आपदा को अवसर में बदल चुके निजी अस्पतालों के चलते यूपी में बढ़ रहा है कोरोना का कहर!

सहारनपुर के देवबन्द इलाके के लोग मेरठ जाकर एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती हो रहे हैं। सूत्रों की मानें तो यह खेल काफी दिनों से चल रहा है। मरीज़ की रिपोर्ट अगर पॉज़िटिव आ जाती है तो वहाँ निगेटिव कर देते हैं और मरीज़ का इलाज शुरू कर देते हैं जिससे अब तक लगभग कई लोग अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं।

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पोर्टलैन्ड के आंदोलन से क्या “दलित लाइव्स मैटर” के लिए हम कुछ रोशनी ले सकते हैं?

ऑक्युपाइ की तरह पोर्टलैन्ड का यह विरोध भी दैहिक है, भौतिक है- अप्रत्यक्ष या परोक्ष (वर्चुअल) नहीं। भारत में भी जातिवाद, पूँजीवाद जैसी विकृतियों के खिलाफ जो भी अभिव्यक्ति होनी है वह प्रत्यक्ष और वास्तविक रूप से ज़ाहिर करनी होगी।

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आज फूलन देवी को क्यों याद किया जाना चाहिए

सड़ चुके भारतीय समाज में आज़ादी और इंसान और उसमें भी स्त्री होने की कीमत कैसे चुकायी जा सकती है और कितनी चुकानी पड़ सकती है, यह जानना हो तो आपको फूलन के पास जाना ही पड़ेगा। कोई दूसरा रास्ता आपके पास नहीं है।

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समकालीन राजनीतिक इतिहास पर हज़ार साल बाद एक क्लास में छात्र-रोबो संवाद

यदि रोबोटिक गुरु के स्थान पर कोई जीवित गुरु होता तो इस उत्तर से शायद हताश होता कि एक हजार साल बाद भी भारतीय जनता परिवर्तन के लिए चमत्कारों पर ही उम्मीद लगाए हुए है, लेकिन वह तो रोबोट था, उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बिल्कुल वैसे ही जैसे आज हम लोकतंत्र की धज्जियां उड़ते देखकर भी मौन हैं।

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आज़ाद जनतंत्र में सत्तर साल बाद भी वेल्लोर से विरमगाम तक श्मशान भूमि से वंचित हैं दलित

जब दलितों ने सार्वजनिक तालाब से पानी का उपयोग शुरू किया, ऊंची जाति के लोगों ने रफ्ता-रफ्ता इसके प्रयोग को बन्द किया क्योंकि उनका कहना था कि अब पानी अशुद्ध हो गया है। मामला वहीं तक नहीं रुका।

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पुलिस रिफॉर्म के आईने में विकास दूबे केस, मथुरा के पुलिसवालों को सज़ा और जूलियस रिबेरो की चिट्ठी

आज ही प्रतिष्ठित रिटायर्ड पुलिस अधिकारी जिन्हें सुपर कॉप कहा जाता है, जूलियस रिबेरो ने देश भर के आइपीएस अधिकारियों के नाम एक खुला पत्र लिख कर पुलीस हिरासत में हुई मौतों और फर्जी मुठभेड़ों पर ही नहीं बल्कि वर्तमान सियासी व्यवस्था पर भी दुःख और नाराजगी ज़ाहिर की हैI

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पहले कोरोना, अब बाढ़! क्या बिहार के मजदूर-किसानों की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है?

यह प्रदेश में तथाकथित विकास की असफलता को दर्शाता है, जहाँ गांव की जनता को अपनी बीमारी के अच्छे इलाज के इलाज के लिए कम से कम 3 घण्टे का सफर तय करना होता है। शुरुआती दौर में तो सैम्पल को पटना या कोलकाता भेजा जाता था, जिसकी फाइनल रिपोर्ट आते-आते एक सप्ताह से 10 दिन तक लग जाते थे।

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ढहते घरों की गहराती दरारों पर इश्‍तहार चिपकाती सियासत और मीडिया

19 जुलाई तक जारी हुए आंकड़ों के अनुसार असम में 79 लोगों की जान इस विनाशकारी बाढ़ ने ले ली है, राज्य के 26 जिलों के 2678 गाँव इसकी चपेट में हैंं और हजारों एकड़ की खेती वाली ज़मीनें जलमग्न हो चुकी हैंं। बिहार में भी करीब 3 लाख लोगों पर खतरा है, राज्य की सभी मुख्य नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर प्रवाहित हैं।

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COVID-19 के दौरान महिला-हिंसा की समानांतर महामारी पर APCRSHR-10 में चर्चा

हाल ही में संपन्न हुए एपीसीआरएसएचआर10 (10वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स) के दूसरे वर्चुअल सत्र में महिला-अधिकार पर काम करने वाली अनेक महिलाओं ने एशिया पैसिफिक में कोविड-काल के पश्चात जनमानस के अधिकारों और विकल्पों को गतिशीलता प्रदान करने के विषय पर चर्चा करते हुए एशिया पैसिफिक में रहने वाली महिलाओं की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिनके अधिकारों के संबंध में केवल खानापूर्ति की गई है.

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UP: कांग्रेस के आंदोलन, सपा की खुशफहमी और बसपा की इंजीनियरिंग में फंसे ब्राह्मण और मुस्लिम

मायावती के इस रुख से यह साफ हो जाता है कि वह एक बार फिर ब्राह्मण समाज और मुसलमान का पूर्व की भाँति समर्थन चाहती हैं जैसा उन्हें 2007 के विधानसभा चुनाव में मिला था, जिसके बाद बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।

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