हर्फ़-ओ-हिकायत: सात बनाम सत्तर बनाम सात सौ साल के बीच फंसे युवाओं का इतिहास-रोग

मनोज मुंतशिर शानदार लिखते हैं और बहुत शानदार तरीके से वे राष्ट्रीय बहस के केन्द्र में आ गए हैं, लेकिन इस्लाम के भारत अभियान के जिस हिस्से को वो रक्तरंजित बताकर अपनी मार्केटिंग कर रहे हैं उसके आगे-पीछे के इतिहास में उसी मिट्टी में मिल जाने की इतनी कहानियां हैं कि मनोज को सोचना पड़ जाएगा कि उन्हें किस कहानी पर यकीन है।

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बात बोलेगी: दांडी की हांडी में पक रहा है “नियति से मिलन” का संदेश!

आने वाले 75 सप्ताहों तक ऐसा ही कुछ-कुछ होता रहेगा ताकि आज़ादी की हीरक यानी डायमंड जुबली मनाते समय आज़ादी के मूल आंदोलन में न सही, लेकिन उसके नाट्य रूपान्तरण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अत्यंत सक्रिय भूमिका का उल्लेख किया जा सके।

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