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क्यों आंदोलन कर रहे हैं देश भर के मनरेगा मजदूर?
निखिल डे बताते हैं, “मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी तक करीब 16 हजार करोड़ रुपए का भुगतान नहीं हो पाया है जो कि साल खत्म होने तक 25 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है.”
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हमारी, आपकी काल-बेला को लिखा है समरेश दा ने
पहली कहानी देश बांग्ला की प्रतिष्ठित पत्रिका देश में छपी। उपन्यास काल बेला के लिए उन्हें 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
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हम तब भी कहते थे कि बेगुनाह हैं, और आज अदालत भी यही कह रही…
देश को समझना होगा कि ये नौजवान जिन्हें सालों बाद छोड़ा जा रहा ये इस देश के मानव संसाधन हैं. जेल में कैद कर सियासत कामयाब हो सकती है पर मुल्क नहीं.
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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें
पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
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संक्रमण काल: डेढ़ दशक पहले निकली एक लघु-पत्रिका में प्रासंगिक तत्वों की तलाश का उद्यम
यह अनायास ही नहीं कहा जा रहा कि मशीनें जिस तेज गति से चिकित्सा विज्ञान में नई-नई खोजें करने में सफल हो रही हैं, उससे संभावना है कि अगर नोबल देने का मौजूदा पैमाना बरकरार रहा तो वर्ष 2036 तक नोबेल पुरस्कार किसी मशीन को देना होगा।
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औरंगज़ेब: अच्छे और बुरे के बीच फंसा एक बादशाह
संवाद प्रकाशन से आई 200 रुपये की यह किताब इस समय की साम्प्रदायिक राजनीति को समझने और 300 साल पहले मर चुके अपने दौर की दुनिया के सबसे ताक़तवर बादशाह के साथ न्याय करने के लिए एक जरूरी जरिया है
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योगी सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा सह-प्रायोजित मंच पर साहित्य अकादमी से सम्मानित तीन कवि
कार्यक्रम की शुरुआत हुई अखिल भारतीय कवि सम्मेलन से. इस कवि सम्मेलन में तीन-तीन साहित्य अकादमी विजेता कवियों ने भाग लिया. देश के प्रख्यात कवि लक्ष्मी शंकर बाजपाई, लीलाधर मंडलोई और सविता सिंह ने काव्य प्रस्तुति से एक बेहतरीन समा बाँधा.