तिर्यक आसन: उसी को हक़ है जीने का जो इस ज़माने में, इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए!

कर्ज लेना भी एक उपलब्धि है। बशर्ते कि कर्ज लाखों-करोड़ों में हो। उसी कर्ज से खरोंच, फ्रैक्चर बन जाती है। कर्ज अगर बैंक की कृपा से एनपीए घोषित हो जाये, तो खरोंच, सेप्टिक जितनी घातक हो सकती है। टाँग काटने की नौबत आ सकती है। ऐसी खरोंच राष्ट्रीय ब्रेकिंग बनेगी- ध्यान से देखिए…।

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बात बोलेगी: एतबार की हद हो चुकी बंधु! चलिए अब ‘ओन’ किया जाए…

2019 के आम चुनाव के समय जब देश के प्रधानमंत्री ने ताल ठोंक कर कहा था कि हां, ‘मैं चौकीदार हूं’ तब लोगों को लगा था कि विपक्ष के नेता की बात का जवाब दिया गया है। आज वही लोग इसे ऐसे समझ रहे हैं कि यह तो स्वीकारोक्ति थी। अब लोग यह समझ रहे हैं कि जब ‘वो’ चौकीदार हैं तो ज़रूर उनका कोई मालिक भी है। मौजूदा किसान आंदोलन ने इस रहस्य को जैसे सुलझा दिया है।

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तन मन जन: बिल गेट्स का ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ और नई दहशतें

ये रोग बीमारी से ज्यादा प्रोपगेन्डा की तरह फैलाए गए और इनके नाम पर बाजार (दवा कम्पनियां) ने कितना मुनाफा कमाया। आगे भी ऐसे हथकण्डे चलते रहेंगे मगर आप अपने को इतना जागरूक बना लें कि कोई कम्पनी आपको कम से कम बेवकूफ तो नहीं बना सके।

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दक्षिणावर्त: आस्थाएं नहीं, समूचा विमर्श ही चयनित है!

लेखक दुहराव का खतरा उठाकर भी यह सब इसलिए लिख रहा है क्योंकि यह हमारे वक्त का सच है। दोहराव और बासीपन, सत्य और असत्य के बीच का धुंधलापन, ख़बर और राय के मिटते हुए फर्क का यह काल ही हमारे जीवन का एकमात्र सच है।

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पंचतत्व: पुणे की मुथा नदी को जिंदगी देने की कोशिश

पुणे शहर के पास कई हिस्सों में मुथा नदी की धारा थम गई है और उसमें जलीय जीवन लगभग खत्म ही है. इस नदी में केमिकल ऑक्सीजन डिमांड, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन (डीओ) के स्तर में लगातार कमी आती गई है.

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तिर्यक आसान: जुगाड़ीज़ फ्रॉम सिएमा विन डिजाले! या या या…

फंडिंग के स्रोत का पता चलने के बाद, हो सकता है अजीत डोभाल सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दें- किसानों को फंड धरती दे रही है। हलफनामे के आधार पर सुप्रीम कोर्ट धरती को अदालत में हाजिर होने की तारीख मुकर्रर कर दे। दो-तीन तारीखों पर हाजिर न होने पर अदालत अपनी अवमानना मान धरती की कुर्की का आदेश सुना दे।

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राग दरबारी: अर्नब को मीडिया सहित तमाम लोकतांत्रिक संस्थानों ने बरी क्यों कर दिया है?

हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि अर्नब गोस्वामी के निजी मोबाइल का कोई भी चैट अभी तक सामने नहीं आया है। जब वे चैट बाहर आएंगे तब पता नहीं उसमें और कितने लोगों से कितनी तरह की सूचनाओं के आदान-प्रदान का पता चलेगा!

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बात बोलेगी: साजिशों के गर्भगृह में चयनित आस्थाओं का खेल

गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी में अगर किसी भी प्रकार से कानून-व्यवस्था बिगड़ती है तो उसकी ज़िम्मेदारी केवल और केवल देश के गृह मंत्रालय की है। शांतिपूर्ण किसान मार्च में जो विचलन आए उसके लिए अगर समन्वय में कमी रह गयी तो यह पुलिस की तरफ से हुई, क्या पुलिस ने यही चाहा और होने दिया?

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पंचतत्व: अवध की एक नदी का वध

अंग्रेजी के अखबार न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि गोमती नदी में भारी धातुओं की काफी मात्रा मौजूद है. इस साल पहली बार लखनऊ में गोमती नदी के पानी में आर्सेनिक की मात्रा भी मिली है और जाहिर है नदी संरक्षण की तमाम पहलों को इससे धक्का पहुंचा है.

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दक्षिणावर्त: ये सरकार डरी हुई है या मोदी जी महान बनने के चक्कर में हैं?

कहीं मोदी इन तथाकथित आंदोलनों को स्पेस देकर, सुरक्षा देकर प्रेशर कुकर की उसी सीटी का तो काम नहीं ले रहे, ताकि जनता बड़े औऱ असल मुद्दों को भूली रहे। आखिर, यह देश पिछले साल कोरोना की महामारी में लिपटा रहा है, अर्थव्यवस्था हलकान है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और सच पूछें तो देश में फिलहाल ‘अच्छे दिन’ नहीं दिख रहे हैं।

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