर्ष की आयु की उन महिलाओं का अनुपात जिनकी शादी 18 साल की उम्र से पहले हुई थी, जो वर्त्तमान में बहुत अधिक है क्योंकि अभी भी प्रत्येक वर्ष 1 करोड़ 20 लाख लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती है।


माया जोशी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से सेवानिवृत्त हैं और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के लिए स्वास्थ्य और विकास सम्बंधित मुद्दों पर निरंतर लिख रही हैं


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