गोवा: चौपट धंधा, सूने पड़े बीच और ओमिक्रॉन के साये में चुनावी पर्यटकों के सियासी करतब


गोवा की उछाल मारती समुद्री लहरों में राजनीतिक के रंग दिखायी देने लगे हैं  लेकिन इन्हीं रंगों को बदरंग कर रही है कोरोना के नये वेरिएंट ओमिक्रॉन की आहट। दिसंबर का महीना है और गोवा में दुनिया भर से लोग साल के इस आखिरी महीने में मौज मस्ती और नये साल का स्वागत करने पहुंचते हैं लेकिन दो साल से कोरोना के असर से परेशान गोवा को इस बार ओमिक्रॉन ने दहशत में डाल दिया है। नये साल के आने के पहले ही यहां से सैलानियों की वापसी शुरू हो गयी है और ज्यादातर होटल व क्लब खाली पड़े हैं।

हाल यह है कि वीकेंड की रातों को क्लब कबाना और थलासा जैसी गोवा की मशहूर जगहों पर प्रवेश के लिए जहां मिन्नतें करनी पड़ती थीं अब वहां पर खुद क्लब के लोग सड़क पर खड़े होकर पर्यटकों को बुला रहे हैं। थलासा के जुएल लोबो के अनुसार नये वेरिएंट की खबरों के चलते अचानक भीड़ घट गयी है और अब वे भी लोगों को फ्री एंट्री दे रहे हैं।  इस बीच चुनाव सिर पर हैं और आगे क्या होगा, इसे लेकर सभी असमंजस में हैं। जीवन से लेकर समाज और माहौल से लेकर राजनीति हर तरफ असमंजस है।

कोरोना के कारण गोवा में इस साल विदेशी पर्यटक आ नहीं पाए। उम्मीद थी कि दिसंबर में विमान सेवाएं शुरू होंगी तो विदेशी आएंगे लेकिन नये वेरिएंट के कारण सारी उड़ानें बंद कर दी गयी हैं। साथ ही चार्टर्ड प्लेन की परमीशन भी नहीं मिल रही है इसलिए अब कोई उम्मीद नहीं बची है। लगभग सारे बीच सूने पड़े हैं इसलिए गोवा आने वाले देसी सैलानियों के लिए सबसे बड़े आकर्षण सन बाथ का माहौल भी इस बार नहीं बन पा रहा है।  आप कल्पना नहीं कर पाएंगे, लेकिन गोवा में बीच पर बनी दुकानें जो रात भर खुली रहती थीं, वे अब दस बजे के बाद ही बंद हो जा रही हैं। करीब चालीस प्रतिशत दुकानें इस बार खुली ही नहीं।

गोवा के एडवोकेट अनिकेत देसाई के अनुसार कोराना ने गोवा की इकॉनमी को खत्म कर दिया है। दो साल बाद इस बार कुछ उम्मीद थी, लेकिन नये वेरिएंट के डर से सब खत्म हो रहा है। गोवा में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ रही है। उनके अनुसार सरकार को माइनिंग शुरू करना चाहिए ताकि लोगों को पैसा मिल सके। इस खराब हालात में भी राजनीतिक पार्टियां फरवरी में चुनाव के लिए दम लगा रही है। चुनावी दलबदल औऱ दावे शुरू होने के साथ ही घात-प्रतिघात की राजनीति दम भरने लगी है। पोस्टर वार में केजरीवाल और ममता दीदी की टीएमसी सबसे आगे दिख रही है। एयरपोर्ट से लेकर पणजी शहर तक हर जगह दोनों ने सैकड़ों पोस्टर बैनर लगा दिये हैं लेकिन असली लड़ाई तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है।

पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की गैर-मौजूदगी में हो रहे पहले चुनाव में बीजेपी को एक चेहरे की तलाश है तो कांग्रेस अपने पुराने चेहरे दिगंबर कामत पर ही दांव लगा रही है। कोरोना में सरकारी काम नहीं होने से लोग परेशान हैं लेकिन कांग्रेस इसे भुना नहीं पा रही है। पार्टी ने पी. चिदंबरम को यहां काम पर लगाया है, लेकिन कांग्रेस को डर है कि केजरीवाल की आप और ममता बनर्जी की टीएमसी असल में उन सरकार विरोधी वोटों को काट देगी जो कांग्रेस को मिल सकते हैं।  

गोवा में लोग बेरोजगारी, मंदी और विकास नहीं होने से परेशान हैं लेकिन यहां चुनावी मुददा भ्रष्‍टाचार और दस साल पहले शाह कमीशन की रिपोर्ट में बताये गये 35 हजार करोड़ के खनन घोटाले को बनाया जा रहा है। टीएमसी ने गोवा के एक एनजीओ गोवा फाउंडेशन के समझाने पर 35 हजार करोड़ के जुमले को उछाल दिया है। लोगों को कहा जा रहा है कि अगर ये पैसे सरकार ने वसूल लिए तो गोवा के हर घर को तीन लाख रुपये मिलेंगे। इस दावे की असलियत वही है जो बीजेपी के उन पंद्रह लाख रुपयों की है जो देश के हर खाते में आने वाले थे।  

गोवा में 2012 में बीजेपी ने जस्टिस एमबी शाह की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस को घेरा था। बीजेपी ने शाह कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 35 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया था लेकिन जब खुद बीजेपी के मनोहर पर्रिकर सत्ता में आए तो फंस गए। फिर पर्रिकर ने ही कह दिया कि 35 हजार करोड़ नहीं करीब तीन हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। पर्रिकर ने इसकी जांच के लिए चार्टर्ड एकाउंटेट की एक कमेटी भी बना दी जिसने बताया कि असल में यह आंकड़ा 300 करोड़ भी नहीं है, वो भी रेवेन्यू का नुकसान है। इसकी गिनती भी अब तक ठीक से दस साल में नहीं हो पायी।

साफ लग रहा है कि चुनाव में एक बार फिर से जनता को भरमाने की कोशिश हो रही है। वैसे तो गोवा में ममता बनर्जी की कोई खास राजनीतिक हैसियत बन नहीं सकती फिर भी उनकी टीएमसी ने 300 करोड़ के  रेवेन्यू के नुकसान वाले इस मुददे को उछाल दिया है लेकिन बीजेपी या कांग्रेस इसे काउंटर नहीं कर पा रही है। कांग्रेस ने गोवा में लोकायुक्त बनाने का नारा दिया है और बीजेपी विकास की बात कर रही है। जमीनी हालात ये हैं कि गोवा में बेरोजगारी की दर 11 प्रतिशत तक हो चुकी है और कोरोना से बेहाल लोगों के पास पैसे नहीं हैं। जाहिर है राजनीतिक दल अभी तक जमीन नहीं पकड़ पा रहे हैं।

उधर कोरोना के नये वेरिएंट ओमीक्रॉन की वजह से फिर से लॉकडाउन की आहट शुरू हो गयी है। गोवा में टैक्सी चलाने वाले अशरफ का कहना है कि इस बार अगर फिर से लॉकडाउन हो गया तो वह बरबाद हो जाएंगे। बरबादी की इसी आशंका के बीच चुनाव सिर पर है, इसीलिए गोवा के माहौल में राजनीति नये प्रतिमान गढ़ रही है।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)


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