नरम हिन्दुत्व या ‘सेकुलर’ दलों की लड्डू पॉलिटिक्स?

तिरुपति मंदिर में तैयार हो रहे लड्डुओं में मिलावट पर गुजरात की प्रयोगशाला की जुलाई की एक रिपोर्ट के चुनिंदा अंश हरियाणा आदि राज्यों में हो रहे चुनावों के ऐन पहले सार्वजनिक करने की बेचैनी इस बात की तरफ साफ इशारा कर रही थी कि मामला इतना आसान नहीं है

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दिल्ली में धर्मांतरण: भाजपा और आप दोनों डरपोक

भाजपा से भी ज्यादा डरपोक निकली आप पार्टी! उसने अपने मंत्री को इस्तीफा क्यों देने दिया? वह डटी क्यों नहीं? उसने वैचारिक स्वतंत्रता के लिए युद्ध क्यों नहीं छेड़ा? क्योंकि भाजपा, कांग्रेस और सभी पार्टियों की तरह वह भी वोट की गुलाम है। हमारी पार्टियों को अगर सत्य और वोट में से किसी एक को चुनना हो तो उनकी प्राथमिकता वोट ही रहेगा

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विपरीत परिस्थितियां ही क्रांति को जन्म देती हैं! विधानसभा चुनावों के नतीजों से निकलते सबक

रोचक बात यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने विपक्षियों को ही ‘सांप्रदायिक’ बता दिया। नेता और जनता के बीच शानदार ‘कनेक्टिविटी’ रखने वाले नरेंद्र मोदी का मतदाताओं पर असर दिखा भी जब मुझे कुछ मतदाताओं के द्वारा कहा गया कि जब मुसलमान समाजवादी पार्टी के पक्ष में एक हो सकते हैं, तो हम लोग बीजेपी के पक्ष में एक क्यों न हो?

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गोवा: चौपट धंधा, सूने पड़े बीच और ओमिक्रॉन के साये में चुनावी पर्यटकों के सियासी करतब

खूबसूरत समुद्री किनारोंवाला गोवा सभी को लुभाता है लेकिन कोरोना की कसक के बीच खराब आर्थिक हालात से लोग हैरान हैं। धंधा चौपट है, फिर भी चुनाव तो होना ही है, सो दुष्कर हालात में भी गोवा अपनी राजनीति के नये प्रतिमान गढ़ने की तरफ बढ़ रहा है।

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बात बोलेगी: बिजली, पानी और बजटीय मद में 45 करोड़ की देशभक्ति भी मुफ़्त, मुफ़्त, मुफ़्त!

बिजली-पानी के साथ साथ अब देशभक्ति की मुफ्त डोज़। दिल्ली को देशभक्त होने से अब कोई नहीं रोक पाएगा। उम्मीद है जब इस महान कार्यक्रम का उल्लंघन दिल्ली के नागरिक करेंगे तो केजरीवाल जी की सरकार के कहने पर उनके नियंत्रण से बहरा बतलायी जाने वाली दिल्ली पुलिस उनके इशारों पर काम करेगी क्योंकि उसे ऐसा करने का अनुमोदन नई दिल्ली से एडवांस में प्राप्त होगा।

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किसान आंदोलन: कांग्रेस, AAP और लेखक-सांस्कृतिक संगठनों ने किया भारत बंद का समर्थन

आज न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव, दलित लेखक संघ, अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा, संगवारी, प्रतिरोध का सिनेमा और जनवादी लेखक संघ ने किसान आंदोलन की माँगों और 8 दिसंबर के भारत बंद के समर्थन में बयान जारी किया।

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एक हम्माम में तब्दील हुई है दुनिया, सब ही नंगे हैं किसे देख के शरमाऊँ मैं!

बड़े नेता दिल्ली स्तर पर पार्टी बदलते हैं, उनसे छोटे नेता राज्य स्तर पर और सबसे निचले स्तर के जिला स्तर पर दल बदल करते हैं. मीडिया का सारा ध्यान केवल राष्ट्रीय स्तर पर रहता है. उधर जमीन पर बदलाव पर ध्यान ही नहीं जाता किसी का.

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उत्तर प्रदेश सरकार असुरक्षित क्यों महसूस कर रही है?

उत्तर प्रदेश सरकार को आखिर इतना नीचे क्यों गिरना पड़ा कि उसे आम आदमी पार्टी के लखनऊ कार्यालय में अपनी पुलिस से ताला लगवा दिया? उ.प्र. भाजपा सरकार की असुरक्षा का क्या कारण है?

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