यह महज एक तस्वीर नहीं, राष्ट्र के रूप में शुरू हुए हमारे सफर का एक एहसास है…

ये तस्वीर साफ तौर पर ये भी संदेश देती है कि भारत अपने बुनियादी उसूलों स्वतंत्रता, समता,बन्धुता और इंसाफ के रास्ते का अडिग हमराही है। आजादी की लड़ाई के दौरान ये मूल्य परवान चढ़े और संविधान सभा मे ये तय हुआ कि भारतीय राष्ट्र न केवल इसे बनाये रखेगा बल्कि इसे इसमें बाधा पहुंचाने वाली ताकतों से सख्ती से निपटेगा भी।

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बात बोलेगी: साजिशों के गर्भगृह में चयनित आस्थाओं का खेल

गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी में अगर किसी भी प्रकार से कानून-व्यवस्था बिगड़ती है तो उसकी ज़िम्मेदारी केवल और केवल देश के गृह मंत्रालय की है। शांतिपूर्ण किसान मार्च में जो विचलन आए उसके लिए अगर समन्वय में कमी रह गयी तो यह पुलिस की तरफ से हुई, क्या पुलिस ने यही चाहा और होने दिया?

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कांग्रेस ने पहली बार मनाया संविधान चर्चा दिवस, UP के सभी जिलों में आयोजन

अल्पसंख्यक कांग्रेस ने आज उत्तर प्रदेश के सभी ज़िलों में संविधान चर्चा दिवस मनाया। अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा …

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3 जनवरी, 1976: ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेकुलर’ संविधान के 45 साल

भारत जैसे बहुधार्मिक/बहुजातीय लोकतंत्र में इन शब्दों विशेषकर पंथनिरपेक्ष का महत्त्व बहुत अधिक है, किंतु आज इसी पर सबसे अधिक खतरा है. देश की केन्द्रीय सत्ता में मौजूद भारतीय जनता पार्टी के नेता और समर्थक समय-समय पर सेकुलर शब्द पर हमला करते रहते हैं.

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फ़ैसल खान की गिरफ़्तारी साझा संस्कृति के नये नारे की जरूरत को रेखांकित करती है

भारत के अन्दर तेजी से बदलता यह घटनाक्रम दरअसल सदिच्छा रखने वाले तमाम लोगों- जो तहेदिल से सांप्रदायिक सद्भाव कायम करना चाहते हैं, जहां सभी धर्मों के तथा नास्तिकजन भी मेलजोल के भाव से रह सकें- के विश्वदृष्टिकोण की सीमाओं को भी उजागर करता है।

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दक्षिणावर्त: अदृश्य भय वाला सेकुलरिज्म बनाम फ़र्ज़ी डराने वाला इस्लामोफोबिया

मुद्दा क्या होना चाहिए था और क्या है? मुद्दा था कि इस्लाम के नाम पर फ्रांस में एक और हत्या हुई। यह तमाम हत्याओं की फेहरिस्‍त में एक और हत्या मात्र है और कम से कम अब इस्लाम के ऊपर बात होनी चाहिए। यह लेकिन मुद्दा नहीं बना। मसला इस बात को बनाया गया कि मैक्रां ने इस्लाम के ऊपर टिप्पणी की है और वह एक हत्यारे के बहाने ‘इस्लामोफोबिया’ को बढ़ावा दे रहे हैं।

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दक्षिणावर्त: सेकुलर खोल, बाइनरी बोल और अश्लीलताओं के बीच

हरेक घटना के पक्ष या विपक्ष में बैटिंग तो हो रही है, लेकिन किनारे बैठकर थोड़ी धूल बैठ जाने का इंतजार नहीं किया जा रहा है। राजनेताओं का तो समझ में आता है, लेकिन हम जैसे जो आम लोग हैं, उन्हें पंजाब पर राहुल गांधी को और हाथरस पर योगी आदित्यनाथ को घेरने में क्यों संकोच हो रहा है, यह समझ के बाहर है।

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बात बोलेगी: डर के आगे नहीं, डर में ही जीत है!

टाटा ने इस विज्ञापन को दिखाने और हटाने की अल्पावधि के अभ्यास से मौजूदा सत्ता के लिए एक बहुत ठोस सर्वे का काम किया है। देश में सहिष्णुता मापने का सबसे प्रामाणिक मापक यंत्र फिलवक्त हिन्दू-मुस्लिम एकता ही है। इसे बेहद मुलायमियत भरे लहजे में दिखाइए और असर का आकलन कीजिए।

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मुसलमानों पर मोहन भागवत के बयान और दशहरे पर देवबंद दौरे की संभावना में छुपे सूत्र

से दारूल उलूम देवबन्द के सदर मुदर्रिस एवं जमीअत उलमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी अचानक संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर पहुँच गए थे इसी तरह देवबन्द भी एक रोज़ सुर्ख़ियों में आए कि अचानक संघ प्रमुख मोहन भागवत पहुँचे देवबन्द और की मुलाक़ात देवबन्द दारूल उलूम देवबन्द के मोहतमिम सहित अन्य इस्लामिक विद्वानों से। आज के हिसाब से संघ प्रमुख मोहन भागवत का देवबन्द जाना बहुत बड़ी बात होगी।

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दक्षिणावर्त: तनिष्क का ‘एकत्वम’ और विकृत अस्मिताओं का दोयम

मजहब या रिलीजन के बदले हम धर्म शब्द का प्रयोग कतई नहीं कर सकते। दूसरे, अब्राहमिक मजहबों के बरक्स जिस क्षण आप सनातन धर्म को खड़ा करते हैं, आप ठीक वही गलतियां करते हैं जो 200 वर्षों तक हमारे आका रहे अंग्रेज आक्रांताओं ने सोच समझ कर की।

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