पुरानी संसद क्यों न विपक्ष को सौंप दी जाए!

इस तरह के निर्णय के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नजर नहीं आता कि ‘सेंट्रल विस्टा’ के तहत प्रारंभ की गईं दूसरी सभी परियोजनाओं को अधूरे में छोड़कर नई संसद पहले तैयार करने के प्रधानमंत्री के स्वप्न को जमीन पर उतारने के काम में दस हजार मजदूरों को झोंक दिया गया! नई संसद का उद्घाटन ,नई लोकसभा के गठन के साथ साल भर बाद भी हो सकता था।

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इतनी आसानी से क्यों आहत हो जाती है ‘बिहारी गरिमा’?

बिहार की नेता-बिरादरी को चूंकि पता है कि जनता अपने मसायल में व्यस्त है, इसलिए उसे फिलहाल कोई चुनौती मिलने वाली नहीं है। यही वजह है उसकी शॉर्ट-साइटेडनेस (छोटी सोच की) और बिहार के बिहार बने रहने की।

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आर्टिकल 19: लोकतंत्र के शून्‍यकाल में…

भारत की संसदीय व्यवस्था में लोकतंत्र का मतलब बीजेपी का, बीजेपी के लिए और बीजेपी के द्वारा हो चुका है। बीजेपी ही सवाल पूछ सकती है। बीजेपी को ही जवाब देना है और बीजेपी को ही सुनना है। इसीलिए 14 सितंबर से शुरू होने जा रहे संसद के सत्र में विपक्ष के सांसदों की जुबान पर ताला लगा दिया गया है।

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