सांप्रदायिकता की पिच पर ‘सेकुलरिज़्म’ के चतुर घोड़े की सवारी

? एक पवित्र किताब के इर्दगिर्द धर्म को परिभाषित करने की अब्राहमिक पंरपरा आखिर सिखों तक कैसे पहुंची? एक भगवान और उसके एक जन्‍मस्‍थल के इर्दगिर्द धर्म को परिभाषित करने की कवायदें अब हिंदुओं के बीच भी प्रचलित हो रही हैं, जबकि सनातन धर्म का ऐसा चरित्र कभी नहीं रहा। क्‍या इसे सांप्रदायिकता कहा जा सकता है? या यह विकृत धर्मनिरपेक्षता के कुफल हैं?

Read More

जिस राष्ट्र में अपने मन-विचार से काम करने की आजादी न हो, उसे नष्ट हो जाना चाहिए: स्वामी विवेकानंद

पिछले कुछ दशकों में खासतौर से 90 के बाद चली धार्मिक कट्टरता की हवा ने विवेकानंद जैसे क्रांतिकारी, संन्यासी और मानवतावादी दार्शनिक को हिंदू पहचान के साथ जड़बद्ध कर दिया. और ध्यान रहे ये सब कुछ सायास, एक परियोजना के तहत किया गया था ताकि हिंदुत्व के खोखले दावे को अमली जामा पहनाने के लिए एक नायक की तलाश पूरी की जा सके.

Read More