प्रधानमंत्री का भाषण: महिमा-मंडन का कल्पनालोक बनाम यथार्थ की भयावहता

प्रधानमंत्री जी का कल्पना लोक जितना सुंदर है देश का यथार्थ उतना ही भयानक। यदि प्रधानमंत्री जी को इस अंतर का बोध नहीं है तो यह चिंताजनक है किंतु यदि उन्हें वास्तविक परिस्थिति का ज्ञान है फिर भी वे रणनीतिक रूप से स्वयं के महिमामंडन में लगे हैं तो परिस्थितियां डराने वाली हैं।

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कोरोना के लड़ के जनता की इम्यूनिटी बढ़ चुकी है, PM लाल किले से क्या बात करेंगे?

सत्तारूढ़ दल के लिए विपक्षी दलों के साथ-साथ जनता की भूमिका को भी संदेह की नज़रों से देखने की ज़रूरत का आ पड़ना इस बात का संकेत है कि वह अब अपने मतदाताओं को भी अपना विपक्ष मानने लगा है।

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5 अगस्त बनाम 15 अगस्त: सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता का सवाल

स्वाधीनता आन्दोलन में निहित धर्मनिरपेक्षता ने आधुनिक भारत के निर्माण में भूमिका निभायी. राममंदिर आन्दोलन में निहित साम्प्रदायिकता हमें भारतीय संविधान के मूल्यों से दूर, पुनरुत्थानवाद और अंधश्रद्धा की अंधेरी गलियों में धकेल रही है.

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तिर्यक आसन: आज़ादी की दुकान सज गयी है…

दुकानों पर चौबीस घंटे देशभक्ति फहरा रही है। दसों दिशाओं से हवा चल रही है। देशभक्ति भी दसों दिशाओं में खड़ी है। किसी का सिर हिमालय की चोटी की तरह तना हुआ है। किसी का सिर नीचे बह रही नाली के मुँह में जाने को है।

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