राजस्थान विधानसभा चुनाव: कांटे की टक्कर में कांग्रेस-भाजपा

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार की योजनाओं व खुद के किए कामों को लेकर आश्वस्त हैं कि प्रदेश में दोबारा कांग्रेस की जीत होगी। दूसरी ओर भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले फिर से अपनी राजनीतिक जमीन हासिल करने की भरपूर कोशिश में है। भाजपा के लिए राजस्थान की 25 लोकसभा सीटें 2024 में केंद्र में अपनी सत्ता बनाने के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं।

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हरियाणा में इस बार किस फिराक में है बहुजन समाज पार्टी?

बसपा सुप्रीमो ने हरियाणा में समय से पहले चुनाव की आशंका को देखते हुए एक और चुनावी बाजी के लिए पदाधिकारियों को इसी वर्ष जुलाई में सचेत किया था। दिल्ली मीटिंग में मायावती ने हरियाणा के चुनाव को लेकर खास निर्देश भी दिए थे। मायावती की रणनीति अबकी बार ‘सर्व समाज’ को साथ ले कर हरियाणा में चुनाव में उतरने की है।

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खेतिहर समाज में असंतोष को बढ़ाएगा बजट में किसानों के साथ किया गया छल

बजट में कृषि मद में पिछले वर्षों की अपेक्षा अबकी बार अधिक प्रावधान किये जाने की उम्मीद थी जिससे सरकार द्वारा 2016 में किये गए किसानों की आय को 2022 तक दुगना करने के वायदे को सार्थक किया जा सकता था, लेकिन इसके विपरीत कई कटौतियां कर दी गयीं।

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सत्ता-प्राप्ति पर केंद्रित चुनाव बनाम लेबर चौक पर खड़ा लोकतंत्र: कुछ जरूरी सवाल

लेबर चौक पर खड़ा लोकतंत्र का नुमाइंदा क्या चेहरों को देख कर ही इस बार भी मतदान करेगा या कुछ और भी सोच पाने की स्थिति में इन गर्दिशों के दौर में आ चुका है? बार-बार ठगे जाने को कहीं अपनी नियति मान एक दिहाड़ी के एवज में नीतियों को नकार कर अपने भाग्य को कोसता रहेगा या जूझने की ताकत और यकीन को फिर से गिरवी रख देगा?

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किसान अन्दोलन का एक साल: प्राप्तियों का मूल्यांकन

संयुक्त किसान मोर्चा एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है जिसका राजनीतिक दल अभी मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं। किसान अन्दोलन ने जहां एक ओर जनता को उनकी ताकत का अहसास करवा दिया है तो दूसरी ओर सत्‍ता की जवाबदेही को भी सुनिश्चित कर दिया है।

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ऐलानाबाद : किसान आंदोलन के प्रति जनता में कायम विरोधाभासों का संकेत है भाजपा का प्रदर्शन

किसान अन्दोलन के कारण अनुकूल परिस्थितियों में अभय चौटाला की जीत अपेक्षित थी, लेकिन भाजपा प्रत्याशी गोविन्द कांडा को जितने मत प्राप्त हुए उनसे साफ होता है कि किसान बहुल क्षेत्र में भाजपा की पैठ कितनी गहरी हो चुकी है और कृषि कानूनों के प्रति जनता कितने विरोधाभासों में है।

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पंजाब-हरियाणा: पवार की राह पर कैप्‍टन, आंदोलन की नाव से पार उतरने की कोशिश में चौटाला!

किसान आंदोलन के दस महीने पूरे होने पर पंजाब और हरियाणा की राजनीति में जो उथल-पुथल देखी जा रही है, वो इस बात का गवाह है कि पंजाब और हरियाणा के शांतिपूर्ण किसानों की जिद के आगे सत्‍ता के गलियारों में भयंकर बेचैनी है। ये बेचैनी क्‍या शक्‍ल अख्तियार करेगी यह तो आने वाले दिन ही बताएंगे लेकिन दोनों राज्‍यों में हो रही सियासी हलचलों को समझना जरूरी है। दो अलग-अलग टिप्‍पणियों में पंजाब और हरियाणा के सियासी माहौल का जायज़ा ले रहे हैं वरिष्‍ठ टिप्‍पणीकार जगदीप सिंह सिंधु।

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‘आपदा में अवसर’ को भांप लेने का तजुर्बा और मेघालय से आती एक आवाज़!

सत्यपाल मलिक अपने विवादास्पद बयानों के कारण चर्चा में आते रहे हैँ! जम्मू कश्मीर का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने करगिल में एक सभा में विवादित बयान दे दिया था।

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इस अविश्वास प्रस्ताव ने किसानों के खिलाफ राजनीतिक दुरभिसंधि का परदाफाश कर दिया

हरियाणा में विपक्षी कांग्रेस पार्टी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कांग्रेस के 30 व 2 निर्दलीय यानी कुल 32 विधायकों ने वोट किया जबकि‍ जजपा समर्थित भाजपा सरकार को हलोपा (1), निर्दलीय (5), जजपा (10) व भाजपा के 39 मिला कर कुल 55 विधायकों का समर्थन मिला!

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100 दिन: अधिकारों और न्याय के संघर्ष में परिवर्तित होता किसान आंदोलन

दुनिया के अन्य विकसित देशों से इस आन्दोलन की मांगों, अधिकारों और न्याय के लिए समर्थन निरंतर मिल रहा है। भारत के अन्य राज्यों में महापंचायतों के विस्तार से जो जागरूकता समाज के विभिन्न वर्गों में उभर रही है वो न्याय व अधिकारों के संघर्ष के स्पष्ट संकेत हैं।

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