कोरोना काल में बच्चों की शिक्षा की चुनौती पर सांसदों के साथ RTE फोरम का वर्चुअल संवाद

फोरम द्वारा पेश 13 सूत्री मांगों के मद्देनजर सांसदों ने एक स्वर से अफसोस जताया कि जब शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त वित्तीय जरूरत थी, तब वर्ष 2021 में शिक्षा के राष्ट्रीय बजट में भारी कटौती की गई। कोरोना की पहली लहर के बाद अतिरिक्त सहायता नहीं मिलने की स्थिति में भारत के ग्रामीण इलाकों के 64% बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाने की आशंका को लेकर उन्होंने गहरी चिंता जताई।

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‘कोरोना में कोर्ट’: अदालतों पर निर्भर आबादी की लॉकडाउन में बर्बादी का एक दस्तावेज

यह फिल्‍म पटना हाइकोर्ट सहित राज्‍य की विभिन्‍न अदालतों पर निर्भर आबादी के बीच जनज्‍वार फाउंडेशन द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण पर आधारित है। एक घंटे की इस फिल्‍म में अदालती कामों से जुड़े हर तबके की समस्याओं को दिखाया गया है।

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कोरोना के लड़ के जनता की इम्यूनिटी बढ़ चुकी है, PM लाल किले से क्या बात करेंगे?

सत्तारूढ़ दल के लिए विपक्षी दलों के साथ-साथ जनता की भूमिका को भी संदेह की नज़रों से देखने की ज़रूरत का आ पड़ना इस बात का संकेत है कि वह अब अपने मतदाताओं को भी अपना विपक्ष मानने लगा है।

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बात बोलेगी: एक दूजे की प्रार्थनाओं और प्रतीक्षाओं में शामिल हम सब…

सब एक-दूसरे का किस-किस तरह से इंतज़ार करते हैं यह बात शायद सामूहिक स्मृति से भुलायी जा चुकी थी। इसे इस महामारी ने फिर से साकार कर दिया है। यहां पूरा देश और समाज एक दूसरे के इंतज़ार में है। अगर ठीक से इस इंतज़ार की ध्वनियाँ सुनी जाएं तो असल में सारे लोग एक-दूसरे की बेहतरी के इंतज़ार में हैं। कोई केवल अपने लिए प्रार्थना नहीं कर रहा है, बल्कि उसकी प्रार्थना में सबके लिए कुछ न कुछ मांगा जा रहा है।

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बंद सामुदायिक रसोइयों, भ्रष्ट PDS और गहराती भुखमरी के आईने में मुफ़्त राशन का सरकारी वादा

दिवाली तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्‍ध करवाने की प्रधानमंत्री की घोषणा की ज़मीनी हकीकत बहुत जुदा है। अगर लोगों को निशुल्क राशन और कम्युनिटी किचन जैसी सुविधाएं मिल पा रही होतीं तो ग्राउंड से वो आवाजें नहीं आती जो मोबाइलवाणी तक पहुंच रही हैं।

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एक गंदगी-प्रधान देश में गरीबों की इम्यूनिटी का मध्यवर्गीय मिथ

गरीबी और गंदगी में एक घनिष्ठ संबंध बनता है। लोग झुग्गी-झोंपड़ियों में रहते हैं, गंदे नालों के किनारे रहते हैं, कचरा फेंकने वाली जगहों पर रहते हैं, पानी जमा होने वाले निचले स्थानों पर रहते हैं, गाय-भैंसों के साथ रहते हैं, सुअरों और भेड़-बकरियों के साथ रहते हैं। जाहिर है राजी खुशी तो वे वहाँ नहीं रहते, मजबूरी में ही रहते हैं पर वातावरण के हिसाब से अपने को ढाल लेते हैं।

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महाभारत महामारी-कालीन: एक कविता

नेत्रहीन नहीं धृतराष्ट्रहैं वे दृष्टिहीन एक विकराल युद्ध केबन गए तमाशबीन भरी सभा में हुईएक अस्मिता वस्त्रहीन महामात्य रहे अचलभावशून्य मर्म-विहीन युद्ध छिड़ा सर्वत्रप्रचंड संगीन अनगिनत लाशों सेरणभूमि रंगीन लाखों …

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तन मन जन: जनस्वास्थ्य के अधूरे ढांचे और गाँव गणराज्य की उपेक्षित संकल्पना के सबक

गांव गणराज्य की कल्पना भारत के पूर्व आइएस एवं सिद्धान्तकार डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा ने स्पष्ट रूप से ढाई दशक पहले ही दी थी जिसे सरकारों ने कूड़े में डाल दिया। यदि जनस्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा का प्रबन्धन और कार्यान्वयन गांव या प्रखण्ड के स्तर पर हो तो देश में कभी भी ऐसी मारामारी और हाहाकार की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।

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स्वास्थ्य के क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में बढ़ोतरी करे UP सरकार: जन स्वास्थ्य अभियान

जन स्वास्थ्य अभियान (JSA), जो कि स्वास्थ्य अधिकारों के लिए काम करने वाले नागरिक संगठनों और जन संगठनों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क है, ने अपनी मांगों को बेहद जरूरी बताते हुए कहा है कि स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल एक बुनियादी मानवाधिकार हैं और इनपर सभी सरकारों, चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य की सरकारें, को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए।

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जंग के बीच सेनापति से इस्तीफे की मांग अनैतिक और अव्यावहारिक क्यों है

प्रधानमंत्री अगर स्वयं भी इस्तीफ़े की पेशकश करें तो हाथ जोड़कर उन्हें ऐसा करने से रोका जाना चाहिए। उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया तो वे नायक हो जाएंगे, ‘राष्ट्रधर्म’ निभा लेने के त्याग से महिमामंडित हो जाएंगे और किसी अगली और भी ज़्यादा बड़ी त्रासदी के ठीक पहले राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए पुनः उपस्थित हो जाएंगे।

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