शैक्षिक सिद्धांतों के आलोक में ‘छोकरी-टोकरी’ का गैर-जरूरी विवाद

कविता की समीक्षा शैक्षिक सिद्धांतों की मौलिकता के आधार पर ही होनी चाहिए, जिनको मैंने ऊपर वर्णित और रेखांकित किया है। इन्हीं आधारों पर इसकी विषयवस्तु में कई एक जगह मुझे विचलन देखने को मिला है, जिसमें सुधार की गुंजाइश बनती है हालाँकि विवाद का दूसरा अंश मुझे ग़ैरज़रूरी जान पड़ता है।

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वैक्सीन से राहत का सपना भी अब तार-तार हो रहा है

सरकार के ढुलमुलपन और गैर-जिम्मेदाराना रवैये से ये विश्वास और पुख्ता होता जा रहा है कि निकट भविष्य में इससे लोगों को अपेक्षित राहत मिल भी पाएगी या नहीं? वैक्‍सीन की दोनों खुराक लेने के बाद भी पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल की कोविड से हुई ताज़ा मौत ने तमाम संदेहों को और पुख्‍ता कर दिया है।

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कोरोना की दूसरी लहर ने स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल के सिस्टम को नंगा कर दिया है

श की राजधानी दिल्ली की स्थिति और भी भयावह है, जो लगातार बद से बदतर होती जा रही है। दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से लोग छटपटा कर दम तोड़ रहे हैं। मरीज एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक ऑक्सीजन के साथ एक अदद बेड की तलाश में भटक रहे हैं।

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बदलाव के कगार पर बिहार: चुनाव के मुद्दे व संबंधित संदर्भ

आज के चुनावी परिदृश्य में एक तरफ जहां सुशासन बाबू अपने ही बनाये ताने-बाने में उलझे, अटके, फंसे पड़े दिख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक 31 साल का नौजवान नये जोश और उमंग से लबरेज पूरे वातावरण में ताजगी और बदलाव का समां बांध रहा है। एक से एक चुनावी रणकौशल के उस्ताद से लेकर तथाकथित चुनावी चाणक्य तक इस नौजवान की हुंकार के सामने बौने नज़र आ रहे हैं।

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उनके पेट में दांत है, लेकिन वे खुद चक्रव्यूह के भीतर हैं!

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जो कि पिछले 15 सालों से बिहार के सत्ता पर काबिज है और जिसका नेतृत्व सुशासन बाबू फेम “नीतीश कुमार” सफलतापूर्वक करते आए हैं, इस बार अपने भीतर ही एक चक्रव्यूह रचे हुए है। इसका मूल मक़सद नीतीश जी को निपटा देना है।

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ऑनलाइन शिक्षा क्‍लासरूम की जगह क्‍यों नहीं ले सकती, अभिभावकों को यह समझना ज़रूरी है

हमें तरह-तरह से ये समझाने की कोशिश की जा रही है कि क्लासरूम की जगह लर्न फ्रॉम होम एक तात्कालिक कदम है और कोविड के प्रभाव के खत्म होते हीं चीजें वापस अपने पुराने ढर्रे पर लौट आएंगी। इसी सोच के आधार पर जन मानस भी तैयार किया जा रहा है ताकि लोग इसे व्यापकता से अपना लें। सरकार तथा अन्य कई तरह की संस्थाएं इसके पक्ष में क़सीदे काढ़ रही हैं।

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मजदूरों का झंडा सफेद से लाल कब और कैसे हुआ?

मजदूरों ने अपने खून से लथपथ कपड़ों को अपनी बस्तियों में घरों के आगे व खिड़कियों पर टांग दिया था। इससे पूरी बस्ती लाल झंडे से शराबोर दिखाई देने लगी। और यहीं से पूरी दुनिया में लाल रंग, लाल झंडा और लाल सलाम हिंसक कार्यवाहियों, दमन व शोषण के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गया।

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