साहित्य में साम्राज्यवाद और विस्थापन की तलाश: संदर्भ इजरायल-फिलिस्तीन संकट

साम्राज्यवाद को दो पैमानों से पहचाना जा सकता है। पहला यह कि शोषक ताकतें किसी दूसरे देश पर कब्जा करके यानि उसे उपनिवेश बनाकर उस देश के उद्योगों को खत्म कर देती हैं और दूसरा उस देश की उपज और उत्पादन को जबरदस्ती हड़पती जाती हैं।

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इस्माइल शाम्मूत की पेंटिंग

इजराइल के ज़ुल्मों के खिलाफ फिलिस्तीन की खुशहाली के ख्वाब

प्रलेसं इकाई अध्यक्ष डॉ जाकिर हुसैन ने कहा कि इजरायल द्वारा बड़े पैमाने पर महिलाओं, बच्चों की हत्या की गई है। यूरोपीय देशों का दोगलापन सामने आया है। एक तरफ वे ग़जा में खैरात बांट रहे हैं दूसरी तरफ इजराइल को नित नए शास्त्र देकर फिलिस्तीनियों के कत्लेआम में मदद कर रहे हैं। भारत सदैव फिलिस्तीन की जनता के पक्ष में रहा है लेकिन वर्तमान सरकार इजराइल के साथ खड़ी है।

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प्रेमचंद और परसाई को पढ़ना क्यों जरूरी है?

जब देश में गुलामी का दौर था तब साहित्य, विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिले। आजाद भारत में आज का युवा धार्मिक यात्राओं में ही लीन हैं। प्रेमचंद को पहले ब्राह्मण विरोधी प्रचारित किया गया अब उन्हें दलित विरोधी बताया जा रहा है।

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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह

उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।

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“सामाजिक बदलाव का क्षण साहित्य की निगाहों से चूकना नहीं चाहिए!”

प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की 87वीं वर्षगांठ एवं हरिशंकर परसाई की जन्मशताब्दी के अवसर पर प्रलेस की इंदौर इकाई द्वारा ओसीसी होम, रुद्राक्ष भवन, इंदौर में गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने संबंधित विषयों पर अपनी बात रखी।

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‘साम्प्रदायिकता और कॉरपोरेट, दोनों ही खतरों से लेखक लेंगे लोहा’! प्रलेस सम्मेलन में लेखकों ने लिया संकल्प

‘प्रगतिशील लेखन आंदोलन- चुनौतियां और दायित्व तथा बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में लेखकों की भूमिका’ विषय पर सम्मेलन में अनेक विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार रखे। संपन्न आयोजन में साहित्य संस्कृति के अनेक रंग देखे गए।

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“प्रगतिशील लेखन एक आंदोलन है” : प्रलेस, इंदौर का जिला सम्मेलन

सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे इंदौर इकाई के अध्यक्ष चुन्नीलाल वाधवानी ने अपने संबोधन में कहा कि तलवार के जोर पर कब्जा तो किया जा सकता है लेकिन क्रांतिकारी बदलाव नहीं। यह कार्य साहित्यकार कर सकता है। गांधी, भगत सिंह, अंबेडकर के बगैर भारत की कल्पना नहीं की जा सकती।

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शहीद कॉमरेड गोविन्द पानसरे की याद में प्रलेस का आयोजन

कॉमरेड गोविंद पानसरे की स्मृति में प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई द्वारा आयोजित बैठक में विनीत ने कहा कि यह विडंबना ही है कि कॉमरेड पानसरे को देश में उनकी मृत्यु के बाद ही पहचाना जा सका जबकि महाराष्ट्र में तो उनके जनसंघर्षों और लेखन की वजह से उन्हें सभी जानते हैं।

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चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले…

फ़ैज़ साहब के बारे में ये एक बात बहुत कम लोग जानते हैं। उसे प्रचारित भी नहीं किया गया। जब गांधीजी की हत्या हुई थी तब फ़ैज़ साहब “पाकिस्तान टाइम्स” के संपादक थे। गांधीजी की शवयात्रा में शरीक होने वे वहां से आए थे चार्टर्ड प्लेन से। और जो संपादकीय उन्होंने लिखा था, गांधीजी के व्यक्तित्व का बहुत उचित एतिहासिक मूल्यांकन करते हुए शायद ही कोई दूसरा संपादकीय लिखा गया होगा।

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लेखक संगठन और आत्मालोचन का सवाल: हिरन पर घास कौन लादेगा?

प्रो. अब्दुल अलीम, जिनका संबंध प्रगतिशील लेखक संघ के पुरोधाओं से है, उन्होंने लेखकों की एक बड़ी मीटिंग में कहा था कि लेखक संगठन बनाना उतना ही कठिन है जितना कि हिरन पर घास लादना, लेकिन हिरन पर घास लादने का कार्य प्रगतिशील लेखक संघ के उत्तराधिकारियों का काम है। इसे कोई दूसरा नहीं कर सकता है।

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