समकालीन भारतीय राजनीति का दारा शिकोह, जो कभी ‘शहज़ादा’ था

राहुल के विचार भी अपने परदादा से मिलते-जुलते हैं लेकिन दारा की तरह उनमें भी अपने परदादा के मुकाबले राजनीतिक सूझ-बूझ की कमी देखने को मिलती है। दिन-प्रतिदिन की चुनावी राजनीति को लेकर वे उदासीन नजर आते हैं।

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‘भारत जोड़ो यात्रा’ कैसे बन गयी है संविधान बचाओ यात्रा? सौ दिन पूरे होने पर एक यात्री के विचार

भारतीय अंतर्मन की बाहरी अभिव्यक्ति हमारा संविधान है। इसीलिए भारत जोड़ने की यह यात्रा अपने आप संविधान बचाओ यात्रा में तब्दील होती गयी है क्योंकि आप जब गांधी, नेहरू, कलाम, अंबेडकर या भगत सिंह की याद लोगों को दिलाएंगे तो उसकी सर्वोच्च बाहरी अभिव्यक्ति संविधान में ही होती है, चूंकि वे जिस इतिहासबोध को निर्मित करते हैं वह संविधान में आकर ही पूर्णता पाता है।

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चुनावी पॉलिटिक्स की असाध्य वीणा को यात्रा से साधने की एक कोशिश

भविष्य राहुल गांधी का ही मगर इसके लिए राहुल गांधी को एक लकीर खींचनी पड़ेगी। यह लकीर तब तक नहीं खींच सकते जब तक कांग्रेस के वेटरन चाटुकारों की सरपरस्ती से राहुल खुद को निकाल कर अपनी एक अलग इमेज नहीं बना लेते। यह भारत जोड़ो यात्रा दरअसल राहुल की इमेज बनाने की कवायद ही है।

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भारत जोड़ो यात्रा: एक महीना पूरा होने पर एक यात्री के नोट्स

राहुल गांधी मंचों से और व्यक्तिगत बातचीत में यही संदेश दे रहे हैं कि लोगों को निडर बनना होगा। उन्हें गांधी के रास्ते पर लौटना होगा। आप देखिएगा, भविष्य में हमारे पड़ोस और दूसरे देशों में निरंकुश सरकारों के खिलाफ़ लोग इस यात्रा से प्रेरित होकर ऐसी ही पदयात्राओं पर निकलेंगे।

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राहुल को दिल्ली आकर ‘भारत जोड़ो’ की बजाय ‘कांग्रेस जोड़ो’ अभियान चालू करना पड़ेगा!

राजस्थान में चली यह नौटंकी सबसे ज्यादा खुश किसे कर रही होगी? शशि थरूर को! और सबसे ज्यादा दुखी, किसको? राहुल गांधी को! क्योंकि राहुल ने ही केरल से मंत्र मारा था कि ‘एक आदमी, एक पद’। अब आदमी और पद, दोनों ही हवा में लटक गए हैं।

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भारत जोड़ो यात्रा: बौद्धिकों के समझने के लिए तीन जरूरी पहलू

धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद आदि के विरुद्ध राष्ट्र्वादी परिप्रेक्ष्य से संघर्ष नहीं किया। भारत जोड़ो यात्रा वह जरूरी व ऐतिहासिक कार्य कर रही है।

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