राग दरबारी: क्या सरकार इतनी अराजकता चाहती है कि अबकी आसानी से शहर वापस ही न जाएं मजदूर!

अगर सरकार चाहती तो आसानी से हर दिन पौने दो करोड़ लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचा सकती थी

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छान घाेंट के: ग्वांगजू जन-विद्रोह की याद क्यों ललकार रही है आज…

भारत को अपने जन विद्रोहों पर जन स्मारक बनाने और जन स्मृतियों में लाने का काम दक्षिणी कोरिया से सीखना चाहिए

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तन मन जन: सत्ता से लेकर सड़क तक कोरोना-काल में इतिहास रचती औरतें

अध्ययन और आंकड़े बता रहे हैं कि कई देश जहां महिलाएं शासन में हैं, वहां कोरोना संक्रमण से नुकसान तो हुआ लेकिन वह अन्य देशों की तुलना में काफी कम हुआ

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हफ़्ता वसूल: साहेब के पैकेज के जश्न में गुम हो गयीं मजदूरों की सिसकियां…

सरकार के प्रति ‘सकारात्मक’ सुर्खी लगाने में अंग्रेजी अख़बार हिंदी समाचारपत्रों से बहुत पीछे नहीं थे

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बात बोलेगी: भेद खोलेगी बात ही…

बात तो करना ही पड़ेगी। बोलना तो पड़ेगा ही। बात बोलेगी भी और अपने समय के भेद भी खोलेगी और ज़ुबान पर चढ़ती जा रही बर्फ की मोटी सिल्लियों को पिघलाने का काम भी करेगी।

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राग दरबारी: विकास के वैकल्पिक मॉडल पर भारत में चर्चा क्यों ठप है?

हमारे देश के अधिसंख्य ‘बुद्धिजीवी’ इसी मोड में हैं कि उन्हें आज भी यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि मोदी जी के नेतृत्व में ही कोरोना से जंग जीती जा सकती है!

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तन मन जन: नुस्खा ऐसा कि सांप भी नहीं मरा और लाठी भी टूट गयी…

यह समझना मुश्किल नहीं है कि इस वायरस संक्रमण से बचने का जो नुस्खा लॉकडाउन के रूप में सुझाया गया था वह सवालों के घेरे में है।

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राग दरबारीः पंत से लेकर अंत तक राजसत्ता की मज़हबी जंग के सात दशक

पॉल ब्रास के अनुसार, पंडित पंत की नीति का ही यह परिणाम था कि आने वाली आधी शताब्दी तक मुसलमानों की भागीदारी उत्तर प्रदेश की सरकारी सेवाओं और पुलिस में लगातार कम होती चली गयी.

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तन मन जन: जिन चिकित्साकर्मियों को ‘कोरोना वारियर’ कहा जा रहा है, वे संक्रमण का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट हैं!

कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में जिन चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों को ‘कोरोना वारियर’ बताया जा रहा है वे खुद कोरोना संक्रमण के डर से आतंकित हैं।

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