बीते दो हफ्ते में कोरोना के हाथों मारे गए सौ बेनाम पत्रकारों को क्या आप जानते हैं?


क्‍या आप जानते हैं कि बीते दो हफ्ते में भारत में कोई सौ पत्रकारों की जान कोविड म‍हामारी के कारण जा चुकी है? रोज़ाना की दर लगाएं तो 15 अप्रैल से लेकर आज तक प्रतिदिन छह से ज्‍यादा पत्रकारों की मौत हो रही है। अव्‍वल तो यह संख्‍या बहुत कम हो सकती है क्‍योंकि ज्‍यादातर मौतें छोटे शहरों, कस्‍बों और गांवों में हो रही हैं इसलिए वे दर्ज होकर खबर नहीं बन पाती हैं। दूसरे, जो मौतें दर्ज हैं उनकी भी खबर नहीं बन पाती।  

स्विट्जरलैंड की मीडिया अधिकार और सुरक्षा से जुड़ी संस्‍था प्रेस एम्‍बलम कैम्‍पेन (PEC) ने कोरोना वायरस के चलते पत्रकारों की हुई मौत पर दुख जताते हुए एक बयान जारी किया है और बताया है कि दुनिया भर में हजार से ज्‍यादा पत्रकार कोरोना वायरस का शिकार हो चुके हैं और कुल 75 देशों के बीच भारत इस मामले में तीसरे नंबर पर है।  

संस्‍था के अनुसार 29 अप्रैल तक बीते 14 महीनों में 1200 से ज्‍यादा पत्रकारों की मौत दुनिया भर में हुई है। ये आंकड़ा 75 देशों का है जहां सारी मौतें कोविड-‍19 से जुड़ी जटिलताओं के चलते दर्ज की गयी हैं। पीईसी के महासचिव ब्‍लेस लेम्‍पेन ने कहा, ‘’यह इस पेशे को हुआ अप्रत्‍याशित नुकसान है और कत्‍लेआम है। इसलिए प्रेस आजादी दिवस पर आह्वान करते हैं कि उन सभी प्रतिष्ठित पत्रकार साथियों को हम श्रद्धांजलि दें जो महामारी का शिकार हो गए।‘’

पीईसी द्वारा जारी बीते दो हफ्तों में भारत में मारे गए 50 पत्रकारों की सूची बहुत छोटी है। अगर इसमें राज्‍यों में स्‍थानीय स्‍तर पर मारे गए पत्रकारों की उपलब्‍ध सूचनाओं को जोड़ लें तो संख्‍या 96 तक पहुंचती है यानी रोजाना छह से ज्‍यादा पत्रकारों की मौत। आइए, सभी समाचार स्रोतों और पत्रकारों के अनुसार सामने आयी मौतों की सूची देखते हैं जो पिछले दस से पंद्रह दिन में घटित हुई हैं। ये नाम और संख्‍या केवल उन्‍हीं की है और उन्‍हीं राज्‍यों से, जहां से खबर मिल सकी है।

पटना में वरिष्‍ठ पत्रकार सुकान्‍त नागार्जुन का आज इंतकाल हो गया। वे जनकवि बाबा नागार्जुन के सुपुत्र थे और 70 बरस के थे। अभी ही कोरोना से ठीक होकर उठे थे और उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आयी थी लेकिन उसके बाद उनका ऑक्‍सीजन स्‍तर कम होने लगा था। उधर लखनऊ में वरिष्‍ठ पत्रकार चंदन प्रताप सिंह की मौत हुई है। चंदन आजतक के संस्‍थापक स्वर्गीय एसपी सिंह के भतीजे थे और कई न्यूज़ चैनलों में काम कर चुके थे।

बीते 23 अप्रैल को उत्‍तर प्रदेश के सोहरामऊ में हिंदुस्‍तान के पत्रकार बबलू मिश्र का निधन कोरोना से हुआ। देवरिया के वरिष्‍ठ पत्रकार सुधाकर पांडे की मौत बीते शनिवार को हुई। एनसीआर टुडे के बिजनौर ब्‍यूरो प्रमुख लड्डन खां 22 अप्रैल को चल बसे थे। जनसंदेश टाइम्‍स के लखनऊ ब्‍यूरो स्थित सीनियर क्राइम रिपोर्टर सलाउद्दीन का निधन 26 अप्रैल को हुआ। उत्‍तर प्रदेश के चकिया विकास खण्ड के मुजफ्फरपुर गांव निवासी प्रख्यात पत्रकार और लेखक हृदय नारायण मिश्र का बीते 20 अप्रैल की देर शाम चकिया जिला संयुक्त चिकित्सालय में इलाज के दौरान हृदय गति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया। उनकी 89 वर्षीय माताजी लालमनी देवी का भी उनके पैतृक निवास स्थान मुजफ्फरपुर में आकस्मिक निधन हो गया।

जौनपुर के पत्रकार बच्‍चूलाल विश्‍वकर्मा, गोहाटी के पत्रकार आयुष्‍मान दत्‍ता, बनारस के वरिष्‍ठ पत्रकार बद्री विशाल, हिमाचल प्रदेश में जनता टीवी के आउटपुड हेड साकेत सुमन, दिल्‍ली के पत्रकार अमित येचुरी, औरंगाबाद की प्रख्यात पत्रकार-लेखक फातिमा आर जकारिया, हॉकी विशेषज्ञ पत्रकार बीजी जोशी का भी निधन बीते 15 दिनों में ही हुआ है। माया (इलाहाबाद) और बाद में दिल्ली प्रेस में संपादक रहे पुष्कर पुष्प का देहांत 28 अप्रैल को हुआ है। इकनॉमिक टाइम्स के फीचर एडिटर चंचल पाल चौहान हफ्ते भर पहले गुजर गए।

दिल्‍ली के नवोदय टाइम्‍स की डिजिटल टीम में काम करने वाले पत्रकार वंदन जायसवाल, पत्रकार विनायक सोले, मध्‍यप्रदेश सहारा चैनल की एंकर निकिता तोमर और भारतीय सूचना सेवा के तीन अधिकारियों संजय श्रीवास्तव (पीआइबी), पुष्‍पवन्‍त शर्मा (आरएनआइ) और मणि‍कान्‍त ठाकुर का भी इसी बीच निधन हुआ है। प्रभात खबर के अनुसार झारखण्‍ड में ‘’राज्य के अलग-अलग हिस्से में आधा दर्जन से ज्यादा पत्रकारों की मौत हो चुकी है, वहीं 15 से अधिक पत्रकार अस्पताल में मौत से संघर्ष कर रहे हैं। रांची के विभिन्न अस्पतालों में दर्जनों पत्रकार ऑक्सीजन पर हैं।‘’ जामताड़ा के दो पत्रकार आशुतोष कुमार चौधरी (47) का 22 अप्रैल को उदलबनी कोरोना डेडीकेटेड हॉस्पिटल में इलाज के दौरान निधन हो गया। वे एक हिंदी दैनिक के जिला प्रभारी थे। दूसरे हिंदी दैनिक के जिला प्रभारी युगल किशोर यादव (44) का 28 अप्रैल को हॉस्पिटल में निधन हो गया।

अखबार के मुताबिक झारखण्‍ड में कोरोना से अब तक पंकज प्रसाद, सुनील कमल व ख्वाजा मुजाहिद्दुदीन (रांची), रंजीत सिंह (पलामू), त्रिपुरारी सिंह व शार्दुल कुमार (हजारीबाग), आशुतोष चौधरी युगल किशोर यादव (जामताड़ा), आमिर अहमद हाशमी (सिमडेगा) व धनंजय मिश्रा (साहिबगंज) की मौत हुई है। प्रभात खबर के बिहार संस्‍करण के मुताबिक पटना हाइकोर्ट के जानेमाने वकील और विधि पत्रकार निर्भय कुमार सिंह का बीते गुरुवार कोरोना से निधन हो गया। पटना हाइकोर्ट के विधि संवाददाताओं की ओर से एक वर्चुअल शोक सभा का आयोजन किया गया। भागलपुर दैनिक जागरण के डिप्‍टी चीफ सब एडिटर रामप्रकाश गुप्‍ता का निधन 21 अप्रैल को हुआ था।

यूनीवार्ता की 23 अप्रैल की खबर कहती है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुल 13 पत्रकारों की मौत इस बीच कोरोना के चलते हुई है। छत्‍तीसगढ़ में पत्रकार जियाउल हसन की मौत 27 अप्रैल को हुई है। पीटीआइ में काम कर चुके पत्रकार जमालुद्दीन अहमद का निधन दो हफ्ते पहले ही हुआ था। उत्‍तर प्रदेश के गाजीपुर पत्रकार एसोसिएशन के संरक्षक रमेश चंद खरवार (72) का गुरुवार को जिला अस्पताल में उपचार के दौरान निधन हो गया था।  

कोरोना के चलते पत्रकारों की मौत की दर अप्रैल में दुनिया भर में अचानक बढ़ी है। पीईसी के मुताबिक एक महीने के भीतर दुनिया भर में 126 पत्रकारों की मौत हुई है यानी प्रतिदिन चार पत्रकार। मीडियाकर्मियों की मौत से सबसे ज्‍यादा प्रभावित चार देश हैं- ब्राजील (183), पेरू (140), भारत (122) और मेक्सिको (106)।

अच्‍छी बात ये है कि इस बीच यूरोप और अमेरिका में पत्रकारों की मौत की दर कम हुई है, जिसका श्रेय वहां टीकाकरण और सुरक्षा उपायों को जाता है।

क्षेत्रवार देखें तो कोरोना के कारण पत्रकारों की मौत से सबसे ज्‍यादा प्रभावित इलाका लैटिन अमेरिका का है जहां के 20 देशों में 673 यानी अब तक मारे गए पत्रकारों की आधा संख्‍या है। इस मामले में एशिया दूसरे स्‍थान पर है जहां के 18 देशों में 256 पत्रकार खेत रहे। फिर यूरोप के 19 देशों में 175 और अफ्रीका के 16 देशों में 56 मौतें हुईं। सबसे कम 47 पत्रकारों की मौतें अमेरिका (दो देश) में हुईं।

पीईसी के राष्‍ट्रीय प्रतिनिधि नवा ठाकुरिया के मुताबिक भारत में बीते एक पखवाड़े में 50 पत्रकार मारे गए। उनके मुताबिक हो सकता है कि संख्‍या कहीं ज्‍यादा हो क्‍योंकि ये केवल दर्ज हुए आंकड़े हैं। फिलहाल इस खबर में ही गिनाये गए 40 नाम ऐसे हैं जो पीईसी की सूची में दर्ज नहीं हैं। पड़ोसी देश बांग्‍लादेश में अब तक कोरोना से कुल 52 पत्रकार मारे गए हैं, पाकिस्‍तान में 26, नेपाल में 7 और अफ्रानिस्‍तान में 9 पत्रकार। भूटान, श्रीलंका, मालदीव, म्‍यांमार में कोरोना से एक भी पत्रकार की मौत की सूचना नहीं है।

कुछ महत्‍वपूर्ण नामों में आज ही गुज़रे टीवी के ऐंकर रोहित सरदाना, नीलाक्षी भट्टाचार्य, आयुष्‍मान दत्‍त, मानस रंजन जयपुरिया, अमजद बादशाह, श्रीधर धर्मसानम, राजू मिश्रा, सदानंद शिंदे, काकोली भट्टाचार्य, कोंड्रा श्रीनिवास गौड़, साम्‍मी रेड्डी, आकाश सक्‍सेना, ख्‍वाजा मोइनुद्दीन, अनिल बसनोई, वेंगा रेड्डी, मादिराजू हरिकृष्‍ण गिरि, सैयद शाहबाज़, आदि पत्रकार शामिल हैं।

अभी कुछ ही दिन पहले दिल्‍ली के प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में 27 पत्रकारों की सामूहिक शोकसभा रखी गयी थी। इस पर यूएनआइ के पूर्व पत्रकार राजेश वर्मा ने एक मर्मांतक टिप्‍पणी अपने फ़ेसबुक पर लिखी थी, उसे पढ़ा जाना चाहिए।

राजीव का जाना पता लगा था तो सदमा लगा था कि अरे, पता भी नहीं लगा। सदमा इस पर भी लगा था कि प्रेस क्लब में एक साथ शायद 27 लोगों के लिये ‘शोक सभा’ रखी गयी थी। सबको तो निजी तौर पर जानता भी नहीं था। बहुतों की तस्वीरें भी नहीं थी कि पहचानने की कोशिश कर पाता। सभा में ‘कोरोना काल में दिवंगत हुए साथियों’ की सूची पढी गयी थी। कुछ नामों से वाकिफ था, कुछ को शायद तस्वीरों में पहचान लेता। सो वह आम तौर पर संख्या थी, आतंककारी होने की हदो तक जाती बडी संख्या। अमूमन पत्रकार बिरादरी के, कलमजीवी लोग थे और सूची खत्म करते हुये शायद संचालक ने अपील की थी कि कोई नाम छूट गया हो तो बैठक में शामिल लोग जोड-जुडवा सकते हैं।

राजीव कटारा का नाम तभी आया था। किसी साथी ने कहा था कि ‘कादम्बिनी के संपादक राजीव कटारा का निधन इसी बीच हुआ है, कोविड 19 से। परिचय के दायरे में पहुचते ही संख्या नाम, रुप, स्मृति में बदलने लगती है। इसीलिये जरुरी है कि हम सबके परिचय का दायरा बढे और इसमें संवेदनाओं, सपनों, विचारों और संकल्पों की साझेदारियों की भूमिका निर्णायक हो। रमेश उपाध्याय को तो मैं फिर भी निजी तौर पर जानता था, अम्बरीष राय को उनसे थोडा ज्यादा ही, पर नाट्यकर्मी अजित साहनी! उनसे तो परिचय बस इतना था कि पिछले साल महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर नागरिकता कानून के विरोध में प्रस्तावित मानव शृंखला में शिरकत के लिये अभी हम दिल्ली गेट से राजघाट की ओर मुडे ही थे कि पुलिस ने हिरासत में ले लिया था और दिल्ली-दर्शन करते हम जब हरिनगर के खाटू श्याम स्टेडियम में पहुंचे थे, तब वहां शायद अजित भी थे। घिरते अंधेरे में स्टेडियम में ढेर सारे लोग थे, बहुत सारे लाये भी जा रहे थे – डी.राजा भी, योगेन्द्र यादव भी और ऐसे तमाम लोग, जो हर विरोध प्रदर्शन में दिख जाते हैं। यह वही साझेदारी थी। यह वही साझेदारी है, जिससे मौतें मेरे-आपके लिये संख्या नहीं रही है और प्रेस क्लब की उस शोकसभा के कुछ ही महीनों में मौतें तो अफरात हो चली हैं।

हर रोज सुबह इस आशंका के साथ उठना होता है कि पता नहीं आज किस-किस के नहीं होने की खबर मिले – परसों, 34 वर्षीय पत्रकार आशीष येचुरी, फिर अम्बरीष, मनीषा जी, रमेश उपाध्याय, अजित…….। रेणु अगाल की मौत कोरोना से नहीं हुई थी। वह एक सडक दुर्घटना में गंभीर रुप से घायल होने के बाद अस्पताल में मौत से जूझती रहीं थी और हार गयी। पर कोरोना से तो वैसे भी कम मौते हो रही हैं, मौते दवाएं नहीं मिलने, अस्पताल नहीं मिलने, वहां बेड, आक्सीजन और वेंटीलेटर नहीं मिलने से हो रही हैं। लोग संक्रमित हो रहे हैं, बदहवास भाग रहे हैं, महाबली सरकार का एक महाबली मंत्री तक ट्वीट कर गाजियाबाद में अपने कोरोना पीडित भाई को अस्पताल में बेड नहीं मिलने की हताशा व्यक्त कर रहा है। जिन्हे नागरिकों के लिये, जीने के उसके मूलभूत संवैधानिक अधिकार के लिये ये व्यवस्थाएं करनी थी, वही नागरिकों को हरा दे रहे हैं। सरकार चुनावजीवी है, उसका शीर्ष नेतृत्व लाखों की रैली आयोजित कर उन्हें कोरोना बांट रहा है, क्योकि उसे पता है कि उसे किसी चीज की कोई किल्लत नहीं होगी, लखनउ-दिल्ली में सारे जरुरी इंतजामात से लैस अस्पताल और बेड उनकी प्रतीक्षा में खाली पडे रहेंगे और सरकार का उच्चतम कानून अधिकारी पूरी बेशर्मी से अदालत को कह रहा है कि दवाओं, बेड, ऑक्सीजन, वेंटीलेटर की कहीं कोई किल्लत नहीं है लोगों के लिये। अदालते धृतराष्ट्रीय अदा से उसे मान भी ले रही हैं।

किल्लत नहीं है, लेकिन सैकडो ऑक्सीजन प्लांट लगाने का फैसला है। किल्लत नहीं है लेकिन कई संस्थाएं बेड्स की संख्या बढाने में, दवाएं, वेटीलेटर मुहैया कराने में जुट गयी है। मौतों से तो अब सदमा भी नहीं लग रहा है, यह ‘न्यू नार्मल’ है। हम हर रोज ‘नमन, विनम्र श्रद्धांजलि, आर..आई.पी. जैसी प्रतिक्रियाओं, कई बार तो सोशल मीडिया पर उपलब्ध ‘इमोजीज’ तक से काम चला ले रहे और अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। वे मस्त हैं – केंचुआ को, ई.वी.एम. को सेट करके 2 मई की प्रतीक्षा में। मद्धम पडी हैं, लेकिन हवाओं में अब भी गूंज है कि ‘ … मुमकिन है’।


संकलन, सम्पादन और कवर: अभिषेक श्रीवास्तव


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