बात बोलेगी: एक ‘सिविल सोसायटी’ के राज में दूसरे का ‘वध’ और तीसरे का मौन

अभी ये जो कानून आए हैं पंजीकृत नागरी समाज को नेस्तनाबूत करने के, वो आपको लग सकते हैं कि सरकार लायी है लेकिन असल बात ये है कि इन्हें यह अनसिविल सोसायटी लायी है ताकि सिविल सोसायटी का वध किया जा सके

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छान घोंट के: जवाबदेही मांगने वाली सिविल सोसाइटी की FCRA पर चुप्पी और कार्टेल-संस्कृति

दुनिया के किसी भी देश में परिवर्तनकारी और दीर्घकालीन बदलाव का क्रांतिकारी आन्दोलन केवल विदेशी अंशदान से कभी नहीं खड़ा हुआ है। यह अलग बात है कि जनवादी निर्वात के खात्मे में विदेशी अंशदान का काफी योगदान रहता है।

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करोड़ों गरीबों-वंचितों को मिलने वाली राहत के मॉडल को ही ध्वस्त कर देगा FCRA संशोधन बिल

लोकसभा ने सोमवार को यह विधेयक पास किया था, जिसमें सिविल सोसायटी को विदेश से अनुदान प्राप्‍त करने की शर्तों को बतलाया गया है। इसका शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, लोगों की आजीविका, लैंगिक न्‍याय और भारतीय लोकतंत्र पर दूरगामी असर होने वाला है।

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राजनीतिक रूप से क्यों अप्रासंगिक होती जा रही है भारत की सिविल सोसायटी?

सिविल सोसायटी को यदि प्रासंगिक बने रहना है तो वह अपने अ-राजनीतिकरण के सवाल से खुद जूझे।

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