जम्मू-कश्मीर का नया डोमिसाइल कानून: संघर्षों के जन-इतिहास पर सत्ता का नया मुलम्मा
कुछ आलोचकों ने नये डोमिसाइल कानून के अंतर्गत चलायी जाने वाली प्रक्रियाओं की तुलना इज़रायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक की बस्तियों के साथ भी की है।
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कुछ आलोचकों ने नये डोमिसाइल कानून के अंतर्गत चलायी जाने वाली प्रक्रियाओं की तुलना इज़रायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक की बस्तियों के साथ भी की है।
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स्वाधीनता आन्दोलन में निहित धर्मनिरपेक्षता ने आधुनिक भारत के निर्माण में भूमिका निभायी. राममंदिर आन्दोलन में निहित साम्प्रदायिकता हमें भारतीय संविधान के मूल्यों से दूर, पुनरुत्थानवाद और अंधश्रद्धा की अंधेरी गलियों में धकेल रही है.
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संत लाल दास वही शख्स थे जिन्होंने राम मंदिर-बाबरी विवाद के शांतिपूर्ण हल की बात की थी. वो इस मुद्दे के राजनीतिकरण के सख्त खिलाफ थे. जब तक वो जिंदा रहे परिषद, बीजेपी और आरएसएस की दाल अयोध्या में नहीं गल पायी.
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जहां तक बौद्धिक तबके की प्रतिक्रिया का सवाल है, मस्जिद गिराए जाने के 15 दिनों के अंदर ही दिल्ली से 80 कवियों, कथाकारों, रंगकर्मियों और विभिन्न क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम लखनऊ पहुंच गई जहां उसने एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया।
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कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने की पहली बरसी पर फिल्मकार संजय काक से जितेंद्र कुमार की बातचीत
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बीते तीन दशकों से जिन दो कार्यों के न हो पाने से हिंदुस्तान का बहुसंख्यक समाज खुद को गंभीर रूप से असहाय, निर्बल और हीनताबोध से ग्रसित पा रहा था, आज ऐसा संयोग रचा गया कि दोनों ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न होने जा रहे हैं। कश्मीर के सच्चे अर्थों में विलय (जिसे आपने मुकुट के रौंदे जाने के तौर पर ऊपर पढ़ा) की बरसी और राम का भव्य मंदिर।
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कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटे 5 अगस्त 2020 को एक साल पूरा हुआ। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र कुमार ने मशहूर डाक्यूमेंट्री निर्माता फिल्मकार संजय काक से कश्मीर पर बात की।
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उनकी मृत्यु एक लंबी बीमारी के बाद 28 अप्रैल 2010 को लखनऊ के मेयो अस्पताल में हो गई। उनकी मृत्यु का दुख उनके कुछ थोड़े-से मित्रों और लंबे समय तक सहयोगी मीरा बहन ने ही महसूस किया। लखनऊ से बाहर चिनहट में अक्षय ब्रह्मचारी आश्रम है जो आज भी इस अयोध्या के गांधी का कार्य आगे बढ़ाने में लगा हुआ है।
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जिस राम को तुलसीदास जानते थे, वाल्मीकि जानते थे, धीरे-धीरे वे राम नेपथ्य में चले गये। संघ और भाजपा ने अपने लिए एक नये राम का निर्माण किया। वे राम, जो फूलों से कोमल और ब्रज से भी कठोर थे उन्हें धीरे-धीरे केवल कठोर बनाया जाने लगा। राम की भुवनमोहिनी मुस्कान और कोमल काया तस्वीरों के साथ-साथ आम जन के अवचेतन से भी दूर की जाने लगी।
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अगर राम-मंदिर बन ही रहा है, तो भी समस्याएं रहेंगी, उनके साथ हमें जीना होगा, उनके निबटारे का प्रयास करना होगा, लेकिन देश में बहुसंख्यक आबादी के पुराने ज़ख्म पर मुकम्मल मरहम लगेगा और घाव दोबारा नहीं बहेगा।
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