रायपुर धर्म-संसद के आयोजकों में शामिल थे कांग्रेस के नेता! ऐसे कैसे लड़ेंगे हिन्दुत्व से राहुल?

चौंकाने वाली बात है मगर सच है कि राहुल गांधी की प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस पार्टी के समानांतर छत्‍तीसगढ़ में भूपेश बघेल की नाक के नीचे एक ‘संघी’ कांग्रेस भी ऑपरेट कर रही है। राजधानी रायपुर में आयोजित हुई धर्म संसद में इस ‘संघी’ कांग्रेस के कई विधायक और नेता न केवल मौजूद थे, बल्कि मुख्य आयोजक थे।

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चालीस प्रतिशत महिला प्रत्याशी का फैसला यदि ‘राजनीति’ है, तो यही अच्छी और खालिस राजनीति है!

जिस प्रदेश में आज तक कमोबेश श्मशान-कब्रिस्तान, धर्म और जाति जैसे जहरीले मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया वहां इस तरह की क़वायद एक बड़ी उम्मीद लेकर आती दिख रही है। ऐसा नहीं है कि इस फैसले से सब अच्छा हो गया है, लेकिन यह फैसला एक बुनियादी गैर-बराबरी को पाटने की तरफ बढ़ाया गया उम्मीद भरा कदम है जिसका चतुर्दिक स्वागत होना चाहिए।

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बात बोलेगी: खतरे में पड़ा देश, खतरों के खिलाड़ी और बचे हुए हम!

देश निरंतर खतरे की तरफ तेज़ कदमों से बढ़ा जा रहा है। लगता है देश जो है वो सुसाइडल यानी आत्महंता हो चुका है जो किसी भी तरह मरने पर आमादा है। जैसे कुएं के पाट पर खड़ा हो- अब कूदा कि तब कूदा। और तैरना उसे आता नहीं है, जिसका ज्ञान उसे छोड़कर बाकी सबको है। इसलिए सब उसे कूदने से रोक रहे हैं। डर लग रहा है देखकर कि कहीं कुछ लापरवाही न हो जाए। हाथों से छिटककर देश कहीं सचमुच कुएं में समाधि न लगा ले।

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कांग्रेस का आंतरिक संकट और नये दरबारियों से घिरे शीर्ष नेतृत्व की भटकन

भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में पराजित करने की कोई भी रणनीति कांग्रेस की उपेक्षा करके अथवा उसे पूर्ण रूप से खारिज करके तैयार नहीं की जा सकती। यह भी एक ध्रुव सत्य है कि नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस अविभाज्य रूप से अन्तरसम्बन्धित हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। यह रिश्ता इतना अनूठा और अपरिभाषेय है कि कांग्रेस की दुर्दशा के लिए नेहरू-गांधी परिवार को जिम्मेदार मानने वाले भी यह जानते हैं कि अगर कांग्रेस को सत्ता वापस कोई दिला सकता है तो वह नेहरू-गांधी परिवार ही है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: पंजाब के नये मुख्यमंत्री क्या इतिहास को चुनौती दे रहे हैं?

पूरे देश में सबसे ज्यादा दलितों की आबादी पंजाब में ही है लेकिन विडंबना देखिए इन डेरों की वजह से बीएसपी या कोई और दलित पार्टी यहां कभी खड़ी नहीं हो सकी। दलित सिर्फ डेरा प्रमुख के आदेश पर वोट डालते रहे।

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हार्दिक पटेल के कांग्रेस में होने का मतलब क्या है?

यह किसी के भी समझ में न आनेवाली बात है कि आखिर कांग्रेस अपने संभावनाशील युवा नेताओं की कद्र क्यों नहीं कर पा रही। सुष्मिता देब, जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया का जाना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहा, लेकिन जो बचे हैं उनमें हार्दिक पटेल जैसे क्षमतावान युवा नेता को ताकत देने के मामले में कांग्रेस की कंजूसी समझ से परे है। गुजरात में वैसे भी कांग्रेस के पास खोने को बाकी रहा क्या है!

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राजनीतिक उत्प्रेरक के रूप में सांप्रदायिकता का इस्तेमाल और राष्ट्रीय आंदोलन से सबक

दुर्भाग्य से हमारे कुछ बुद्धिवादियों के पास साम्प्रदायिकता एक ऐसा बांड है जिसे वे कभी भी और कहीं भी भुना सकते हैं। साम्प्रदायिकता पर उनका इतना विशद अध्ययन है कि अब उनसे कोफ़्त होने लगी है क्योंकि पूरे भारतीय समाज की हर समस्या को वे साम्प्रदायिकता से कमतर आंकते हैं। यह भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है।

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नरेंद्र मोदी के पैदा किये सवालों के जवाब राहुल गांधी के पास हैं, लेकिन वही उनकी चुनौती भी हैं!

राहुल गांधी के भाषण हों या पत्रकार वार्त्ताएं, देश की आर्थिकी के संबंध में वे खुल कर अपने विचार व्यक्त करते हैं और तब यह सोच कर ताज्जुब होता है कि मनमोहन सिंह के दस वर्षों के शासनकाल में उनकी ऐसी सोच कहां थी, जब वे संविधानेतर शक्ति के रूप में सत्ता पर बेहद प्रभावी थे।

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इस अविश्वास प्रस्ताव ने किसानों के खिलाफ राजनीतिक दुरभिसंधि का परदाफाश कर दिया

हरियाणा में विपक्षी कांग्रेस पार्टी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कांग्रेस के 30 व 2 निर्दलीय यानी कुल 32 विधायकों ने वोट किया जबकि‍ जजपा समर्थित भाजपा सरकार को हलोपा (1), निर्दलीय (5), जजपा (10) व भाजपा के 39 मिला कर कुल 55 विधायकों का समर्थन मिला!

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BPF के कांग्रेस गठबंधन में आने से भाजपा को हो सकता है 12 सीटों पर 5-6% वोटों का नुकसान

इस कदम से कांग्रेस के लिए एक बड़ी बढ़त का अनुमान लगाया जा रहा है क्योंकि कई लोगों का मानना है कि पार्टी बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन में गठबंधन के पक्ष में वोट स्विंग कर सकती है, जो बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) द्वारा शासित है और लगभग 15 विधानसभा सीटों पर इसका जनाधार है।

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