हफ़्ता वसूल: साहेब के पैकेज के जश्न में गुम हो गयीं मजदूरों की सिसकियां…
सरकार के प्रति ‘सकारात्मक’ सुर्खी लगाने में अंग्रेजी अख़बार हिंदी समाचारपत्रों से बहुत पीछे नहीं थे
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सरकार के प्रति ‘सकारात्मक’ सुर्खी लगाने में अंग्रेजी अख़बार हिंदी समाचारपत्रों से बहुत पीछे नहीं थे
Read Moreबात तो करना ही पड़ेगी। बोलना तो पड़ेगा ही। बात बोलेगी भी और अपने समय के भेद भी खोलेगी और ज़ुबान पर चढ़ती जा रही बर्फ की मोटी सिल्लियों को पिघलाने का काम भी करेगी।
Read Moreहमारे देश के अधिसंख्य ‘बुद्धिजीवी’ इसी मोड में हैं कि उन्हें आज भी यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि मोदी जी के नेतृत्व में ही कोरोना से जंग जीती जा सकती है!
Read Moreयह समझना मुश्किल नहीं है कि इस वायरस संक्रमण से बचने का जो नुस्खा लॉकडाउन के रूप में सुझाया गया था वह सवालों के घेरे में है।
Read Moreपॉल ब्रास के अनुसार, पंडित पंत की नीति का ही यह परिणाम था कि आने वाली आधी शताब्दी तक मुसलमानों की भागीदारी उत्तर प्रदेश की सरकारी सेवाओं और पुलिस में लगातार कम होती चली गयी.
Read Moreकोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में जिन चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों को ‘कोरोना वारियर’ बताया जा रहा है वे खुद कोरोना संक्रमण के डर से आतंकित हैं।
Read Moreकाशी से ‘छान घाेंट के’ डॉ. लेनिन का पाक्षिक स्तम्भ
Read Moreयहां सवाल सिर्फ संवैधानिक संकट से बचने का नहीं है और जिसे हम सिर्फ एक मुख्यमंत्री के किसी सदन के सदस्य न बनने के रूप में देख रहे हैं, वह इतनी छोटी बात नहीं है. अगर इसे बड़े फलक पर देखें तो पता चल सकता है कि यह संकट क्यों इतना गहरा है.
Read Moreहकीकत तो यह है कि रामचंद्र गुहा के इस लेख से ज्यादा गंभीर अल्पना किशोर का लेख है. फिर भी हिन्दुस्तान टाइम्स ने उस लेख को छापने से मना कर दिया.
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