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आम आदमी पार्टीः दिल्ली की हार ने खड़े किए पंजाब में सवाल
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार के पंजाब पर पड़ने वाले प्रभाव पर राजनीतिक विश्लेषकों और पंजाब के कई बुद्धिजीवियों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।
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तीन दिन से जारी है मारुति के मजदूरों का दमन, प्रशासन ने नहीं माना कोर्ट का आदेश
मारुति सुजुकी के अस्थायी श्रमिकों ने पिछले तीन दिनों में मानेसर और गुरुग्राम में पुलिस कार्रवाई के बावजूद असाधारण साहस और संकल्प दिखाया और पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। प्रबंधन और पुलिस-प्रशासन लंबे समय से चल रही इस कार्रवाई के बावजूद श्रमिकों को डराने और उनके संघर्ष को रोकने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
Editor’s Choice
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बहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन
पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।
Lounge
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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें
पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
COLUMN
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निजी अनुभव से सामूहिक मुक्ति तक: बनारस के दलितों पर लियोनार्डो वेर्जारो की एथनोग्राफी
लियोनार्डो का वाराणसी के दलितों पर काम एक चमकदार उदाहरण है कि मानवविज्ञान की जड़ें यदि निजी करुणा और सामूहिक कार्रवाई में हों तो वह कहीं ज्यादा न्यायपूर्ण और करुणामय जगत की राह रोशन कर सकता है। लियोनार्डो का बनारस में किया फील्डवर्क पूरी दुनिया के लिए निजी और सार्वजनिक के बीच संबंध को समझने का एक दस्तावेज है।
Review
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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह
उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।
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शिक्षा का लोकतान्त्रिक मूल्य और डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया सूत्र ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ इस सूत्र में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश छिपा हुआ है।