इस सिन्‍ड्रेला को अपनी रिहाई के लिए किसी शहज़ादे का इंतजार नहीं है!

ज्यादातर हिन्दी फिल्मों में हम यही देखते रहे हैं कि प्यार हुआ, प्यार की राह में तमाम रुकावटें आयीं, फिर उनको पार करके शादी हुई या प्रेमी जोड़े मिल गये। यह फिल्म इस मायने में अलग है कि यह सवाल करती है क्‍या प्‍यार ही पर्याप्‍त है। यह एक लम्बी छलांग है हिन्दी फिल्मों की इस परम्परा में, जो प्रेमी जोडे के बीच समानता और प्रतिष्‍ठा का नया आयाम खोलती है।

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