दक्षिणावर्त: न्‍याय की चिता पहले ही जल चुकी है, अब केवल प्रहसन बाकी है


बहुत डरते-डरते इन बातों पर लिख रहा हूं, क्योंकि विषय इतना संवेदनशील है कि इसमें सीधा कुछ भी बोलने पर आपको पक्षकार ठहरा दिया जाएगा। हाथरस की घटना से पहले भी कई घटनाएं हुई हैं, आगे भी होंगी और तब तक होंगी जब तक हम अपने देश में प्रशासनिक सुधारों, राजनीतिक कार्यक्रमों से आगे बढ़कर सामाजिक पुनर्जागरण की बात नहीं करेंगे। खैर, वह विषय अलहदा है, उस पर कभी आगे बात।

मैं फिलहाल दो और घटनाओं की याद दिलाना चाहूंगा। दोनों बार प्रियंका वाड्रा ने यूपी का दौरा किया था। पिछले साल अगस्त और दिसंबर में उत्तर प्रदेश जलता हुआ दिखाई दे रहा था। एक बार सोनभद्र के आदिवासियों को उनका ‘हक’ दिलाने और दूसरी बार उन्‍नाव पीड़िता को ‘न्याय’ दिलाने के लिए। इन दोनों घटनाओं में आखिरकार क्या हुआ? किसको हक मिला? किसको न्याय मिला?

नेताओं का तो समझ में आता है, कि जो भी प्रतिपक्ष में रहेगा वह विरोध करेगा ही जबकि जहां उसकी पार्टी सत्‍ता में रहेगी, बड़ी आसानी से उसको घटनाएं भूल जाएंगी। जैसे, फिलहाल प्रियंका जी को राजस्थान नहीं दिखेगा या कुछ दिनों पहले तक मध्यप्रदेश नहीं दिखता था या फिर जैसे अभी उ.प्र. में भाजपा की सरकार को बलरामपुर, बुलंदशहर और आज़मगढ़ नहीं दिख रहा।

यह नेताओं के लिए सामान्य है। वे ऐसा न करें तो भले आश्चर्य होगा, लेकिन हमारे तथाकथित पत्रकारों की दिक्कत क्या है? कैसी चली है अबके हवा, तेरे शहर में? प्लीज़, यह मत कहिए कि फलां चैनल या फलां एंकरा-एंकर ठीक है। हमाम में सभी नंगे हैं और टीवी के परदे पर पूरा नंगा नृत्य चल रहा है। आप अगर दो मिनट किसी चैनल को देख लें, तो हंसते-हंसते पागल हो जाएंगे या सदमे से आप मर जाएंगे।

कोई एंकर-रिपोर्टर स्टूडियो में गला फाड़ कर चिल्ला रहा है, तो कोई जमीन पर लोट रहा है। कोई मुंबई की सड़कों पर नाच रहा है, तो कोई हाथरस के खेतों में गला फाड़ रहा है। आप कौन लोग हैं भाई? किस प्रजाति के हैं? मतलब, आपने हाथ में एक माइक पकड़ लिया तो पुलिस, जज, प्रशासन, सब कुछ आप लोग ही हो गए हैं? पुलिस से लेकर कार्यपालिका या न्यायपालिका तक के बारे में सबको पता है, लेकिन समाज की व्यवस्था अगर कोई है तो उसे आप मानेंगे या नहीं?

कल एक चैनल की अदाकारा ने जिस तरह हाथरस के एसडीएम को लाइव जलील किया या धमकी दी, वह कौन सी पत्रकारिता है? इसका अंजाम तो वही होना था, जो हुआ। दूसरा एंकर अपने स्टूडियो में चीखते-नाचते हुए जुगाड़-मीडिया को बेनकाब करेगा ही।

इसमें नुकसान किसका हुआ? गर्भपात तो न्याय का ही हुआ न!

आज सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी एम्स के डॉक्टरों ने फाइनल मुहर लगा दी कि उन्होंने आत्महत्या ही की थी। अब ज़रा वो झंडा-बैनर थामे जो लोग जंतर-मंतर पर हैं, वे बता दें कि अब क्या करेंगे? न्यूज चैनल्स के हिस्टीरिकल एंकर्स क्या करेंगे, जो स्टूडियो में ही मानसिक विक्षिप्तों की तरह व्यवहार कर रहे थे?

हमारे यहां पुरानी कहावत है- जब आपकी बात में दम नहीं होता, तो आप चिल्लाते हैं, अगर आपकी बात दमदार होगी, मजबूत होगी तो फिर आप बहुत आराम से भी अपने बात रखेंगे तो वह उतनी ही मारक, उतनी ही असरदार होगी। आप आज के दो-तीन नहीं, सारे चैनल देख लें, लगेगा कि हिस्टीरिकल, मनोरोगी लोग एंकर की कुर्सी थाम कर बैठे हैं।

कई बार तो मुझे लगता है कि इस देश की हवाओं में भांग मिला दिया है या फिर कोई केमिकल लोचा मेरे ही साथ है। कितनी जल्दी है लोगों को खेमों में डाल देने की। किसी भी बात को जाने बिना, समझे बिना, सबसे पहले कुछ कह देने की, फैसला दे देने की। आप कुछ भी जानें या न जानें, चीखने-चिल्लाने और बोल देने का अधिकार तो आपसे कोई छीन नहीं सकता है।

वैसे, एक बार मैंने योगी सरकार के बारे में लिखा था कि उन्होंने जो पंचरत्न पाल रखे हैं, उसके बाद उन्हें दुश्मनों की कोई जरूरत नहीं है, न ही किसी राजनैतिक विरोधी की। खासकर, उनके सबसे बड़े जो रत्न हैं, वह तो कभी किसी दो कौड़ी के तथाकथित पत्रकार को पुलिस से उठवाकर उसे हीरो बनाएंगे, तो कभी सोनभद्र में प्रियंका को जाने से रोक देंगे। ऐसी नेक सलाहें देता कौन है?

अगर प्रियंका या कोई हिस्टीरिकल मीडियाकर्मी हाथरस जाना चाह रहा था, तो उसे रोकने की क्या जरूरत थी? रातोंरात लाश को जलाकर शक पैदा करने की क्या जरूरत थी? आप ईमानदार हैं यही बहुत काफी नहीं है, आपकी ईमानदारी का प्रदर्शन भी होना चाहिए, ऐसा गांधी जी ने कहा था। सत्ता की हनक को सनक में नहीं बदलना चाहिए और यह बात किसी योगी से अधिक कौन समझ सकता है!

यह बात बिल्कुल ही नहीं भूलनी चाहिए कि आप अब किसी मठ के मुखिया मात्र नहीं, 22 करोड़ लोगों के मुस्तकबिल के निर्माता हैं। लेकिन…

और यह लेकिन बहुत बड़ा है। जो नंगा नाच मीडिया और राजनीति से जुड़े गिद्ध कर रहे हैं, उसमें औऱ किसी बात में शंका हो तो हो, एक बात तो बिल्कुल तय है कि हाथरस की पीड़िता को इन सब से न्याय मिलने वाला नहीं है। न्‍याय की चिता पहले ही जल चुकी है, अब केवल प्रहसन बाकी है



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