कश्मीर: आतंकवादी हिंसा पर अंकुश लगाने में सरकार क्यों नाकामयाब हुई है?

कश्मीर का घटनाक्रम इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस मुद्दे का उपयोग कर भाजपा ने केंद्र और राज्यों के चुनावों में आशातीत सफलता हासिल की है और वह कश्मीर विषयक अपने फैसलों को नए भारत के नए तेवर को दर्शाने वाले कदमों के रूप में प्रचारित करती रही है- ऐसे कदम जो कठोर निर्णय लेने वाली मजबूत सरकार ही उठा सकती थी।

Read More

कश्मीर: हिंसा की राजनीति जितनी ही घातक है हिंसा पर राजनीति

कश्मीर में भारत विरोधी नारे लग रहे हैं और भारत में कश्मीर के खिलाफ नारेबाजी हो रही है। देश में कश्मीरियों को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है, इधर कश्मीरी अपने हमवतन लोगों की नीयत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं।

Read More

“इन 18 महीनों में हमने वो भी खो दिया जो हमारा था”: कश्मीर में विकास के दावों का ज़मीनी सच

जिन समुदायों के साथ यह बातचीत हुई, वे पुराने निज़ाम को फिर से याद करने लगे हैं जबकि कश्मीर के स्थापित परिवारों और खानदानों को लेकर उनके मन में कोई सहानुभूति नहीं है बल्कि वे तो यह मानते हैं कि ‘उनके साथ ठीक ही हुआ’।

Read More

बात बोलेगी: कश्मीर में बैठ के कश्मीर को समझने का अहसास-ए-गुनाह

आखिर को दिल्ली- जिसे देश की राजनैतिक राजधानी का दर्जा प्राप्त है और जिसके वैभव में कश्मीर से कम सभ्यताओं और शासकों के आवागमन का इतिहास दर्ज है- भी ठीक उसी गति को प्राप्त हुई है जिस गति को कश्मीर? क्या वाकई कोई नागरिक प्रतिरोध दिल्‍ली में देखा गया? याद नहीं पड़ता।

Read More

“बाबरी के बाद प्रगतिशील लोगों ने कश्मीर को मुस्लिम बहुसंख्यक का मुद्दा समझ कर गलती कर दी”!

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने की पहली बरसी पर फिल्मकार संजय काक से जितेंद्र कुमार की बातचीत

Read More

कश्मीर एक साल बाद: फिल्मकार संजय काक से एक संवाद

कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटे 5 अगस्त 2020 को एक साल पूरा हुआ। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र कुमार ने मशहूर डाक्यूमेंट्री निर्माता फिल्मकार संजय काक से कश्मीर पर बात की।

Read More