जनता के फैसले का अपहरण संवैधानिक लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है


2014 के संसदीय चुनाव में शानदार सफलता हासिल करने के बाद सत्ता के लिए बीजेपी की लालच दिन प्रतिदिन बढती ही चली जा रही हैI येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना ही उसकी राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया हैI

पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में देश के गृहमंत्री अमित शाह जी जो अमली तौर से अब भी पार्टी से सम्बन्धित सभी फैसले लेते हैं उन्होंने तो डंके की चोट पर कहा था की ग्राम सभा से लेकर लोक सभा तक सभी चुनाव जीतना ही हमारा मुख्य लक्ष्य हैI पार्टी के पास 3M (Money Media & Manpower) की बहुलता है, इसलिए वह चुनाव इतना महंगा कर देती है कि दूसरी पार्टियां उसका मुकाबला ही नहीं कर पाती  हैंI किसी भी चुनाव से पहले मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और हिंदी के अखबार उसके पक्ष में हवा बनाना शुरू कर देते हैंI फर्जी सर्वे के द्वारा पार्टी और उसके नेता की लोकप्रियता का ढिंढोरा पीटा जाता है। बेशर्मी के साथ साम्प्रदायिक मुद्दे उछाले जाते हैं और विरोधियों खास कर कांग्रेस को देशद्रोही, भ्रष्ट, हिन्दू विरोधी कह कर उसे बदनाम किया जाता हैI कट्टर भक्तों को यदि छोड़ दिया जाए तो देश की अधिकांश जनता को EVM में छेड़छाड़ का पक्का विश्वास हैI यद्यपि चुनाव आयोग इसका बार-बार खंडन कर चुका है लेकिन खुद अपने ही क्रियाकलापों के कारण आयोग खुद ही अपनी साख गंवा चुका है और लोग आज भी पूर्व चुनाव आयुक्तों स्व. सेशन और लिंगदोह को याद करते हैंI

चुनाव प्रक्रिया द्वारा भले ही उस पर उंगली उठती रही हो, सत्ता प्राप्त करना तो ठीक है लेकिन बीजेपी ने सत्ता हथियाने के लिए जो दूसरा रास्ता चुना है  वह अत्यंत खतरनाक और लोकतंत्र विरोधी है जिसे यदि सख्ती से न रोका गया तो चुनाव की पवित्रता ही नहीं बल्कि चुनाव का मक़सद ही समाप्त हो जाएगाI हार को जीत में बदलने के लिए अरबों रुपया खर्च कर के विधायकोंं की खरीदारी उन्हें सरकारी मशीनरी द्वारा डरा धमका के पाला बदलने के लिए मजबूर करना, दलबदलू विधायकोंं को सदस्यता समाप्त होने पर अपनी पार्टी से चुनाव लड़़वा  के जितवाना, उन्हें मंत्री बना कर लूट और भ्रष्टाचार की खुली छूट देना, यह सब लोकतंत्र और संविधान की हत्या नहीं तो और क्या हैI

जिस संविधान का आरएसएस शुरू से विरोधी रहा है लेकिन जिसे लागू करना वह रोक नहीं पाया था अब पूर्ण सत्ता पाने के बाद वह उसकी आत्मा निकाल कर उसे निष्क्रिय कर देना चाहता हैI संवैधानिक संस्थाओं का भगवाकरण कर के उन्हें अपनी मर्जी का गुलाम बना लिया गया हैI ऐसा लगता है संघ आंबेडकर के संविधान की आत्मा निकल कर उसे केवल Bunch of Words बना कर गुरु गोलवलकर के Bunch of thoughts द्वारा देश का शासन चलाना चाहता हैI

विधायकों को खरीदने, उन्हें मंत्री बना कर भ्रष्टाचार और लूट की खुली छूट देने का सबसे नंगा नाच बीजेपी द्वारा उत्तर प्रदेश में किया गया था जब BSP और कांग्रेस के विधायकों को तोड़ कर बीजेपी ने कल्याण सिंह की सरकार बचाई थी और सभी दल बदलू विधायकों को करंसी नोटों से भरे भारी भारी सूट केस दे कर और उन सब को मंत्री बना कर मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या 100 से भी ऊपर कर दी। इसी नाटक में तत्कालीन विधानसभा स्पीकर केसरी नाथ त्रिपाठी ने दल बदल को किस्तों में होने को भी मंज़ूरी दे कर हाथ की ऐसी सफाई दिखाई दी थी कि सुप्रीम कोर्ट तक हैरत में पड़ गया था। इतना ही नहीं, इसी कांड में बीजेपी ने एक नया धर्म भी खोज निकाला था जिसे आपदा धर्मं नाम दिया गया थाI फिर कर्नाटक में एक नया तजुर्बा किया गया- कांग्रेस के विधायकों से इस्तीफ़ा दिलवा कर सदन के सदस्यों की संख्या कम कर दी गयी जिससे बीजेपी बहुमत में आ गयी। इन सभी विधायकों को मंत्री बना दिया गया और बाद में बीजेपी ने अपने टिकट पर उन्हें जितवा भी लियाI तकनीकी तौर से यह प्रक्रिया भले ही सही रही हो लेकिन यह हमारे संविधान की मूल आत्मा के ख़िलाफ़ ही नहीं बल्कि जनता के फैसले का अपहरण करना हैI

राजभवनों में बैठे संघ के कार्यकर्ता भी पूरी बेशर्मी और ढिठाई के साथ उसका काम आसन करते रहते हैं- मसलन गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं था। अन्य पार्टियों से बातचीत चल रही थी। कांग्रेस के नेताओं ने गवर्नर से सरकार बनाने का दावा पेश करने का समय माँगा। उन्हें सुबह साढ़े नौ बजे का टाइम दिया गया लेकिन सुबह पांच बजे ही बीजेपी के मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी गयी। महाराष्ट्र के गवर्नर ने भी यही खेल खेला और दो दिन तक बीजेपी की सरकार रही भी लेकिन यहाँ चूँकि शिवसैनिक सड़क पर भी न्याय करने की हिम्मत रखते हैं इसलिए भाजपा का मंसूबा कामयाब नहीं हो सका और शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस ने मिल कर सरकार बना ली लेकिन बीजेपी चुप नहीं बैठी और अंदरखाने षड्यंत्र चल रहा है I कर्नाटक में भी बीजेपी ने पुराना नुस्खा अपना के कांग्रेस के विधायकों से इस्तीफ़ा दिलवाया और अपनी सरकार बना ली। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उसका काम आसान कर दियाI

सत्ता का खून बीजेपी के मुंह को लग चुका है। मध्यप्रदेश के बाद उसका अगला निशाना राजस्थान बना लेकिन यहाँ अशोक गहलोत ज़रा जीवट वाले निकले। उन्होंने बीजेपी के हथियार से ही बीजेपी को पटखनी दे दी। अव्वल तो बागी सचिन पायलट केवल 18 ही विधायक जुटा पाए, उनके हटने के बावजूद गहलोत को पूर्ण बहुमत हासिल है। इसीलिए मुख्यमंत्री की बार-बार अपील के बावजूद राज्यपाल असम्बली का इजलास नहीं बुला रहे हैं। मामला स्पीकर से हाई कोर्ट, फिर वहाँ से होते हुए सुप्रीम कोर्ट, फिर हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुँच के जलेबी बना हुआ है। पूरी आशा है कि यहाँ बीजेपी का षड्यंत्र सफल नहीं हो पायेगा।

इन सब उतार-चढ़ाव में सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर सरकार बनाने और बिगाड़ने के यह अनैतिक-असंवैधानिक खेल यूँ ही चलने दिया गया तो क्या हमारा संवैधानिक लोकतंत्र बच भी पायेगा? दल बदल और जनता के फैसले का साम दाम दंड भेद द्वारा अपहरण कानून बना कर शायद न रोका जा सके क्योंकि हर कानून में कोई न कोई छेद ढूंढ ही लिया जाता है। हां, यदि जनता चाहे तभी उसे रोका जा सकता है और उसका एक ही रास्ता है कि जनता ऐसे ज़मीरफरोश दलबदलुओं और उनका ज़मीर खरीदने वाली पार्टी  के इन अनैतिक कामों को चुनाव में रिजेक्ट कर दे और उन्हें ऐसा सबक दे कि फिर वह उनके फैसलों को धन और सत्ता के बल पर खरीदने की हिम्मत न करें। जनता ही जब तक अनैतिक कृत्यों को नहीं रिजेक्ट करेगी और धर्म जाति व अन्य लालच पर वोट देगी तब तक यह अनैतिकता जारी रहेगी और उसके फैसलों का अपहरण नहीं रुक सकेगा।

संवैधानिक लोकतंत्र, ख़ास कर चुनाव की पवित्रता बचाए रखना जनता की ज़िम्मेदारी है।


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