श्रद्धांजलि: यह वह नंबर नहीं है जिस पर तुम सुनाते थे अपनी तकलीफ़…


हिन्दी के मानिंद कवि और वरिष्ठ संपादक मंगलेश डबराल का आज शाम दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। वे 72 वर्ष के थे और कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। जनपथ उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हुए उन्हीं की लिखी एक कविता को पुनः प्रकाशित कर रहा है।

यह नंबर मौजूद नहीं

दिस नंबर डज़ नॉट एग्ज़िस्ट
जहां भी जाता हूं जो भी फ़ोन मिलाता हूं
अकसर एक बेगानी सी आवाज़ सुनाई देती है
दिस नंबर डज़ नॉट एग्ज़िस्ट यह नंबर मौजूद नहीं है
कुछ समय पहले इस पर मिला करते थे बहुत से लोग
कहते आ जाओ हम तुम्हें पहचानते हैं
इस अंतरिक्ष में तुम्हारे लिए भी बना दी गयी है एक जगह

लेकिन अब वह नंबर मौजूद नहीं है वह कोई पहले का नंबर था
उन पुराने पतों पर बहुत कम लोग बचे हुए हैं
जहां आहट पाते ही दरवाज़े खुल जाते थे
अब घंटी बजाकर कुछ देर सहमे हुए बाहर खड़ा रहना पड़ता है
और आख़िरकार जब कोई प्रकट होता है
तो मुमकिन है उसका हुलिया बदला हुआ हो
या वह कह दे मैं वह नहीं हूँ जिससे तुम बात करते थे
यह वह नंबर नहीं है जिस पर तुम सुनाते थे अपनी तकलीफ़

जहां भी जाता हूं देखता हूं बदल गए हैं नंबर नक़्शे चेहरे
नाबदानों में पड़ी हुई मिलती हैं पुरानी डायरियां
उनके नाम धीरे-धीरे पानी में धुलते हुए
अब दूसरे नंबर मौजूद हैं पहले से कहीं ज़्यादा तार-बेतार
उन पर कुछ दूसरी तरह के वार्तालाप
महज़ व्यापार महज़ लेनदेन खरीद-फरोख्त की आवाजें लगातार अजनबी होती हुई
जहां भी जाता हूँ हताशा में कोई नंबर मिलाता हूं
उस आवाज़ के बारे में पूछता हूं जो कहती थी
दरवाज़े खुले हुए हैं तुम यहाँ रह सकते हो
चले आओ थोड़ी देर के लिए यों ही कभी भी इस अंतरिक्ष में.


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *