सबके लिए स्वास्थ्य: विश्व स्वास्थ्य दिवस पर WHO के चार दशक पुराने घिसे-पिटे जुमले का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ का संकल्प “सबके लिए स्वास्थ्य” सुनने में अच्छा लगता है और महसूस होता है कि संस्थाएं हमारी सेहत के लिए वास्तव में बहुत चिंतित हैं लेकिन यथार्थ है कि वैश्वीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के दौर में यह विशुद्ध छलावा है।

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अख़बारनामा: वैश्वीकरण के दौर में भारतीय पत्रकारिता का एक जायज़ा

आज जो साम्प्रदायिकता का ज़हर हमारे समाज की जड़ों में गहरे तक उतरता जा रहा है तो यह केवल आज घटित हो गई कोई परिघटना नहीं है। इसकी भूमिका तभी से बननी शुरू हो गई थी जब उदारीकरण की नीतियों के माध्यम से हमारा देश अमेरिकी साम्राज्यवाद के जाल में फंसने लगा था। इस बारे में आलोक श्रीवास्तव जी की यह पुस्तक आंखें खोलने वाली है।

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