बिहार: कुर्सी बचाने की एक सामान्य घटना और दर्शकों की असामान्य उत्तेजना

नीतीश की राजनीतिक यात्रा को देखते हुए कोई सामान्य व्यक्ति भी यह बड़ी आसानी से कह सकता है कि वे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि रखने वाले राजनेता हैं और इसकी पूर्ति के लिए वे बड़ी आसानी से विचारधारा और नैतिकता के साथ समझौते कर सकते हैं।

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विधानसभा में राजद की राजनीति बनाम भागलपुर विश्वविद्यालय में उजागर असली चरित्र

पूरे मामले में अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने और विपक्षी स्वर को दबाने के लिए एक दलित लड़के का उपयोग किया जा रहा है और एससी-एसटी एक्ट को औजार बनाया जा रहा है. यह घोर ब्राह्मणवादी व्यवहार है. दलित अस्मिता का मजाक उड़ाना है, एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ ब्राह्मणवादी दुष्प्रचार का मौका मुहैया कराना है.

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बिहार चुनाव में अबकी जाति के सवाल पर उन्माद नहीं है और यही तेजस्वी की कामयाबी है

दिल्ली स्थित विकासशील समाज अध्ययन पीठ, जिसे संक्षिप्त रूप में सीएसडीएस कहा जाता है, के एक अध्ययन में यह बात उभर कर आई है कि एनडीए फ़िलहाल आगे तो है, लेकिन वह बहुत आगे नहीं हैं. उसके बहुत करीब महागठबंधन है.

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चुनावीबिहार-2: सौ लुकार, एक लबार, हवाई सौगात झारमझार

लालू प्रसाद को खुद उनके बेटे ने वनवास दे दिया है। कोर्ट भले ही उनको अक्टूबर के अंत में रिहा करने को तैयार हो गया है, लेकिन तेजस्वी ने अभी ही उनको मुक्त कर दिया है। आरजेडी के पोस्टर्स में इस बार उनके सबसे बड़े आइकन लालू प्रसाद यादव मौजूद नहीं हैं।

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राग दरबारी: क्या राजद का बीजेपी से गठबंधन संभव है?

अगर राजद और बीजेपी के बीच सचमुच कुछ पक रहा है या चुनाव के बाद भी किसी तरह का गठबंधन होता है तो यह सामाजिक औऱ लोकतांत्रिक राजनीति की पिछले तीस वर्षों में सबसे बड़ी हार होगी और निजी तौर पर लालू यादव की सांप्रदायिकता व फिरकापरस्ती के खिलाफ एक नायक के रूप में बनी छवि भी टूटेगी.

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