नित वेश बदलती महामारी और टीकाकरण की चुनौती: बिहार के कुछ ज़मीनी अनुभव

कोरोना बीमारी के साथ ही साथ सरकारों को ‘अफवाह की महामारी’ से भी लड़ना पड़ेगा। संचार के सशक्त होते माध्यमों से नागरिक आवाज़ों को जरूर बल मिला, लेकिन उसके साथ ही दबे पाँव उन समस्याओं का भी आगमन हुआ है जिनसे हम सब लड़ रहे हैं।

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Vaccine Internationalism: बिग फार्मा के एकाधिकार को चुनौती में केरल ने मिलायी अपनी आवाज़!

केरल के मुख्‍यमंत्री विजयन ने वैक्‍सीन उत्‍पादन को विस्‍तार देने की प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि वे इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्‍ड वाइरोलॉजी में एक अनुसंधान इकाई की शुरुआत करेंगे और केरल स्‍टेट ड्रग्‍स एंड मैन्‍युफैक्‍चरर्स जैसी सार्वजनिक इकाइयों को वैक्‍सीन निर्मित कर के निर्यात करने की अनिवार्यता लागू करेंगे।

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जुलाई तक कैसे पूरी हो पाएगी 25 करोड़ आबादी के टीकाकरण की योजना

कोरोना की दूसरी लहर में जहां सबसे बुरे हालात गांव में बने वही हालात फिर से टीकाकरण के दौरान बन रहे हैं। इसके पीछे सरकार की वो प्रक्रिया है, जिस पर चलते हुए टीकाकरण केन्द्र तक पहुंचा जा सकता है। यह प्रक्रिया ही इतनी जटिल है कि आम आदमी टीका लगवाने के बजाय घर में दुबके बैठे रहने को ही एकमात्र रास्ता समझ रहा है।

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वैक्सीन लेने के बाद भी हो रही मौतों के कारण फैलते डर और संदेह के बीच सरकार चुप क्यों है?

सरकार को तत्‍काल वैक्‍सीन के बाद हुए संक्रमण और मौतों के आंकड़े जारी करने होंगे, ताकि इस मामले में पारदर्शिता बनी रहे क्‍योंकि आंकड़े छुपाने से अफ़वाहों को ही बल मिलेगा, उसका कोई लाभ नहीं होगा।

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तन मन जन: रामदेव के दावे और IMA का गुस्सा

इस विवाद की आड़ में सरकार ने जनता को रामदेव एवं आइएमए के सर्कस में व्यस्त कर अपनी विफलता से लोगों को ध्यान बंटा दिया। कुल नतीजा क्या निकला पता नहीं मगर इस नूराकुश्ती ने वर्तमान सरकार के विफल कोरोना संक्रमण नियंत्रण के प्रति उत्पन्न जनाक्रोश को थोड़ा ठंडा कर दिया।

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वैक्सीन से राहत का सपना भी अब तार-तार हो रहा है

सरकार के ढुलमुलपन और गैर-जिम्मेदाराना रवैये से ये विश्वास और पुख्ता होता जा रहा है कि निकट भविष्य में इससे लोगों को अपेक्षित राहत मिल भी पाएगी या नहीं? वैक्‍सीन की दोनों खुराक लेने के बाद भी पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल की कोविड से हुई ताज़ा मौत ने तमाम संदेहों को और पुख्‍ता कर दिया है।

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विश्वगुरु का फर्जी ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’: घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने!

भारत को विश्व गुरु बनाना तो नहीं अपितु खुद को विश्व नेता के रूप में प्रस्तुत करना प्रधानमंत्री का लक्ष्य रहा है और उन्होंने अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को देश पर इस तरह आरोपित कर दिया है कि आज देश जीवनरक्षक वैक्सीन की उपलब्धता के संकट से जूझ रहा है।

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तन मन जन: लाकडाउन का एक साल और निराशा के कगार पर खड़ी 130 करोड़ की आबादी

स्कूल बंद हैं। यातायात बाधित है। व्यापार लगभग ठप है। युवा तनाव में है। लोगों के आपसी रिश्ते दरक रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की निरंकुशता ज्यादा देखी जा रही है। लोगों की ऐसी अनेक आशंकाओं को यदि ठीक से सम्बोधित नहीं किया गया तो 130 करोड़ की आबादी में जो निराशा फैलेगी उसका इलाज इतना आसान नहीं होगा।

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तन मन जन: बिल गेट्स का ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ और नई दहशतें

ये रोग बीमारी से ज्यादा प्रोपगेन्डा की तरह फैलाए गए और इनके नाम पर बाजार (दवा कम्पनियां) ने कितना मुनाफा कमाया। आगे भी ऐसे हथकण्डे चलते रहेंगे मगर आप अपने को इतना जागरूक बना लें कि कोई कम्पनी आपको कम से कम बेवकूफ तो नहीं बना सके।

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बात बोलेगी: जनता निजात चाहती है, निजात भरोसे से आता है, भरोसा रहा नहीं, भक्ति कब तक काम आएगी?

विज्ञान से बेवफ़ाई करने पर सदियों से हमारे सनातनी समाज का कुछ नहीं बिगड़ा, तो छह सौ साल एक बाद प्रकट हुए एक हिन्दू राजा के शासनकाल में विज्ञान की परवाह करने की कौन ज़रूरत आन पड़ी? देखा जाएगा जो होगा सो, लेकिन अभी हमें बनती हुई वैक्सीन के जल्दी से जल्दी बन जाने के लिए ही कामनाएं करनी हैं।

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