जोशीमठ के आईने में हिमाचल का दर्दनाक भविष्य और विदेशी वित्तीय पूंजी का तांडव

हिमाचल के अंदर 2019 में हुई इनवेस्टर मीट के तहत जो 95 हजार करोड़ के मेमरोंडम ऑफ अंडरस्टेंडिग (एमओयू) हुए हैं अगर यह लागू हो जाए तो कितने जंगल का नाश होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इतना ही नहीं सरकार हाईड्रो प्रोजेक्ट, मंडी के बल्ह, नांज, तत्तापानी जैसे इलाकों की उपजाऊ भूमि को भी बड़ी परियोजानाओं के लिए दे रही है।

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जोशीमठ क्षेत्र में चल रही सभी जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण और विस्फोट पर तत्काल रोक: HC

नंदा देवी बायोस्फेयर में ही पूर्व में 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर के टूटने की घटना हुई थी जिसके बाद पीसी तिवारी द्वारा यह जनहित याचिका माननीय उच्च न्यायालय में योजित की गई, जिसने उनके द्वारा अर्ली वार्निंग सिस्टम, असंतुलित विकास को रोकने संबंधी दिशानिर्देश उच्च न्यायालय से चाहे गए।

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जोशीमठ त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार?

हिमालय युवा है और प्राकृतिक रूप से नाजुक है। इससे चट्टान में दरारें और फ़्रैक्चर बनते हैं जो भविष्य में चौड़े हो सकते हैं और रॉकफॉल/ढलान विफलता (स्लोप फ़ेलियर) क्षेत्र बना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंसानी हस्तक्षेप ने इसे और भी बदतर बना दिया है, चाहे वह पनबिजली संयंत्रों का विकास हो, सुरंगों का विकास हो या सड़कों की योजना हो।

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