संविधान में वर्णित स्वतंत्र नागरिक नये भारत में आखिर कैसे बन गया दया का पात्र लाभार्थी?

यह कैसे हो गया कि आजादी के 75 साल बाद भी देश के नागरिक दो जून की रोटी भी जुटा पाने में असमर्थ है? तो क्या यही आर्थिक रूप से असमर्थ नागरिक लाभार्थी में बदल दिए गए हैं? सवाल है कि क्या हमारे देश के स्वतन्त्र नागरिक अब लाभार्थी हो गए?

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पूंजीवाद और लोकतंत्र के ऐतिहासिक रिश्तों के आईने में संवैधानिक मूल्यों की परख

चिली से यह नवउदारवाद शुरू हुआ था। आज वहां शिक्षा के व्यावसायीकरण के खिलाफ चलने वाले आन्दोलन का छात्र नेता राष्ट्रपति चुना गया है। चक्र पूरा हो चुका है। अलेंदे को हटा कर पिनोचे को बैठा कर जो प्रयोग किया गया, पूरी दुनिया में जिसे फैलाया गया वह वहीं अपनी पुरानी जगह फिर पहुँच गया। जिन मुल्कों में 30 साल पहले नवउदारवादी नीतियां और सुधार लागू किये गये उन सभी मुल्कों में सत्र पूरा होने की घंटी बज रही है।

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