भारत की कोविड-19 इमरजेंसी: The Lancet का ताज़ा संपादकीय

स्‍थानीय सरकारों ने बीमारी की रोकथाम के उपाय शुरू कर दिए हैं, लेकिन जनता को मास्‍क लगाने, शारीरिक दूरी बरतने, बड़ी संख्‍या में एकत्रित होने, स्‍वैच्छिक क्‍वारंटीन होने और परीक्षण करवाने की ज़रूरत समझाने के लिहाज से केंद्रीय सरकार की भूमिका अनिवार्य है। इस संकट के दौरान मोदी ने जिस तरीके से आलोचनाओं और खुली बहसों का मुंह बंद करवाने की कार्रवाई और कोशिश की है, वह माफ़ किए जाने योग्‍य नहीं है।

Read More

कोविड से आज ये हाल न होता यदि सरकार ने चेताने वालों की बात सुन ली होती…

फरवरी और मार्च 2021 में जब देश बड़ी तेजी से कोविड-19 की दूसरी लहर की गिरफ्त में आता जा रहा था तब सरकार को इस विषय पर सलाह देने के लिए गठित नेशनल साइंटिफिक टास्क फोर्स ऑन कोविड-19 की कोई बैठक तक आयोजित नहीं हुई।

Read More

बात बोलेगी: जीने के तमाम सुभीते मरने की आस में मर गए…

भारत का संविधान मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है उसमें भी मोक्ष का अधिकार देने की हैसियत नहीं है या उसने इसके बारे में कुछ नहीं सोचा किया। क्या प्रेरणादायी नरेन्द्र मोदी देश के संविधान में छूट गये अधिकारों का सृजन अपने नागरिकों के लिए कर रहे हैं?

Read More

कोरोना: रोज बनते मौतों के रिकार्ड के बीच अब गांवों से भी निकल रही हैं लाशें

24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के मौक़े पर पंचायत सदस्यों और प्रतिनिधियों के साथ वर्चुअल बातचीत और ‘पुरस्कार वितरण’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंचायत प्रतिनिधियों से कहा- “पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना महामारी को गाँवों तक पहुँचने नहीं देना है”। इस बयान पर आप हंस भी सकते हैं, रो भी सकते हैं और चाहें तो अपना माथा भी पीट सकते हैं।

Read More

दक्षिणावर्त: कोविडकाल में एक विश्रृंखल डायरी के बेतरतीब पन्ने

वे दरअसल कठोरता की ऐसी कच्ची बर्फ पर खड़े हैं, जिसके नीचे अथाह समंदर है- दुःख और अवसाद का। उस कच्ची बर्फ को तड़कने से बचाने के लिए ही दोनों एक दूसरे के साथ खूब स्वांग करते हैं- वैराग्य और ‘केयर अ डैम’ वाले एटीट्यूड का। एक खेल है दोनों के बीच, जो चल रहा है।

Read More

बीते दो हफ्ते में कोरोना के हाथों मारे गए सौ बेनाम पत्रकारों को क्या आप जानते हैं?

बीते दो हफ्तों में भारत में मारे गए 50 पत्रकारों की सूची बहुत छोटी है। अगर इसमें राज्‍यों में स्‍थानीय स्‍तर पर मारे गए पत्रकारों की उपलब्‍ध सूचनाओं को जोड़ लें तो संख्‍या 96 तक पहुंचती है यानी रोजाना छह से ज्‍यादा पत्रकारों की मौत।

Read More

लाशों की पिच पर दम तोड़ती मानवता का 20-20 खेल

जब लोग एक-एक सांस के लिए जूझ रहे हैं और अपने परिजनों को बचाने के लिए शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक ऑक्सीजन सिलेंडर और वैंटीलेटर की व्यवस्था की ख़ातिर दौड़ रहे होते हों तो उस दौरान क्या उन्हें किसी मनोरंजन की याद भी आ सकती है?

Read More

संक्रमण काल: महामारी के दौर में डॉक्टरों की भूमिका, सीमाएं और प्रोटोकॉल के कुछ सवाल

कोविड जानलेवा नहीं है। अधिकांश मामलों में हमारा शरीर उससे लड़ सकता है और परास्त कर सकता है। मानवजनित अफरातफरी, जिसके सुनियोजित होने की पूरी आशंका है, ने उसे जानलेवा बना दिया है।

Read More

”सस्ती जान की कुछ कीमत होती होगी, हमारी वह भी नहीं है” : UP के एक अध्यापक का पत्र

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना का विस्फोट जब होगा तो क्या होगा, इसकी केवल कल्पना की जा सकती है। अभी केवल गोरखपुर, आजमगढ़, बनारस, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद में लोग ऑक्सीजन और हॉस्पिटल बेड के लिए दौड़ रहे हैं और जब यह दृश्य उत्तर प्रदेश की ग्रामीण जनता के साथ घटेगा तब क्या होगा?

Read More

विफल नेतृत्व की गलतियों का असर कम करने के लिए कब तक त्याग करती रहेगी जनता?

प्रधानमंत्री जी ने इस भीषण संकट काल में भी अपने मन की बात ही की। हो सकता है कि उनके काल्पनिक भारत की आभासी जनता को उनका यह एकालाप रुचिकर लगा होगा, लेकिन मरते हुए रोगियों और उनके हताश परिजनों के लिए तो यह एक क्रूर परिहास जैसा ही था।

Read More