बात बोलेगी: लोकतंत्र का ‘बुलडोज़र’ पर्व

देश के अलग अलग हिस्सों में पाये जाने वाले बुलडोजरों को देखते हुए तो यही लगता है कि देश का विकास अगर कल को वाकई होता है तो उसमें किसी भी सरकार से ज़्यादा और बड़ा योगदान बुलडोज़र का ही होगा। विकास के कई-कई मकसदों और उद्देश्यों में बुलडोजर की सार्वभौमिक उपस्थिति ही अब एक मात्र सत्य है।

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जांच को प्रभावित कर रहा मुस्लिम-विरोधी पूर्वाग्रह: दिल्ली दंगों के एक साल पर HRW की रिपोर्ट

ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत में सरकारी तंत्र ने मुसलमानों के खिलाफ सुव्यवस्थित रूप से भेदभाव करने और सरकार के आलोचकों को बदनाम करने वाले कानूनों और नीतियों को अपनाया है. सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार में अन्तर्निहित पूर्वाग्रहों ने पुलिस और अदालत जैसी स्वतंत्र संस्थाओं में पैठ बना ली है, यह बेख़ौफ़ होकर धार्मिक अल्पसंख्यकों को धमकाने, उन्हें हैरान-परेशान करने और उनपर हमले करने की खातिर राष्ट्रवादी समूहों को लैस कर रही है.

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आर्टिकल 19: मीडिया निगल गया वरना दिल्ली के दंगे पर कोर्ट की टिप्पणी आज राष्ट्रीय शर्म होती

अदालत ने कहा कि “इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाना पूर्व-नियोजित साजिश के बिना संभव नहीं है।” कौन थे वो साजिशकर्ता और कौन थे उनके आका? यह बताने में दिल्ली पुलिस का दिल बैठ जाता है। वह इधर-उधर की बात करने लगती है। इसकी वजह हम भी जानते हैं और आप भी।

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दिल्ली दंगे की जांच करेगी चार रिटायर्ड जजों और नौकरशाहों की एक स्वतंत्र कमेटी

कांस्टीट्यूशनल कन्डक्ट ग्रुप द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि दिल्ली दंगों के बाद दिल्ली पुलिस द्वारा इसकी जांच पर उठते सवाल और पक्षपात के आरोपों के कारण इस निष्पक्ष जांच कमिटी की जरूरत महसूस की गयी है ताकि नौकरशाही, ऊपरी अदालतों और पुलिस में विश्वसनीयता को बनाया रखा जा सके।

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दिल्ली दंगा: अपराधियों को बचाने और पीड़ितों को फँसाने की अँधेरगर्दी

रिपोर्ट में मानवाधिकार आयोग समेत पूरे न्यायतंत्र को भी उसकी भूमिका के लिए कटघरे में खड़ा किया गया है जो संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अधिवक्ताओं पर हमलों, प्रताड़नाओं और फर्जी मुकदमों का ज़िक्र करते हुए न्याय और देशहित में आठ सूत्रीय मांग भी की गई है।

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लोकतंत्र की अंतिम क्रिया अभी बाकी है!

हम सभी एक सामूहिक, राष्ट्रव्यापी मदहोशी के शिकार हो गए थे. किस चीज़ का नशा कर रहे थे हम? हम तक एनसीबी का परवाना क्यों नहीं पहुंचा? सिर्फ बॉलीवुड के लोगों को ही क्यों बुलाया जा रहा है? कानून की नज़र में हम सभी बराबर हैं कि नहीं?

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आर्टिकल 19: दिल्‍ली दंगे पर एमनेस्‍टी की रिपोर्ट और सन् चौरासी के प्रेत की वापसी

एमनेस्‍टी ने एक विस्तृत जांच के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें भारत की सबसे शानदार पुलिस माने जाने वाली दिल्ली पुलिस का रंग रूप बहुत घिनौना, बहुत डरावना और बहुत भयानक नजर आता है।

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दिल्ली दंगे पर अल्‍पसंख्‍यक आयोग की पूरी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट यहां पढ़ें

पिछले छह महीने में पहली बार सरकार के अंग ने दिल्‍ली पुलिस और केंद्र में सत्‍तारूढ़ दल के नेताओं को कठघरे में खड़ा किया है।

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इंसाफ़, अमन और बंधुत्व का सन्देश फैलाने वालों पर शिकंजा क्यों कसा जा रहा है?

बहुसंख्यकवादी साम्प्रदायिक संगठनों के खिलाफ अपनी मुखरता के कारण वे हमेशा से ही दक्षिणपंथी खेमे के निशाने पर रहे हैं. उनके ख़िलाफ़ लगातार दुष्प्रचार किया जाता रहा है, जिसके तहत उन पर एक तरह से देशहित के ख़िलाफ़ काम करने का आरोप लगाया जाता रहा है. अब इसमें और तेजी आयी है.

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