मनु को इतिहास तक सीमित करने का सवाल बनाम मनुस्मृति को ‘सैनिटाइज़’ करने के षडयंत्र
मनु को इतिहास तक सीमित करने का सवाल निश्चित ही व्यापक उत्पीड़ित समुदायों के लिए ही नहीं बल्कि अमन और इन्साफ के हर हिमायती के लिए बेहद जरूरी और मौजूं सवाल लग सकता है, लेकिन जिस तरह यह समाज ‘राजनीतिक बुराइयों से कम और स्वतःदंडित, स्वतःस्वीकृत या स्वतःनिर्मित और टाले जाने योग्य बुराइयों से कहीं अधिक परेशान रहता है उसे देखते हुए इस लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए हमें कैसे दुर्धर्ष संघर्षों के रास्ते से गुजरना पड़ेगा, इसके लिए आज से तैयारी जरूरी है।
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