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जब देश संविधान दिवस मनाने में व्यस्त था, एक दलित की हत्या कर दी गई…

कल ही भारत में संविधान दिवस मनाया गया। लोग अखबारों में लेख लिख रहे थे- हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में। भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के प्रमुख संविधान की प्रति अपनी चुनावी रैलियों में लहराते हुए बताते हैं कि देश का संविधान खतरे में है! प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहते हैं कि “मैं बाबा साहब के संविधान को आंच नहीं आने दूंगा।”

Voices

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ओडिशा: बिजली निजीकरण और प्रीपेड स्मार्ट मीटर के खिलाफ किसानों के संघर्ष को SKM का समर्थन

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने ओडिशा के मुख्यमंत्री से बदले की कार्यवाही से दूर रहने का किया आग्रह और पीएम मोदी से वादा निभाने और चर्चा शुरू करने की मांग …

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बहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन

पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।

Lounge

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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें

पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?

COLUMN

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सम्मान केवल निजी उपलब्धि नहीं, हाशिये के लिए संघर्ष का प्रमाण है: एक आत्मस्वीकृति

इस समय, जब व्यक्तिगत और पेशेवर मोर्चे पर चुनौतियां हमारे सामने खड़ी हैं, यह सम्मान हमारे लिए आशा और हिम्मत का प्रतीक बनकर आया है। यह हमें विपरीत परिस्थितियों का सामना करने और हर बाधा के खिलाफ मजबूती से खड़े रहने की प्रेरणा दे रहा है।

Review

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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह

उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।

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