Gun Island : बन्दूकी सौदागर के बहाने श्राप जैसे कुछ सपने और फंतासी की उड़ान

हमारे आज में जो कुछ हो रहा है उसके कारण हमारे अतीत में कहीं मौजूद होते हैं। उन्दे ओरीगो इन्दे सालूस, मतलब आरम्भ से ही आती है मुक्ति। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक श्री अमिताभ घोष का उपन्यास ‘बन्दूक़ द्वीप’ जो Gun island का हिन्दी अनुवाद है को हम पढ़ें तो निष्कर्ष के रूप में यह दो बातें हमारे सामने आती हैं।

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नदी पुत्र: ऐतिहासिक बदलाव की रोशनी में नदियों और उनकी संतानों की दास्तान

इसके एक ब्लर्ब में शेखर पाठक ने ठीक ही लिखा है कि यह किताब स्रोतों की व्याख्या और शोधविधि के लिहाज से इतिहास लेखन में एक हस्तक्षेप है। इसमें पाठ, मानवविज्ञान और अभिलेखीय सामग्री का मोहक समन्वय है।

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एक देश बारह दुनिया: एक पत्रकार के भीतर बैठे साहित्यकार का शोकगीत

यह किताब यात्रा की तो है, लेकिन ऐसी यात्राओं की किताब है जिन पर हम अक्सर निकलना नहीं चाहते, ऐसी लोगों की किताब जिनको हम देखते तो हैं पहचान नहीं पाते, जिनके बारे में जानते तो हैं मिलना नहीं चाहते!

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‘मातीगारी’: एक कालजयी उपन्यास जिसके पात्र से डर कर सरकार ने गिरफ़्तारी का वारंट जारी कर दिया!

न्गुगी वा थ्योंगो का कालजयी उपन्यास ‘मातीगारी’ अब मराठी भाषा में भी उपलब्ध हो गया है। अनुवाद नितीन सालुंखे ने और प्रकाशन मोहिनी कारंडे ने (मैत्री पब्लिकेशन, 267/3, आनंद नगर, मालवाडी रोड, हडपसर, पुणे 411 028) किया है। 2019 में हिन्दी पाठकों तक इसे गार्गी प्रकाशन ने पहुंचाया। हिन्दी अनुवाद राकेश वत्स का है।

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सुकेत के विद्रोह: हिमाचल में सामंतवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्षों का एक आख्यान

यह पुस्तक उन लोगों को सामने लाती है जो जो अब तक के इतिहासकारों से अनछुए रह गए। यह हिमाचल में सामंतवाद विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्षों की गौरवशाली परंपरा को सामने लाती है। यह हिमाचली मानुष के दिल में गर्व और अपनेपन की भावना को भरने की कोशिश करती है, जो महान सुकेत विद्रोह और पुस्तक में वर्णित ऐसे अन्य सामंतवाद विरोधी संघर्षों पर गर्व कर सकते हैं।

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No Land’s People: डिटेन्शन कैंप का रास्ता कानून से होकर जाता है

पूरी किताब नागरिकता ढूंढो के सरकारी और प्रायोजित अभियान की कलई खोलती है। खासकर ‘डिटेन्शन और डिपोर्टेशन’ पर विस्तृत चर्चा करने वाला अध्याय जब इस सरकारी और राजनीतिक कवायद से उपजी निराशा और हताशा को बयान करता है, तब कलेजा चाक हो उठता है।

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भाषणों के आईने में लालू प्रसाद यादव

लेखक और संपादक अरुण नारायण ने सदन में दिये गये लालू प्रसाद के भाषणों का एक प्रतिनिधि संकलन निकाला है। इनकी इस प्रकाशित किताब का नाम ‘सदन में लालू प्रसाद: प्रतिनिधि भाषण’ है। यह किताब दिल्ली के ‘द मार्जिनलाइज्ड पब्लिकेशन’ ने प्रकाशित की है। अरुण नारायण ने इस किताब के भीतर लालू प्रसाद के भाषणों को बड़ी सूझ-बूझ और बौद्धिकता के साथ सात खण्डों में संपादित किया है।

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शिमला डायरी: पीछे छूट गई धूल को समेट लाया कौन खानाबदोश

यह किताब की सिर्फ एक समीक्षा नहीं है, बल्कि उस काल खंड की पत्रकारिता व चंडीगढ़-हिमाचल की साहित्यिक-सांस्कृतिक दुनिया का एक संक्षिप्त, रोचक संस्मरण भी है।

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