कोरोना: विज्ञान, टोटका और राजनीति का मिश्रित वायरस


चीन के हुबेई राज्य की राजधानी वुहान में फ्लू जैसी एक नई बीमारी फैलाने की खबर आई। इस खबर के फैलने के काफी पहले एक चमगादड़ या उसका एक पूरा समूह उस इलाके में एक नये कोरोना विषाणु के साथ उड़ रहा था। तब यह विषाणु मनुष्यों के लिए खतरनाक नही था लेकिन नवम्बर 2019 के अंत तक इस विषाणु की अनुवंशिकी (जेनेटिक्स) में कुछ खास बदलाव हुए और उसे सार्स-सीओवी2 के नाम से पहचाना गया। फिर इसके आरएनए में कुछ बदलाव हुए और चीन में कोविड 19 महामारी शुरू हो गई। अब तक इस महामारी का प्रकोप विश्व के प्रायः सभी देशों में फैल चुका है।

कोविड-19 या कोरोना विषाणुओं से दुनिया के वायरोलॉजिस्ट पहले से परिचित रहे हैं। ये विषाणु कई तरह की बीमारियां पैदा करते रहे हैं, लेकिन इन पर उतनी रिसर्च फंडिंग नहीं की गई। 2003 में एक चमगादड़ से आये कोरोना विषाणु से कुल 774 लोग मारे गए थे। इसके बाद 2012 में ऊंटों से फैलाने वाले कोरोना विषाणु से मिडिल ईस्टर्न सिण्ड्रोम नामक रोग सामने आया, जिसके चलते 884 लोगों की मौत हुई। इस विषाणु से आज भी लोग संक्रमित होते रहते हैं। लेकिन इस पर भी उचित रिसर्च फंडिग नहीं हुई। विश्व के विकसित देशों की सरकारों और उनके विशेषज्ञों का ज्यादा ध्यान इनफ्लुएन्जा विषाणु पर अधिक रही। फिर बर्ड फ्लू जैसे वायरसों के अध्ययन पर भी जोर दिया गया, जिससे विश्व में हर साल लाखों लोग मारे जाते रहे हैं।

कोरोना वायरस का पूरी दुनिया में जिस तरह से फैलाव हुआ, उससे यह सबक मिलता हैं कि अगर हमारे वैज्ञानिकों को एकांगी रूप से काम करने को प्रेरित किया जायेगा तो उसके भयानक परिणाम सामने आयेंगे। तथ्य यह है कि 2015 में महामारी का अध्ययन करने वाले एक वैज्ञानिक रैल्फ बारिक ने उत्तरी कैरोलाइना में चमगादड़ के कोरोना विषाणुओं के जीनों का अध्ययन किया और चेताया कि चमगादड़ों में मौजूद कोरोना विषाणुओं से नये सार्स सीओवी विषाणु जन्म ले सकते हैं। 2016 में उन्होंने कहा कि इन विषाणुओं के मानव प्रवेश से दूसरे सार्स जैसे रोग का खतरा विद्यमान है। उनकी खोज से पता चला कि चमगादड़ कई नई मानव बीमारियों का खजाना बना हुआ है और वह सैकड़ों प्रकार के कोरोना विषाणुओं से युक्त है। चमगादड़ इनसे बीमार नहीं पड़ते, लेकिन वृद्धि के दौरान उसमें जेनेटिक बदलाव होते रहते हैं। कभी-कभी ये म्यूटेशन कहे जाने वाले बदलाव किसी खास कोरोना विषाणु को यह क्षमता प्रदान करते हैं कि वह दूसरे जानवरों और मनुष्यों को संक्रमित कर सके। चमगादड़ के मनुष्य में आने और पनपने के लिए दो म्यूटेशन बड़े महत्व के साबित हुए। पहला, उन प्रोटीनों में जो विषाणु की देह पर से फूलगोभी की तरह निकली रहती है (यह संरचना सार्स सीओवी2 जैसी है)। इन प्रोटीनों को स्पाइक कहा जाता है, जिसके द्वारा यह विषाणु मानव कोशिकाओं की एक खास प्रोटीन एसीई2 से चिपकता है। यह मानव प्रोटीन श्वसन तंत्र में मौजूद होती है। स्पाइक प्रोटीनों की मौजूदगी के कारण ऐसा लगता है कि इस विषाणु के देह पर मुकुट लगे हुए हैं। वैसे कोरोना का शब्दिक अर्थ भी मुकुट होता है, यानी यह एक मुकुटधारी विषाणु है। दूसरे, अनुवंशिक बदलाव के कारण इस विषाणु के जिस्म पर एक खंजरनुमा प्रोटीन उग आती है, जिसे फ्यूरिन कहते हैं। इस प्रोटीन के कारण यह विषाणु मजबूती से मानव गले और फेफड़ों की कोशिकाओं से चिपक जाता है। ज्ञात हो कि एन्थैक्स एवं कई प्रकार के वर्डफ्लू के वायरस भी इस खंजर प्रोटीन के प्रयोग से मानव कोशिकाओं में प्रवेश पाया करते हैं।

इस बात की तहकीकात जारी है कि इस विषाणु का म्युटेशन चमगादड़ों के भीतर ही हो गया है या पहले-पहल संक्रिमत होने वाले मनुष्यों के भीतर हुआ है या फिर यह पहले पेंगोलीन जैसे जीव में गया हो, जहां इसमें संक्रामक घातक जेनेटिक बदलाव हुआ हो। गौरतलब है कि चीनियों के बीच पेंगोलीन का मॉस काफी लोकप्रिय भोजन है, जिसका प्रयोग औषधियों के निर्माण में भी किया जाता है।

विषाणु का एक जीव प्रजाति से दूसरी प्रजाति में जाना “स्पीशीज जम्प” कहलता है। जंगली पशुओं से मनुष्यों में इस तरह से आये रोग “जूनोसिस” कहे जाते हैं। स्पीशीज जम्प से विषाणु के जीनों में लगातार बदलाव होते रहते हैं, जिन पर ध्यान रखना जरूरी है। इसी विकासवादी प्रक्रिया के जरिये सार्स-सीओवी2, एचआईवी जैसे विषाणुओं की पैदाइश हुई। एचआईवी विषाणु पहले अफ्रीकी बन्दरों और फिर चिम्पैजिओं में फैला और यहीं से आधुनिक एचआईवी का रूप लिया। एड्स का पहला मरीज 1931 के आस-पास दक्षिण पश्चिम कैमरून में पाया गया। अभी यह सारे विश्व में फैल गया है।

इसलिए अगर किसी विषाणु के प्रसार को रोकना है तो उसमें हो रहे बदलावों पर वैज्ञानिक शोध करनी काफी जारूरी है। कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए भी उचित रिसर्च करने की आवश्यकता है।

कोरोना वायरस का प्रसार एवं प्रभाव

आज कोरोना वायरस का प्रभाव अंटर्काटिका क्षेत्र एवं 8 छोटे देशों को छोड़कर विश्व के सभी देशों में फैल चुका है। अमेरिकी अतिमहाशक्ति के साथ-साथ ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, इटली, जर्मनी जैसे विकसित देश भी बुरी तरह प्रभावित हैं। पूरी दुनिया में 10 अप्रैल तक 1 लाख से अधिक लोगों की इस महामारी से मौतें हुई हैं, जिनमें से करीब 70 हजार मौतें विकसित यूरोपीय देशों में हुई हैं। यहां तक कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री भी कोरोना संक्रमण के शिकार हो आईसीयू में भर्ती हैं। जर्मनी के वित्त मंत्री ने कोरोना के चलते अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के चलते आत्महत्या भी कर ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कुल 205 देशों के 16 लाख से अधिक लोगों के इस खतरनाक वायरस से संक्रमित होने की खबर है। भारत में 10 अप्रैल तक कुल 8,356 लोगों के कोरोना से संक्रमित होने की सूचना मिल चुकी है। कुल 206 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है और 551 लोग ठीक होकर घर आ चुके हैं।

दरअसल, हमारे देश में कोरोना संक्रमित लोगों की तादाद और अधिक है। चूंकि लोगों की जांच की सुविधा काफी कम है, इसलिए संक्रमित लोगों की वास्वतविक संख्या सामने नहीं आ रही है। अखबारों की रिपोर्टों के मुताबिक डाक्टरों-नर्सों को उचित मात्रा में पीपीई किट, एन-95 मास्क, दस्ताने एवं सेनीटाइजर जैसे सुरक्षा साधन भी उपलब्ध नहीं कराये जा रहे हैं। कुछ अस्पतालों के डाक्टरों एवं नर्सों ने इन सामानों की मांग करते हुए प्रदर्शन भी किये और उनमें से कुछ को बर्खास्त भी किया गया है। यहां तक कि मरीजों को जिन्दगी बचाने के लिए अस्पतालों में उचित मात्रा में वेंटीलेटर्स भी उपलब्ध नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से 5 लाख पीपीई किट, 10 लाख एन-5 मास्क, 10 लाख प्लाई मास्क, 10 लाख सीप्लाई मास्क, 10 हजार आरएनए एक्ट्रेक्शन किट और 100 वेंटीलेटर्स की मांग की थी। लेकिन बिहार के, केवल 4 हजार पीपीई किट, 50 हजार प्लाई मास्क, 1 लाख सीप्लाई मास्क और 250 आरएनए एक्ट्रेक्शन किट ही मिल पाये। उसे एक भी वेंटीलेटर की आपूर्ति नहीं की गई। इसी तरह दिल्ली सरकार की ओर से 1.2 लाख पीपीई कीट की मांग की गई, लेकिन केन्द्र सरकार ने 7 अप्रैल तक 27 हजार किट ही उपलब्ध करवाया। केन्द्र सरकार की इस लापरवाही के चलते देश के विभिन्न अस्पतालों के करीब 300 से अधिक डॉक्टर, नर्स एवं अन्य अस्पताल कर्मचारी भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इनके अलावा दिल्ली एयरपोर्ट पर विदेशी यात्रियों की जांच करने वाले सीआईएसएफ के दर्जनों जवान भी कोरोना वायरस के शिकार हुए हैं।

ऐसा नहीं है कि कोरोना वायरस से फैले संक्रमण ही ऐसी महामारी है जिसने लोगों की जिन्दगियां तबाह की है। सच्चाई है कि विश्व में स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास और व्यवस्था के बावजूद हर साल लाखों लोग विभिन्न जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। अकेले हमारे देश में हार्ट अटैक, कैंसर, फेफड़े की बीमारी, इन्फ्लेंजा, टीवी और  किडनी की बीमारी से हर साल लाखों लोगों की मौतें होती हैं।

हमारे देश की केन्द्र सरकार और रज्य सरकारों ने जिस प्रकार प्रकृति का मनमाना देाहन किया है और रहन-सहन एवं खान-पान के साधनों में बदलाव लाया है, उससे न केवल देश की परिस्थितिकी और पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है, बल्कि मानव के स्वास्थ्य पर भी काफी बुरा असर पड़ा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई की गई है, पहाड़ों को माईनिंग के लिए खोदा और तोड़ा गया है और खाने के अनाजों एवं अन्य खाद्य उत्पादों पर कई प्रकार के रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। यहां तक कि बच्चों के दूध में भी रासायन मिलाये जाते हैं। इसका नतीजा पूरे मानव समूह को भुगतना पड़ रहा है। एचआईवी विषाणु किसी मनुष्य में तब प्रवेश किया, जब वह चिम्पैंजी का मांस काट रहा था, जिसमें उसे घाव लग गया था। चीन में सार्स के साथ यही बात बताई गई थी कि चमगादड़ से सिवेट नामक बिल्लीनुमा जन्तु से होते हुए नया कोरोना विषाणु का प्रवेश मनुष्यों में हुआ। चीन के वुहान शहर में भोजन एवं दवाओं के लिए जिन्दा जंगली जानवरों की बड़े पैमाने पर खरीद-बिक्री की जाती थी, जिससे वायरस फैलते थे। एक समय चीन सरकार ने इस अनियमित वेट बाजार पर रोक लगा दी थी। लेकिन आगे फिर इन वन मांस मण्डियों को खोल दिया गया, जिसका नतीजा कोरोना महामारी के रूप में सामने आया।

कोरोना से निबटने का टोटका

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना के मरीजों की जांच एवं उचित देखभाल करने और अस्पताल के डॉक्टरों, नर्सों एवं अन्य कर्मचारियों के लिए सुरक्षा किटों आदि की व्यवस्था करने की बजाय देश की जनता को थाली-ताली बजाने और दीया-मोमबत्ती जलाने के टोटकों पर अमल करने का निर्देश दे रहे हैं। केरल में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी को सामने आया और इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत समेत पूरी दुनिया को इस महामारी से सावधान भी किया, लेकिन नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने 25 मार्च तक अपने आका डोनाल्ड ट्रम्प की आवभगत करते रहे। 20 मार्च से लेकर 3 अप्रैल तक प्रधानमंत्री देश की जनता को 4 बार सम्बोधित कर चुके हैं, लेकिन अपने भक्तों के अलावा वे जनता के किसी भी प्रबुद्ध हिस्से को प्रभावित नहीं कर सके हैं।

पहला सम्बोधन उन्होंने 20 मार्च को किया, जिसमें 22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक “जनता कर्फ्यू” लागू करने और शाम को 5 बजे 5 मिनट के लिए थाली और ताली बजाने की अपील की। इस अपील पर अमल करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में शंख और ढोल बजाकर जुलूस भी निकाले गए और जनता कफ्र्यू की धज्जियां भी उड़ाई गईं। उसी दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इस अपील को ठुकराकर अयोध्या में रामलला की प्रतिमा को एक जगह से हटाकर दूसरी तरफ स्थापित किया, जिसमें सैकड़ों नेताओं एवं पुलिस-प्रशासनिक अफसरों ने भी भागीदारी की।

दूसरा सम्बोधन नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को 8 बजे रात को किया, जिसमें उन्होंने उसी रात 12 बजे से 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की। आम जनता को केवल 4 घंटे की मोहलत (8 बजे से 12 बजे रात तक) दी गई। जनता और दुकानदारों एवं निजी विक्रेताओं ने लॉकडाउन (जो बिना उचित तैयारी किये घोषित किया गया था) की ऐसी की तैसी कर दी। सब्जी एवं पारचून की दुकानों पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई और लोगों ने जमकर खरीदारी की। ज्यादातर दुकानों में माल की कमी हो गई।

अगले दिन केजरीवाल सरकार एवं देश की अन्य राज्य सरकारों ने घोषणा की कि कुछ समय के लिए सब्जी की एवं खाने-पीने की अन्य दुकानें भी खुली रहेंगी तो जनता ने थोड़ी राहत की सांस ली। लेकिन रेल एवं बसों की आवाजाही बन्द होने से दिल्ली एंव अन्य शहरों में कार्यरत प्रवासी मजदूरों (जिनकी संख्या करीब 18.2 करोड़ है) में अनिश्चितता का माहौल बना। उनके रोजगार छूट गए और उनके परिवारों को खाने के भी लाले पड़ गए। इसके बाद उन्होंने जैसे-तैसे अपने गांव लौटने का निश्चय किया।

28 मार्च को करीब 50,000 की संख्या में वे आनन्द विहार (दिल्ली-यूपी सीमा) के पास बसों को पकड़ने के लिए इकट्ठा हो गए। वहां से बसों को लेकर या पैदल चलकर अपने-अपने गंतव्य स्थानों को रवाना हो गए। केजरीवाल सरकार ने आनन्द विहार तक पहुंचाने के लिए कुछ डीटीसी बसों की व्यवस्था की और आगे की यात्रा कराने के लिए उत्तर प्रदेश की सरकार ने बसों को मुहैय्या कराने की घोषणा की। दोनों सरकारों की यह कार्रवाई 21 दिनों के लॉकडाउन की खुली आवहेलना थी। बाद में सोशल मीडिया एंव प्रिंट मीडिया में इसकी चर्चा होने के बाद दिल्ली सरकार ने 44 बसों के ड्राइवरों एवं कंडेक्टरों पर दर्जनों केस दर्ज किया है, लेकिन यूपी सरकार ने कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है।

प्रधानमंत्री ने 28 मार्च को भारत की जनता से “मन की बात” की, जिसमें उन्होंने आम जनता को लॉकडाउन के चलते हो रही दिक्कतों के लिए माफी तो मांगी, लेकिन उनकी दिक्कतों को दूर करने की कोई बात नहीं की। फिर प्रधानमंत्री ने 3 मार्च को जनता को सम्बोधित किया, जिसमें उन्होंने जनता से 5 अप्रैल को 9 बजे रात में 9 मिनट तक दीया-मोमबत्ती-टार्चलाईट जलाने की अपील की, ताकि जनता की एकजुटता प्रदर्शित हो। इस बीच प्रधानमंत्री ने 15,000 करोड़ रू. एवं 1 लाख 70 हजार करोड़ के राहत पैकेज की भी घोषणा की, लेकिन कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों की मुफ्त में जांच कर उनका इलाज डॉक्टरों, नर्सों एवं अन्य अस्पतालकर्मियों की सुरक्षा की व्यवस्था और रोजगारविहीन लाखों लोगों के लिए खाने की व्यवस्था करने की अभी तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है। विभिन्न राज्य सरकारें, एनजीओ समूह, गुरुद्वारों एवं अन्य धार्मिक संसथान जगह-जगह भूखे लोगों को खाना खिलाने और कुछ राशन व्यवस्था कर रहे हैं। रोजगारविहीनता और भुखमरी की इस स्थिति में उनकी यह भूमिका सराहनीय है।

तबलीगी जमात के मरकज पर साम्प्रदायिक निशाना

दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का मरकज सरकार की अनुमति से 13 से 15 मार्च, 2020 को आयोजित हुआ, जिसमें करीब 2,500 मुसलमानों की शिरकत हुई। इसमें सैकड़ों विदेशी मुसलमान भी शामिल हुए। कार्यक्रम के बाद वे सभी दिल्ली से बाहर जाना चाहे, लेकिन पुलिस एवं दिल्ली प्रशासन ने इसकी कोई व्यवस्था नहीं की। इनमें से कुछ लोगों ने निजी गाड़ियों की व्यवस्था कर देश के विभिन्न हिस्सों में चले गए। उनमें से कुछ लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण पाये गए। इसके बाद नरेन्द्र मोदी के भक्तगण, गोदी मीडिया और दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री भी जोर-जोर से चिल्लाने लगे कि तबलीगी मुसलमानों ने पूरे देश में कोरोना महामारी को फैला दिया, जबकि इस कार्यक्रम के आस-पास की तिथियों पर हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा कई प्रकार के कार्यक्रम अयोजित किए गए, जिसमें सैकड़ों-हजारों लोगों की भागीदारी हुई। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- 10 मार्च को पूरे देश में होली खेली गईं, 15 मार्च तक सिद्धि विनायक मंदिर एवं महाकालेश्वर मंदिर, 16 मार्च तक शिरडी के साई बाबा मन्दिर, 17 मार्च तक वैष्णो देवी मन्दिर और 19 मार्च तक काशी विश्वनाथ मन्दिर के दरवाजे खुले रहे। फिर 15 मार्च, 2020 को भारतीय हिन्दू महासभा द्वारा गौमूत्र पार्टी आयोजित की गई। हरिद्वार में फंसे 1,800 गुजरातियों को अहमदाबाद पहुंचाने के लिए उत्तराखंड रोडवेज की दर्जनों लक्जरी बसों को लाया गया। यह काम काफी गुप्त तरीके से गृहमंत्री अमित शाह और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी की देखरेख मे किया गया, जिसकी जानकारी उत्तराखंड के परिवहन मंत्री को भी नहीं थी। महाराष्ट्र के सोलापुर में एक रथयात्रा आयोजित की गई। संसद के दोनों सदन 23 मार्च तक चलते रहे। दिल्ली कें हवाई अड्डे 25 मार्च को बन्द किये गये। इसके पहले 2 माह के दौरान लाखों लोग विदेश से भारत आये।

21 मार्च को विदेश से आने वाली कामर्शियल उड़ानों पर रोक लगा दी गई, लेकिन उसके पहले के दो हफ्तो में यूके, फ्रांस, जर्मनी, स्वीटजरलैंड एवं अन्य यूरोपीय देशों से कम से कम 102 निजी चार्टर्ड प्लेन भारत में लैंड कर चुकी थीं। यह एक आश्चर्यजनक संख्या थी। इन प्लेनों में देश के बड़े बिजनेसमैन और राजनीतिज्ञों के रिश्तेदार सवार थे। इन फ्लाइटों के आगमन से पता चलता है कि इनमें आने वालों को पता था कि 21 मार्च को एयरपोर्ट बन्द कर दिये जायेंगे, जैसा कि नोटबन्दी की जानकारी मोदी सरकार ने अपने खास लोगों को दे दी थी।

इन सबों के अलावा भारत के प्रधानमंत्री 24-25 मार्च के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के स्वागत में लाखों की भीड़ जुटाते रहे। अहमदाबाद के स्टेडियम में अयोजित ‘केम छो ट्रम्प’ कार्यक्रम में करीब डेढ़ लाख लोग और रास्ते की सड़कों पर स्वागत करने लाखों लोग उपस्थित हुए। इसके पहले सुरेश नामक व्यक्ति 17 मार्च को दुबई से मुरेना आया और उसने 20 मार्च को अपनी मां का श्राध किया, जिसमें करीब 1500 लोगों ने हिस्सा लिया। जांच से पता चला कि सुरेश और उसकी पत्नी के साथ साथ उसके 10 रिश्तेदार भी कोरोना वायरस से संक्रमित थे। अभी उसके गांव महराजपुर को पूरी तरह सील कर दिया गया है। इसी बीच बाँलीवुड की गायिका कनिका कपूर 9 मार्च को लंदन से आई और उसने लखनऊ के 2-3 पार्टियों में भी शिरकत की। वह कोरोना से संक्रमित पाई गई, लेकिन उसके कार्यक्रम में भाजपा के कई मंत्री और नेता भी शामिल हुए। ये मंत्री, नेता संसद और राष्ट्रपति भवन भी गये।

नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के अलवा अधिकारी एवं मंत्रीगण सोशल डिस्टेन्सिंग की बात बार-बार कर रहे हैं लेकिन इतने  बड़े पैमाने पर (जैसा कि ऊपर वर्णित है) भीड़ जुटाई गई, उसके बारे में गोदी मीडिया लगभग चुप है। केजरीवाल सरकार ने तबलीगी जमात के पदाधिकारियों पर केस चलाने और यूपी के मुख्यमंत्री उनके कार्यकत्ताओं पर एनएसए लगाने की घोषणा करते हैं, लेकिन जब सरकारी विभाग या मोदी समर्थक भीड़ जुटाते हैं तो उन्हें मद्द की जाती है। अभी खबर आ रही है कि अयोध्या में रामलला के दर्शन हेतु लम्बी-लम्बी कतारें लग रही हैं और योगी सरकार ऐसे भीड़-भाड़ वाले आयोजन को भरपूर समर्थन कर रही है। दरअसल, तबलीगी जमात को बदनाम कर मुसलमानों के प्रति जनता में नफरत पैदा करना है और मोदी सरकार को अपनी कमजोरियों को छुपाना है।

कोरोना का आर्थिक प्रभाव

इस महामारी का पहले से ही सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था पर और भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसर अमेरिका एवं यूरोपीय जोन की अर्थव्यवस्था जनवरी-मार्च 2020 की तिमाही में 30 प्रतिशत तक सिकुड़ेगी। अमेरिका में मार्च के अंतिम दो सप्ताहों में करीब 1 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गई हैं और उनमें से 66.5 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ता हेतू आवेदन भी दिया है। भारत में करीब 40 करोड़ असंगठित मजदूर विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं। आईएलओ के अनुमान के मुताबिक उनमें से 19.5 करोड़ की नौकरियां समाप्त हो जायेंगी। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक इस साल की विकास दर 4 प्रतिशत से भी नीचे चली जायेगी। शेयर बाजार में भी फरवरी-मार्च 2020 में करीब 25 प्रतिशत की गिरावट आई है और देश के साथ ही बड़े उद्योगपति अनिल अम्बानी की सम्पत्ति में भी 28 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसी अवधि में औद्योगिक उत्पादन, विनिर्माण की गतिविधियों और निर्यात में भी भारी गिरावट आई है।

इसी बीच एक खास बात सामने आई है कि भारत ने अमेरिका को पैरासिटामोल और हाइड्रोक्सीकलोरोक्वीन जैसी दवाओं का निर्यात किया है, जबकि इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ था। ऐसा मोदी सरकार ने इसलिए किया कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने सीधे नरेन्द्र मोदी को फोन कर धमकी दी कि अगर वे इन दवाओं को अमेरिका नहीं भेजेंगे तो जवाबी कार्रवाई का सामना करेंगे। इसके कुछ दिन पहले भी एक रिपोर्ट आई थी कि भारत ने पीपीई किटों का भी निर्यात किया है, जबकि यह सुरक्षा किट देश के डाक्टरों-नर्सों को उपलबंध नहीं है।

जनपक्षीय क्रान्तिकारी ताकतों का कार्यभार

देश की इस महामारी एवं आर्थिक तबाही की स्थिति में जनपक्षीय क्रान्तिकारी ताकतों को एक अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। उन्हें आम जनता, खासकर मजदूरों के बीच जाकर मोदी सरकार की जनविरोधी आर्थिक नीतियों और स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर करना चाहिए। उन्हें यह समझाना चाहिए कि किस तरह समाजवादी रूस, चीन, वियतनाम एवं क्यूबा में स्वास्थ्य व्यवस्था का समाजवादीकरण किया गया था, जो आज भी बेहतर ढंग से काम कर रही हैं। कोरोना महामारी से निबटने के लिए आज भी क्यूबा के 2,800 डाक्टर, नर्स एवं स्वास्थ्य पेशेवर विभिन्न देशों में जाकर अपनी सेवायें दे रहे हैं। क्यूबा हेल्फ वर्कर्स यूनियन के महासचिव के अनुसार कुल 45 देशों से उनके पेशेवरों को आमंत्रित किया गया है और क्यूबा के करीब 5 लाख स्वास्थ्यकर्मी वहां जाने को तैयार हैं। उन्हें जनता के बीच खाना बांटने और अन्य प्रकार के राहत कार्य चलाने से ज्यादा सरकार एवं व्यवस्था के खिलाफ जनता को संघर्ष के मैदान में उतारने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्हें सरकार से मांग करनी चाहिए कि कोरोना वायरस को फैलाने से रोकने हेतु उचित कदम उठाये जायें, सभी संक्रमित लोगों की जांच और इलाज की मुफ्त एवं समुचित व्यवस्था की जाय; कम से कम 6 माह के लिए सभी जरूरतमंदों के लिए मुफ्त राशन एवं अन्य जरूरी चीजों की व्यवस्था की जाये और साथ ही लॉकडाउन के दौरान हुए सभी बेरोजगारों एवं गांव लौटे लोगों के लिए काम की व्यवस्था की जाय।

पीएम केयर्स फंड का फंडा

हाल में नरेन्द्र मोदी ने एक पीएम केयर्स फंड के निर्माण की घोषणा की है, जिसमें करोड़ों रूपये के दान मिलने शुरू हो गए हैं। मोदी ने इस फंड में महिलाओं से अपने सोने के जेवर भी दान करने की अपील की है। ज्ञात हो कि 1948 में ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय रिलीफ फंड की स्थापना की गई थी, जिसका लक्ष्य देश विभाजन की विभीषिका के शिकार लोगों की सहायता करना था। अभी इस फंड में करीब 3,800 करोड़ रू. जमा हैं। आज के समय में इस फंड का उपयोग प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए और बेघर हुए लोगों और भी दुर्घटनाओं व दंगों में पीड़ित लोगों की सहायता करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा असहाय और निर्धन लोगों के लिए हार्ट सर्जरी, किडनी ट्रांसप्लाइटेंशन और कैंसर के इलाज जैसे आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं में मद्द देने हेतु भी किया जाता है। यह फंड भी पूरी तरह जन सहयोग पर निर्भर है। इसके कोष में वाणिज्यिक बैंकों एवं अन्य एजेन्सियों द्वारा भी निवेश किया जाता है। इसके कोष से निकासी प्रधानमंत्री की सहमति से ही संभव होती है।

फिर भी नरेन्द्र मोदी ने अलग से प्रधानमंत्री सिटिजन असिस्टेंट एंड रिलीफ इन इमरजेन्सी सिचुऐशन्स (पीएमसीएआरईएस) नामक फंड बनाने का निर्णय लिया। ऐसा इसलिए किया गया कि इस पर पूरी तरह नियंत्रण मोदी सरकार के हाथों में रहेगा और यह जीपीएमएनआरएफ की तरह पारदर्शी भी नहीं होगा। इसका आडिट सीएजी द्वारा नहीं किया जायेगा। कोई मामूली चार्टर्ड एकाउटेन्ट भी इस फंड की आडिट कर सकता है। इसमें विदेशी एजेन्सियां भी योगदान कर सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक ने इस फंड में 1.5 लाख करोड़ डॉलर का योगदान किया है। मोदी के कई चहेते उद्योगपति भी कारपोरेट सोशल रिसपान्सिबिलिटी (सीएसआर) इस फंड में योगदान करके ही पूरा कर रहे हैं, ताकि उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकें। केन्द्र सरकार ने 31 मार्च को एक अध्यादेश भी लागू किया है, ताकि इस फंड में दान करने वालों को धारा 80 के तहत आयकर में छूट का लाभ 30 जून, 2020 तक मिल सके। पीएम केयर्स को एक ट्रस्ट के रूप में गठित किया गया है, जिसके चेयरमैन प्रधानमंत्री को बनाया गया है और इसमें वित्त मंत्री एवं रक्षा मंत्री को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। इस ट्रस्ट में किसी विपक्षी दल एवं नागरिक समाज के प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया है। जाहिर है कि इस फंड का उपयोग गैर पारदर्शी एवं पक्षपातपूर्ण तरीके से किया जायेगा।   


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