क्रिकेट की बदलती रीत या कॉर्पोरेट की पिच पर राष्ट्रवाद की जीत?

पाकिस्तान की जीत पर भारत में पहले भी पटाखे फूटते रहे हैं और जब हम पाते हैं कि दो राष्ट्र का बंटवारा होने के बावजूद एक दूसरे की रिश्तेदारी आज भी दोनों देशों में है और धर्म के नाम पर राजनीति करना, उनको बरगलाना और अपनी सियासी रोटियां सेंकना- यह सब आजादी के बाद से ही लगातार होता आया है तो हमें कोई आश्चर्य नहीं लगता।

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लाशों की पिच पर दम तोड़ती मानवता का 20-20 खेल

जब लोग एक-एक सांस के लिए जूझ रहे हैं और अपने परिजनों को बचाने के लिए शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक ऑक्सीजन सिलेंडर और वैंटीलेटर की व्यवस्था की ख़ातिर दौड़ रहे होते हों तो उस दौरान क्या उन्हें किसी मनोरंजन की याद भी आ सकती है?

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