शेरनी: जंगल से निकाल कर जानवरों को म्यूज़ियम में कैद कर दिए जाने की कहानी

फ़िल्म की कहानी और इसके बीच स्थानीय राजनीति, अफ़सरशाही, प्रशासनिक नाकामी, पर्यावरण का दोहन और अवैध शिकार जैसे खलनायक शेरनी को बचाने का प्रयास करती फ़िल्म की ‘शेरनी’ विद्या बालन को बार-बार रोकते हैं और अंत में इसमें सफल भी हो जाते हैं।

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कोरोना: रोज बनते मौतों के रिकार्ड के बीच अब गांवों से भी निकल रही हैं लाशें

24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के मौक़े पर पंचायत सदस्यों और प्रतिनिधियों के साथ वर्चुअल बातचीत और ‘पुरस्कार वितरण’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंचायत प्रतिनिधियों से कहा- “पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना महामारी को गाँवों तक पहुँचने नहीं देना है”। इस बयान पर आप हंस भी सकते हैं, रो भी सकते हैं और चाहें तो अपना माथा भी पीट सकते हैं।

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प्रधानी का चुनाव और चौराहे की चाय

हमारे पड़ोस की ग्रामसभा में पिछली दो बार महिला प्रधान थीं लेकिन चुनाव प्रचार से लेकर सारे काम पति महोदय ने किया और एक साल तक तो अधिकारियों को भी नहीं पता था कि फ़लाँ प्रधान नहीं बल्कि प्रधान पति हैं। और गाँववाले तो आज तक ‘पति’ को प्रधान समझते हैं।

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कृषि कानूनों के सही या गलत होने से शुरू हुई बहस पटरी छोड़ कर इतनी दूर कैसे निकल आयी?

26 जनवरी को वो हुआ जिसने इस आंदोलन को शक की नज़र से देखने की एक वजह दे दी और मासूम जनता को किसान दंगाई नज़र आने लगे।

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अगर हनुमान जी इस देश का बजट बनाते तो कैसा होता?

भारत सरकार ने कुछ दिनों पहले कहा था कि सरकार हवाई यात्रा की दरों को कम करने का लक्ष्य बना रही है और उसका उद्देश्य है कि हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति भी हवाई जहाज़ से यात्रा करे। लेकिन अभी तक हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति चप्पलें सिलवाकर थक गया लेकिन सरकार का न्यौता नहीं आया हवाई जहाज़ पर चढ़ने का। हनुमान जी के पास तो उनके शरीर में इंस्टाल विमान था और पलक झपकते ही समंदर पार कर जाते, उड़कर संजीवनी ले आते।

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खतरनाक है भावनाओं और संवेदनाओं का आभासी दुनिया में इमोजी बन जाना

आजकल वास्तविक दुनिया के समांनातर एक आभासी दुनिया भी चल रही है और कई-कई बार आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया पर हावी होने लगती है। यह दुनिया हमारी वास्तविक दुनिया पर इतना प्रभाव डालने लगती है कि हम इसे कई बार सही मानने लगते हैं। इसके पैमानों से खुद को तौलते हैं और सही-गलत और गुणवत्ता का निर्णय लेने लगते हैं।

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एक महामारी और तीन तहों में बंटी ज़िंदगी की अपनी-अपनी बीमारी

जितने भी सुविधा के साधन हमने ईजाद किए हैं इस दौरान वे सभी फेल हो गए हैं। पैसे से लेकर मशीनरी तक।

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