COP26: गहराते जलवायु संकट के बीच देशों और निगमों का जबानी जमाखर्च व पाखंड

ऐसा लगता है कि ये देश अपने यहां के कॉरपोरेट प्रतिष्‍ठानों के प्रवक्‍ता के रूप में काम कर रहे हैं जो ग्‍लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटिग्रेड (प्राक्-औरद्योगिक दौर से) तक सीमित रखने के लक्ष्‍य के प्रति बेपरवाह हैं। स्‍पष्‍ट है कि इन देशों के निगमों ने अंतिम समझौते को कमजोर करने के लिए भारत का इस्‍तेमाल किया है। ये वही निगम हैं जो भारत के सत्‍ताधारी राजनीति दलों को बेनामी चंदा देते हैं।

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COP-26: बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर देशों के समर्थन में अपने पत्ते खेलने की ज़रूरत

? फिलहाल, सभी प्रमुख देश इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि बुरे नतीजों के लिए दोषारोपण किसी पर न हो, हालांकि उनकी ऊर्जा अच्छे परिणाम सुनिश्चित करने पर होनी चाहिए- एक ऐसा परिणाम जो किसी भी स्तर पर सभी के लिए स्वीकार्य हो।

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COP26: जलवायु के दुश्मन धरती को बचने देंगे?

हाल ही में एक थिंक टैंक “काउंसिल फार इनर्जी, इन्वायरमेंट एण्ड वाटर” (SEEW) ने मोदी सरकार को अपील की कि वह 2050 मे नेट जीरो स्वीकार नहीं करे। इसे 2070 तक टाल दिया जाये। मोदीजी ने इसे स्वीकार कर लिया और ग्लासगो मे घोषणा कर दी कि भारत 2070 में नेट जीरो जारी करेगा।

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ग्लासगो क्लाइमेट समिट से पहले UNGA पर निगाह, जलवायु परिवर्तन पर सार्थक संवाद अपेक्षित

आज ग्लासगो क्लाइमेट समिट से बमुश्किल 50 दिन पहले संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली (यूएनजीए) का 76वां सत्र शुरू हुआ है। इस बैठक से तमाम उम्मीदें हैं, खास तौर से इसलिए क्योंकि इसमें होने वाली चर्चाएं और निर्णय वैश्विक जलवायु नीतियों की दशा और दिशा को बदल सकते हैं।

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