विपरीत परिस्थितियां ही क्रांति को जन्म देती हैं! विधानसभा चुनावों के नतीजों से निकलते सबक

रोचक बात यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने विपक्षियों को ही ‘सांप्रदायिक’ बता दिया। नेता और जनता के बीच शानदार ‘कनेक्टिविटी’ रखने वाले नरेंद्र मोदी का मतदाताओं पर असर दिखा भी जब मुझे कुछ मतदाताओं के द्वारा कहा गया कि जब मुसलमान समाजवादी पार्टी के पक्ष में एक हो सकते हैं, तो हम लोग बीजेपी के पक्ष में एक क्यों न हो?

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महिला दिवस: इलाहाबाद से स्त्री-मुक्ति के चार सक्रिय स्वर

एक एक्टिविस्ट के रूप में मुझे इस बात की खुशी है कि इलाहाबाद में- जो जनवादी कार्यकर्ताओं का मुख्य केन्द्र है- वहां पर ऐसी कई महिला एक्टिविस्ट हैं जिन्होंने सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में अपना एक अलग मुकाम बनाया है। उनके लिए शिक्षा केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का जरिया न रहकर ज्ञान प्राप्ति और समाज परिवर्तन का भी माध्यम बना।

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आंदोलनकारियों का चुनावी राजनीति में जाना: अन्ना आंदोलन से किसान आंदोलन तक के अनुभव

एक आंदोलनकारी के रूप में हमने महसूस किया है कि आंदोलनकारी कुछ बुनियादी लक्ष्य को लेकर आंदोलन करते हैं जिनके मन में ढेर सारे सपने रहते हैं। ऐसे में जब यह चुनाव में उतरने का फैसला करते हैं तो उसी सपने या आदर्श को लेकर सामने आते हैं लेकिन उनके सामने वहां पर एक अलग तरह की परिस्थिति नजर आती है जो उनके आदर्श से बिल्कुल विपरीत रहती है।

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क्रिकेट की बदलती रीत या कॉर्पोरेट की पिच पर राष्ट्रवाद की जीत?

पाकिस्तान की जीत पर भारत में पहले भी पटाखे फूटते रहे हैं और जब हम पाते हैं कि दो राष्ट्र का बंटवारा होने के बावजूद एक दूसरे की रिश्तेदारी आज भी दोनों देशों में है और धर्म के नाम पर राजनीति करना, उनको बरगलाना और अपनी सियासी रोटियां सेंकना- यह सब आजादी के बाद से ही लगातार होता आया है तो हमें कोई आश्चर्य नहीं लगता।

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सामाजिक कार्यकर्ताओं की पीढ़ियों को पोषित करने वाला एक गाँधीवादी गणितज्ञ और स्वप्नद्रष्टा

20 मई 1935 को आगरा जिले में जन्म लेने वाले डॉ. बनवारी लाल शर्मा, जिन्होंने पेरिस यूनिवर्सिटी से डीएससी की उपाधि ली और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के गणित विभाग के विभागाध्यक्ष पद से रिटायर हुए, जितने बड़े एकेडेमिशियन थे उतने ही बड़े सामाजिक कार्यकर्ता भी थे।

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असली देशभक्ति क्या है? महामारी के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद की याद

स्वामी जी द्वारा तय किये गये देशभक्ति के पैमाने पर उन पर दावे करने वाली और उनके नाम की माला जपने वाली संस्थाएं कहां खड़ी नजर आती हैं?

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जनादेश: 2024 की भाजपा-विरोधी पटकथा और ‘निजी महत्त्वाकांक्षाओं’ का सियासी रोड़ा

कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी आने वाले दिनों में स्टालिन, चंद्रबाबू नायडू, तेजस्वी यादव, तेलंगाना के टीआरएस, नवीन पटनायक और उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव के साथ मिलकर एक मोर्चा बना सकती हैं ताकि भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में टक्कर दी जा सके। अभी कई तरह की पटकथा लिखी जानी बाकी है क्योंकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है और इस चुनाव परिणाम ने उसे और कमजोर कर दिया है। सभी दलों के एक साथ आने में सबसे बड़ा रोड़ा उनकी अपनी “निजी महत्वाकांक्षा” है।

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मत भूलिए, आपकी मातृसंस्था भी एक शताब्दी से आंदोलन ही कर रही है: एक आंदोलनकारी का PM के नाम खुला पत्र

अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे लोगों ने भी आजादी के लिए आंदोलन किया, तो क्या वे भी आपकी नज़र में आंदोलनजीवी हैं? ढाई महीने से अधिक हो गए, देश का किसान दिल्ली की सड़कों पर कड़कड़ाती ठंड में पड़ा है। अपने वाजिब हक के लिए सरकार के सामने हाथ फैलाना गुनाह है?

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