कोरोनाकाल में स्कूली शिक्षा के अभाव ने बच्चों का भविष्य अंधेरे में छोड़ दिया है

आभासी कक्षा उनके लिए वरदान सिद्ध हुई हैं जो घर बैठे पढ़ना चाहते हैं-जैसे विवाह के बाद तमाम लड़कियों की शिक्षा बाधित हो जाती है, तो वे इसका लाभ ले सकती हैं। पैर टूट जाए तो भी कोई छात्र घर पर कक्षाएं कर सकता है पर सामान्‍य स्थिति में बच्चों के लिए यह बिल्कुल कारगर नहीं है। गाँधी जी ने जो ट्रिपल एच (मस्तिष्क, हृदय और हाथ) के विकास की अवधारणा दी है उसमें यह बिल्कुल असफल है। ऑनलाइन कक्षा केवल विकल्प है, इससे केवल काम चलाया जा सकता है, यह पूर्ण समाधान नहीं है।

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स्कूली शिक्षा का गहराता संकट और डिजिटल स्पेस में लटके बच्चों का भविष्य

जब ऑनलाइन कक्षाओं के सुचारू संचालन के दावे केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा बड़े जोर-शोर से लगातार किए जा रहे हैं तब यह यह दुःखद एवं चिंतनीय स्थिति कैसे बन गयी है?

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महामारी की दूसरी लहर में भी उपेक्षित छात्र समुदाय पर बात कब होगी?

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी ‘परीक्षा पर चर्चा’ जैसे खोखले प्रवचन से आगे बढ़कर छात्र समुदाय के हित में कुछ ज़रूरी कदम उठाने चाहिए जो असल में उनके काम आएं। सरकार को आगे आकर ‘देश के भविष्य’ को बचाने की सख़्त ज़रूरत है।

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परंपरागत शिक्षा पद्धति के लिए तकनीक से दोस्ती उसके अस्तित्व का सवाल बन चुकी है

परिवर्तन यदि समाज के लाभ के लिए हो रहा है तो उसे न स्वीकारना, समाज के विकास में बाधक बनना है

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