Open Space

View All

नारायण गुरु पर विजयन का ‘विवादित’ भाषण और भाजपा की बेचैनी

भाजपा इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। नायर सेवा सोसाइटी (उच्च जाति की संघटन) के साथ भाजपा ने विजयन पर आलोचना शुरू की है। आलोचना के मुद्दे वही पुराने हैं कि “परंपराओं में बदलाव क्यों किया जा रहा है? अन्य धर्मों की परंपराओं पर आलोचना क्यों नहीं की जाती? परंपराओं को ‘दुष्ट’ कहने का उन्हें क्या अधिकार है?”

Voices

View All

गुरुग्राम: मारुति कर्मचारियों का आंदोलन तेज, 30 जनवरी को लामबंदी और मार्च

मांगपत्र 9 जनवरी, 2025 को कंपनी प्रबंधन को भी सौंपा गया। श्रम विभाग ने 31 जनवरी, 2025 को कंपनी प्रबंधन और संघ के साथ त्रिपक्षीय बैठक निर्धारित की है। प्रदर्शन में हरियाणा के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा गया और 30 जनवरी को आईएमटी मानेसर में बड़े पैमाने पर लामबंदी और मज़दूर मार्च की घोषणा की। विभिन्न राज्यों के अस्थाई मज़दूरों और मारुति से निकाले गए मज़दूरों के प्रतिनिधियों की एक कार्यसमिति इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही है।

Editor’s Choice

View All

बहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन

पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।

Lounge

View All

बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें

पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?

COLUMN

View All

निजी अनुभव से सामूहिक मुक्ति तक: बनारस के दलितों पर लियोनार्डो वेर्जारो की एथनोग्राफी

लियोनार्डो का वाराणसी के दलितों पर काम एक चमकदार उदाहरण है कि मानवविज्ञान की जड़ें यदि निजी करुणा और सामूहिक कार्रवाई में हों तो वह कहीं ज्‍यादा न्‍यायपूर्ण और करुणामय जगत की राह रोशन कर सकता है। लियोनार्डो का बनारस में किया फील्डवर्क पूरी दुनिया के लिए निजी और सार्वजनिक के बीच संबंध को समझने का एक दस्‍तावेज है।

Review

View All

पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह

उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।

Blog

View All