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फासिस्ट हिंसा का सौम्य मुखौटा है सामाजिक डार्विनवाद
क्या हमारा वैज्ञानिक समुदाय इतना सक्षम है कि भविष्य में वह धुर दक्षिणपंथियों, फासीवादियों और बाजारवादियों द्वारा फैलायी जाने वाली हिंसा और डार्विनवाद के आधार पर उस हिंसा के वैचारिक बचाव पर रोक लगा पाएगा?
Voices
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तीन साल में 25 से ज्यादा शिक्षक छोड़ गए अम्बेडकर युनिवर्सिटी, फैकल्टी एसोसिएशन ने जारी किया विस्तृत मांगों का चार्टर
फैकल्टी एसोसिएशन का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में वह विश्वविद्यालय द्वारा अनुभव की गई लगातार गिरावट पर संकट को दर्शाता रहा है और विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को परेशान करने वाले कारकों को एयूडी प्रशासन से साझा करता रहा है। एयूढीएफए ने अपने चार्टर में जिन गंभीर मुद्दों को उठाया है उनमें एयूडी की गिरती रैंकिंग, आवेदनों में गिरावट, बाह्य वित्तपोषित परियोजनाओं की समाप्ति, और फैकल्टी का शोषण है।
Editor’s Choice
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अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए क्या मोदी संविधानेतर तरीके भी अपना सकते हैं?
तमाम कोशिशों के बावजूद अगर एनडीए बहुमत प्राप्त कर पाने में विफल साबित हो जाता है तो क्या मोदी लोकतांत्रिक तरीकों से सत्ता-हस्तांतरण के लिए राजी हो जाएँगे?
Lounge
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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें
पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
COLUMN
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मणिपुर डायरी: हेड हंटर की वापसी और पूर्वोत्तर में औरतों की आजादी का मिथ
दूसरी जनजाति से प्रेमसंबंध और विवाह को हतोत्साहित किया जाता है, लेकिन अगर किसी ने प्रेम किया है और उसे जाहिर करता है तो उसे कतई रोका नहीं जाता है। अत: जनजातीय विवाह खूब होते हैं और कोई जनजाति इन्हें प्रतिबंधित नहीं करती। मैतेइ और कुकियों के बीच भी ऐसे विवाह काफी हुए हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि इन आजादियों का उस समय कोई मूल्य नहीं रह जाता, जब इनके बीच आपसी संघर्ष होता है।
Review
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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह
उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।
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सावित्री बाई फुले को सिर्फ अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में देखने की जरूरत है
सावित्री बाई फुले को सिर्फ इस लिहाज से न देखा जाए कि वह एक दलित महिला थीं और उन्होंने कुछ स्कूलों की स्थापना की। उनका योगदान सिर्फ कुछ जातियों के विकास तक नहीं सीमित है। सावित्री बाई फुले अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखती थीं।