मराठी साहित्य में दलित अस्मिता के प्रकाश-स्तंभ

जब बाबूराव बागुल की आत्मकथा सबसे पहले उनकी मातृभाषा मराठी में प्रकाशित हुई थी तो उसने मराठी साहित्य और समाज को झकझोर दिया था। भारतीय समाज में जाति पर आधारित दमन और अपमान की साहसभरी कथा कहने कहने वाली यह पुस्तक अब एक क्लासिक मानी जाती है और दलित साहित्य में मील का पत्थर।

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जब राजभवन भी झोपड़ी बन जाए: दलित साहित्य के एक संरक्षक राजनेता माता प्रसाद का जीवन

उन्हें बड़े पदों पर होने और रहने का गुमान भी नहीं था। माता प्रसाद के जीवन में जो भी था, उसमें व्यक्तिगत कुछ था ही नहीं। जो भी था वह पूरे समुदाय के लिए सार्वजनिक था।

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