क्या सरकार को कोविड-19 की इस विनाशक दूसरी लहर की पूर्व सूचना थी? इस प्रश्न से बचा नहीं जा सकता। इस प्रश्न से ढेर सारे प्रश्न जुड़े हुए हैं। मसलन, बेड, ऑक्सीजन और दवाओं की प्राणघातक कमी का जिम्मेदार कौन है? वैक्सिनेशन प्रक्रिया में असाधारण अव्यवस्था के लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाए? हम में कम से कम इतना साहस होना चाहिए कि इस संवेदनहीन और अकुशल तंत्र के कर्ताधर्ताओं से कुछ जरूरी सवाल पूछें और उनकी जिम्मेदारी तय करें जिससे भविष्य में ऐसी आपराधिक लापरवाही की पुनरावृत्ति न होने पाए।
प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन का कहना है कि स्वदेशी और विदेशी वैज्ञानिकों दोनों का मानना था कि कोविड की दूसरी लहर पहली लहर के बराबर या उससे कमजोर होगी लेकिन वैक्सीन की उपलब्धता, पहली लहर का कमजोर पड़ना तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य अधोसंरचना को नया रूप देकर विकसित करने से उत्पन्न आत्मविश्वास शायद वे कारक थे जिनके कारण दूसरी लहर के आकार एवं तीव्रता का अनुमान सरकार नहीं लगा सकी। इसके अलावा महानगरों में किए गए सीरोपॉजिटिविटी परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ था कि कोविड-19 से ठीक हुए बहुत सारे लोग अब संभवतः इम्यूनिटी विकसित कर चुके हैं, किंतु इन आंकड़ों को पूरे महानगर की विशाल जनसंख्या का प्रतिनिधि मानना गलत था।
के. विजयराघवन कहते हैं कि जनता पहली लहर के कमजोर पड़ने के बाद कोविड आचार संहिता के प्रति लापरवाह हो गई और वैक्सीन आ जाने के बाद देश में निश्चिंतता का माहौल बन गया जिसके कारण दूसरी लहर विकराल बन गई। उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों ने कोविड को समाप्त मानकर अपनी कामयाबी का जश्न मनाना प्रारंभ कर दिया, क्या इससे जनता में गलत संदेश नहीं गया?
विजयराघवन द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अतिरिक्त और भी तथ्य पब्लिक डोमेन में हैं जो कुछ दूसरी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। केंद्र सरकार द्वारा देश में कोविड-19 के प्रसार की संभावनाओं का आकलन करने के लिए गठित एक त्रिसदस्यीय समिति के अध्यक्ष एम विद्यासागर ने एक बताया है कि उन्होंने सरकार को सूचित किया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर बन रही है जो मई के मध्य तक चरम बिंदु पर पहुंचेगी, हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह लहर उनके अनुमान से ज्यादा बड़ी है। इस विषय में सरकार से उन्होंने मार्च के पहले सप्ताह में राय साझा की थी और उन्होंने अपना औपचारिक अभिमत 2 अप्रैल 2021 को सरकार को दिया था।
रॉयटर्स की 3 मई 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार सार्स कोविड-2 जेनेटिक्स कंसोर्शियम के पांच वैज्ञानिकों ने रॉयटर्स को बताया कि उन्होंने मार्च 2021 के प्रारंभ में ही सरकारी अधिकारियों को घातक नए वैरिएंट के विषय में जानकारी दे दी थी, किंतु सरकार ने इसके प्रसार को रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए और लोगों के एकत्रीकरण एवं आवाजाही पर किसी तरह के कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए। देश के शीर्षस्थ वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन के अनुसार कथित यूके वैरिएंट का पता सितंबर 2020 में ही चल गया था, साउथ अफ्रीकी वैरिएंट की जानकारी अक्टूबर 2020 में मिल गई थी और ब्राजीली वैरिएंट भी दिसंबर 2020 में ही डिटेक्ट हो गया था। जापान द्वारा की जा रही रूटीन जीनोम सीक्वेंसिंग से यह जानकारी मिली थी। अनेक वैज्ञानिकों का यह कहना है कि जब हम यूरोप और अमेरिका की दूसरी अधिक विनाशक लहर को देख चुके थे और विश्व में महामारियों के इतिहास से भी अवगत थे (जिसमें दूसरी लहरों की घातकता का जिक्र मिलता है) तब कोई सामान्य मेधा वाला व्यक्ति भी यह समझ सकता था कि भारत में भी कोविड-19 की यह दूसरी लहर अवश्य ही आएगी और पहले से ज्यादा घातक होगी।
अब कुछ रिपोर्टों के हवाले से खबर आ रही है कि फरवरी और मार्च 2021 में जब देश बड़ी तेजी से कोविड-19 की दूसरी लहर की गिरफ्त में आता जा रहा था तब सरकार को इस विषय पर सलाह देने के लिए गठित नेशनल साइंटिफिक टास्क फोर्स ऑन कोविड-19 की कोई बैठक तक आयोजित नहीं हुई। रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2021 में 11 जनवरी को इस टास्क फोर्स की बैठक हुई, फिर इसकी अगली बैठकें 15 एवं 21 अप्रैल को हुईं जब देश दूसरी लहर की चपेट में आ चुका था। आइसीएमआर द्वारा कोविड-19 का ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल 3 जुलाई 2020 के बाद से अपडेट नहीं किया गया है। तब रेमडेसेविर इन्वेस्टिगेशनल थेरेपी का एक भाग थी। बाद में डब्लूएचओ ने नवंबर 2020 में एक स्टेटमेंट जारी कर कहा कि वह कोविड-19 के इलाज में रेमडेसेविर के प्रयोग के विरुद्ध है। उसने कहा कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि रेमडेसेविर कोविड-19 के रोगियों की जान बचाने या अन्य फायदे देने में समर्थ है। यदि आइसीएमआर द्वारा ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल अपडेट कर लिया गया होता तो शायद रेमडेसेविर की किल्लत और कालाबाजारी की स्थितियां नहीं बनतीं।
यह भी आश्चर्यजनक है कि लगभग एक वर्ष पूर्व जब कोविड मामलों की कुल संख्या केवल 2000 प्रतिदिन के आसपास थी, नीति आयोग के चेयरमैन और एम्पॉवर्ड ग्रुप-6 के अध्यक्ष अमिताभ कांत और उनके सहयोगी सदस्यों ने 1 अप्रैल 2020 को हुई ग्रुप की दूसरी बैठक में ऑक्सीजन की कमी की आशंका जताई थी। इसके बाद डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड को ऑक्सीजन सप्लाई सुनिश्चित करने का जिम्मा दिया गया और इसके सचिव गुरुप्रसाद महापात्रा की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति भी बनाई गई थी। आज जब हम लगभग पौने चार लाख मामले प्रतिदिन की स्थिति पर हैं तब सरकार को यह बताना चाहिए कि उसने ऑक्सीजन का उत्पादन और वितरण सुनिश्चित करने हेतु एक वर्ष में कौन से कदम उठाए। यह महत्वपूर्ण विषय सांसद रामगोपाल यादव की अध्यक्षता में हुई स्वास्थ्य पर संसद की स्थायी समिति की बैठक में 16 अक्टूबर 2020 को भी उठाया जा चुका था।
इससे बहुत पहले 24 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा लगाए गए अविचारित लॉकडाउन की उपयोगिता सिद्ध करने की हड़बड़ी में भारत सरकार ने एक प्रेजेंटेशन दिया था। इस प्रेजेंटेशन में नीति आयोग के सदस्य और कोविड-19 का मुकाबला करने हेतु बनाए गए 11 एम्पॉवर्ड ग्रुप्स में से ग्रुप-1 के प्रमुख डॉ. वी. के. पॉल ने एक ऐसी स्लाइड का प्रयोग किया था जिसके अनुसार लॉकडाउन से मिले लाभों के कारण हम कोविड-19 कर्व को फ्लैटेन करने में कामयाब होंगे। मई 2020 के पहले सप्ताह से कोविड-19 के मामलों में गिरावट प्रारंभ होगी तथा 16 मई 2020 को भारत में कोविड मामलों की संख्या शून्य होगी। 16 मई 2020 को भारत में कोविड-19 के 4987 मामले थे। आगे जो कुछ हुआ वह दुःखद इतिहास का एक भाग है। यह बात अलग है कि बाद में डॉ. वी. के. पॉल ने (जो अब केंद्र सरकार की कोविड-19 कमेटी ऑन मेडिकल इमरजेंसी के प्रमुख हैं) इस स्लाइड पर सफाई भी दी।